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भारत पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की रिपोर्ट

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अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एक रिपोर्ट ने भारत में बढ़ते कार्य घंटों और इससे उत्पन्न हो रही विषाक्त कार्य संस्कृति की गंभीर स्थिति को उजागर किया है। भारत में, लगभग 51% कार्यबल प्रति सप्ताह 49 घंटे से अधिक काम करता है, जो देश को इस सूची में दुनिया में दूसरे स्थान पर रखता है। भूटान, जहां 61% जनसंख्या इतनी ही अवधि तक काम करती है, इस मामले में शीर्ष स्थान पर है। यह डेटा एक गंभीर संकेत है, खासकर जब भारत भविष्य में अपने जनसांख्यिकीय लाभांश को भुनाने की तैयारी कर रहा है।

भारत की कार्य संस्कृति और उसकी चुनौतियाँ:

  • भारत में 2030 तक कामकाजी आयु वर्ग के लोगों की संख्या 04 बिलियन तक पहुंचने की संभावना है, जो देश की कुल आबादी का लगभग 68.9% होगा। ऐसे में देश का निजी और सरकारी क्षेत्र इस बड़े कार्यबल से आर्थिक लाभ प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हैं, लेकिन इसके साथ-साथ श्रमिकों की कार्य गुणवत्ता और उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
  • लंबे कार्य घंटों और अत्यधिक कार्यभार के कारण उत्पन्न तनाव और चिंता ने उस युवा कर्मचारी के जीवन को समाप्त कर दिया, जिससे कार्य-जीवन संतुलन की आवश्यकता पर गंभीर सवाल खड़े हुए हैं।

भारत के लिए चेतावनी:

ILO की रिपोर्ट भारत के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी है कि यदि इस विषाक्त कार्य संस्कृति को नियंत्रित नहीं किया गया, तो इससे न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, बल्कि यह देश की उत्पादकता और भविष्य की संभावनाओं को भी बाधित कर सकता है।

समाधान की दिशा में कदम:

  • कार्य-जीवन संतुलन का महत्व: कॉर्पोरेट जगत और सरकारी क्षेत्र को यह समझने की जरूरत है कि लंबे कार्य घंटे हमेशा उत्पादकता को नहीं बढ़ाते। टिकाऊ कार्य वातावरण और मानसिक स्वास्थ्य का संरक्षण आवश्यक है।
  • नीतियों का पुनर्विचार: नियोक्ताओं को कर्मचारियों की भलाई को प्राथमिकता देते हुए कार्य नीति में बदलाव करना चाहिए।
  • विषाक्त कार्य संस्कृति का उन्मूलन: एक स्वस्थ और सहयोगी कार्य वातावरण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जहां कर्मचारियों की भलाई को सबसे पहले रखा जाए।

ILO की रिपोर्ट और हाल की घटनाओं से यह स्पष्ट है कि भारत को अपने कार्यबल के लिए दीर्घकालिक योजनाओं को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है, ताकि भविष्य में श्रमिकों की भलाई सुनिश्चित की जा सके।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO):

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) एक वैश्विक संगठन है, जो कामकाजी परिस्थितियों को बेहतर बनाने और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करता है।
  • इसकी स्थापना 1919 में की गई थी और यह संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशिष्ट एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
  • ILO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के सदस्य देशों की संख्या 187 है।

ILO के मुख्य उद्देश्य:

  1. श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा: ILO दुनिया भर में श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करने, उचित वेतन, सुरक्षित कार्य परिस्थितियों और उचित कार्य घंटों को सुनिश्चित करने के लिए काम करता है।
  2. कार्यस्थल पर सामाजिक न्याय: ILO का उद्देश्य सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना और कामकाजी परिस्थितियों को निष्पक्ष और समान बनाना है।
  3. कार्य की शर्तों में सुधार: संगठन का एक मुख्य उद्देश्य विश्वभर में कामकाजी स्थितियों में सुधार लाना और काम के लिए स्वस्थ, सुरक्षित, और संतुलित वातावरण तैयार करना है।
  4. अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों का विकास: ILO अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों का निर्माण करता है, जिनमें न्यूनतम वेतन, श्रम अधिकार, और कार्य घंटों की सीमाएं शामिल हैं।

ILO के कार्य:

  1. अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलनों का आयोजन: ILO हर साल अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन का आयोजन करता है, जिसमें श्रम मानकों और श्रमिकों की स्थिति पर चर्चा की जाती है।
  2. मानवाधिकार और काम की गरिमा की सुरक्षा: यह संगठन श्रमिकों की गरिमा और उनके मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रयास करता है, विशेष रूप से कमजोर और असुरक्षित श्रमिकों के लिए।
  3. श्रम मानकों की निगरानी: ILO श्रम मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करता है और सदस्य देशों में इसके क्रियान्वयन की निगरानी करता है।
  4. तकनीकी सहायता: संगठन तकनीकी और प्रशिक्षण सहायता प्रदान करता है ताकि श्रमिकों की क्षमता और उत्पादकता में सुधार हो सके।

ILO की महत्वपूर्ण संधियाँ और मानक:

  1. बाल श्रम निषेध: ILO ने बाल श्रम को समाप्त करने के लिए कई महत्वपूर्ण पहल की हैं, जिनमें सबसे प्रमुख 182वां ILO कन्वेंशन है, जो बाल श्रम के सबसे बुरे रूपों पर रोक लगाता है।
  2. समान वेतन: ILO का 100वां कन्वेंशन, 1951, समान काम के लिए पुरुषों और महिलाओं के समान वेतन की गारंटी देता है।
  3. कार्यस्थल पर भेदभाव का निषेध: ILO का 111वां कन्वेंशन (1958) कार्यस्थल पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को रोकने के लिए लागू किया गया था।

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