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आईसीएआर-राष्ट्रीय कृषि उच्चतर प्रसंस्करण संस्थान

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राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने 20 सितंबर, 2024 को झारखंड के रांची में आईसीएआर-राष्ट्रीय (ICAR-NISA) कृषि उच्चतर प्रसंस्करण संस्थान (एनआईएसए) के शताब्दी समारोह में भाग लिया।

ICAR-NISA के बारे में :

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)-राष्ट्रीय द्वितीयक कृषि संस्थान (एनआईएसए) की स्थापना 1924 में भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान के रूप में रांची, झारखंड में की गई थी। 2022 में इसका नाम बदलकर ICAR-NISA कर दिया गया। यह संस्थान कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है और द्वितीयक कृषि को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

द्वितीयक कृषि:

द्वितीयक कृषि का तात्पर्य उन गतिविधियों से है जो प्राथमिक कृषि उत्पादों का मूल्य संवर्धन करती हैं और अन्य कृषि-संबंधी गतिविधियों जैसे मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन, और कृषि पर्यटन को शामिल करती हैं। इसमें निम्नलिखित प्रक्रियाएँ शामिल हैं:

  • कृषि उपज, अवशेष और उप-उत्पादों को फार्मास्यूटिकल, औद्योगिक और खाद्य उपयोगों के लिए उच्च मूल्य वाली वस्तुओं में परिवर्तित करना।
  • खाद्य और गैर-खाद्य प्रसंस्करण जैसे अनाज से विटामिन निकालना, चावल की भूसी से तेल बनाना, और गन्ने से गुड़ का उत्पादन करना।

विकास की संभावनाएँ:

द्वितीयक कृषि में अपार संभावनाएँ हैं, जैसे:

  • उपभोक्ता मांग में वृद्धि के कारण मूल्य-संवर्धित उत्पादों (रेडी-टू-ईट और कार्यात्मक खाद्य पदार्थ) की बढ़ती आवश्यकता।
  • नवीकरणीय कृषि-जैव संसाधनों के उपयोग का बढ़ता महत्व।
  • कृषि उपोत्पादों की बड़ी मात्रा, जिन्हें उचित तरीके से उपयोग किया जा सकता है।

द्वितीयक कृषि का महत्व:

  • पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ: फसल अवशेषों और कृषि अपशिष्टों का पुनः उपयोग कर प्रदूषण कम होता है।
  • किसानों की आय में वृद्धि: मधुमक्खी पालन, लाख पालन जैसी गतिविधियों से किसानों की आमदनी बढ़ती है।
  • मूल्य संवर्धन: कृषि उत्पादों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने और उनकी कुल उत्पादकता में सुधार करता है।
  • कुटीर उद्योगों का विकास: कृषि आधारित कुटीर उद्योगों और प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रोत्साहित करता है।

द्वितीयक कृषि की चुनौतियाँ:

  • द्वितीयक कृषि से जुड़े उद्योग अभी प्रारम्भिक अवस्था में हैं।
  • भारत में छोटे भूमि आकार के कारण फसल अवशेषों का संग्रहण कठिन है।
  • उपयुक्त प्रौद्योगिकी और अनुसंधान की कमी।
  • किसानों में जागरूकता का अभाव, जिससे वे कृषि अपशिष्ट का सही तरीके से उपयोग नहीं कर पाते।

द्वितीयक कृषि में इन चुनौतियों से निपटने के लिए उपयुक्त तकनीकी विकास और जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है, जिससे यह क्षेत्र और भी अधिक समृद्ध हो सके।

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