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हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने विपणन सीजन 2025-26 के लिए सभी प्रमुख रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि की मंजूरी दी है। यह वृद्धि केंद्रीय बजट 2018-19 में की गई उस घोषणा के अनुरूप है, जिसमें MSP को अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत का कम-से-कम 1.5 गुना तय करने की बात कही गई थी।
रबी फसलों के लिए नवीनतम MSP (2025-26):
फसल |
पूर्व में MSP (रूपए प्रति क्विंटल) |
संशोधित MSP (रूपए प्रति क्विंटल) |
वृद्धि (रूपए में) |
गेहूँ |
2275 |
2425 |
150 |
जौ |
1850 |
1980 |
130 |
चना |
5440 |
5650 |
210 |
मसूर दाल |
6425 |
6700 |
275 |
रैपसीड एवं सरसों |
5650 |
5950 |
300 |
कुसुम |
5800 |
5940 |
140 |
MSP क्या है?
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) वह न्यूनतम मूल्य है, जिस पर सरकार किसानों से उनकी फसलें खरीदने की गारंटी देती है। यह मूल्य किसानों को उनके उत्पादन लागत के आधार पर तय किया जाता है, ताकि वे नुकसान से बच सकें और अपनी फसलों की बिक्री के लिए उन्हें एक निश्चित न्यूनतम मूल्य मिल सके।
MSP का निर्धारण:
MSP का निर्धारण कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर किया जाता है। CACP फसलों के लिए MSP की सिफारिश करते समय उत्पादन लागत के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण कारकों जैसे बाजार की कीमतें, मांग-आपूर्ति, अंतर्राष्ट्रीय मूल्य, और किसानों की लागत को ध्यान में रखता है।
उत्पादन लागत के प्रकार:
- A2 लागत: इसमें किसानों द्वारा बीज, उर्वरक, श्रम, सिंचाई, ईंधन, आदि पर किए गए सभी नकद और वस्तुगत भुगतान शामिल हैं।
- A2+FL: इसमें A2 लागत के साथ-साथ अवैतनिक पारिवारिक श्रम की लागत भी शामिल होती है।
- C2 लागत: इसमें A2+FL के साथ स्वामित्व वाली भूमि और अन्य अचल संपत्ति के किराए तथा ब्याज को भी शामिल किया जाता है।
उद्देश्य:
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) किसानों को उनकी उपज के लिए सरकार द्वारा प्रदान किया जाने वाला एक गारंटी मूल्य है, जो उन्हें मजबूरी में अपनी फसलें बेचने से बचाने और सार्वजनिक वितरण के लिए खाद्यान्न खरीदने के लिए सुनिश्चित करता है।
- यदि किसी वस्तु का बाजार मूल्य निर्धारित न्यूनतम मूल्य से नीचे चला जाता है, तो सरकारी एजेंसियां किसानों द्वारा आपूर्ति की गई पूरी मात्रा को उस न्यूनतम मूल्य पर खरीद लेंगी।
- MSP में वृद्धि न केवल किसानों के कल्याण के लिए आवश्यक है, बल्कि यह कृषि बाजारों को स्थिर करने में भी मदद करती है, खासकर जब भारत घरेलू दलहन उत्पादन को बढ़ाने के लिए बढ़ते आयात के बीच संघर्ष कर रहा है।
पृष्ठभूमि:
- ब्रिटिश शासन का प्रभाव: भारत की कृषि स्थिति ब्रिटिश शासन के दौरान बिगड़ गई थी, जिसके कारण किसान गरीब हो गए थे।
- खाद्यान्न जांच समिति (1957): जवाहरलाल नेहरू प्रशासन ने कृषि आय के मुद्दे को सुलझाने का पहला प्रयास किया।
- खाद्यान्न मूल्य समिति (1964): लाल बहादुर शास्त्री ने एल.के. झा के नेतृत्व में MSP व्यवस्था को लागू करने के लिए समिति का गठन किया।
- MSP की पहली घोषणा (1967): तत्कालीन कृषि मंत्री जगजीवन राम द्वारा की गई।
- कृषि मूल्य आयोग: MSP तय करने के लिए कृषि मूल्य आयोग (जिसका नाम 1985 में बदलकर CACP कर दिया गया) की स्थापना की गई।
भारत में MSP व्यवस्था के समक्ष आने वाली समस्याएं:
- सीमित कवरेज: MSP केवल कुछ फसलों पर लागू होता है, जिससे कई किसान कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- क्षेत्रीय असमानताएँ: विभिन्न राज्यों में MSP का क्रियान्वयन अलग-अलग होता है, जिससे कुछ क्षेत्रों को अधिक लाभ मिलता है जबकि अन्य को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- विविधीकरण को हतोत्साहित करना: किसान MSP पर अत्यधिक निर्भर हो सकते हैं, जिससे कृषि विविधता प्रभावित हो सकती है।
- खरीद संबंधी चुनौतियाँ: असामयिक भुगतान, भंडारण की कमी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे किसानों को पूरा लाभ प्राप्त करने में बाधित कर सकते हैं।
- बाजार विकृतियां: MSP मुख्य रूप से सरकारी सहायता के लिए फसल उत्पादन को बढ़ावा दे सकता है, जिससे बाजार संकेत विकृत हो सकते हैं।
- गैर-अनाज फसलों की उपेक्षा: MSP व्यवस्था गेहूँ और चावल जैसी मुख्य फसलों पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है, जिससे पोषण विविधता प्रभावित हो सकती है।
- मुद्रास्फीति संबंधी दबाव: उत्पादकता में सुधार के बिना MSP में वृद्धि खाद्य कीमतों में मुद्रास्फीति ला सकती है।
- स्थायित्व संबंधी चिंताएं: कुछ फसलों पर अधिक ध्यान देने से दीर्घकालिक कृषि व्यवहार्यता प्रभावित हो सकती है।
- उपलब्ध सहायता का कम उपयोग: कई किसानों को MSP नीतियों के बारे में जानकारी नहीं होती, जिससे सहायता का कम उपयोग होता है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: MSP के निर्णय राजनीतिक विचारों से प्रभावित हो सकते हैं, जिससे मूल्य निर्धारण में असंगतियां पैदा होती हैं।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP):
CACP भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का एक महत्वपूर्ण कार्यालय है, जिसकी स्थापना जनवरी 1965 में हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सिफारिश करना है, ताकि किसानों को प्रोत्साहित किया जा सके और कृषि उत्पादकता में वृद्धि हो सके।
CACP किन वस्तुओं के लिए MSP की सिफारिश करता है?
- 7 अनाज: धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ, रागी
- 5 दालें: चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर
- 7 तिलहन: मूंगफली, रेपसीड-सरसों, सोयाबीन, सीसम, सूरजमुखी, कुसुम, नाइजरसीड
- 3 वाणिज्यिक फसलें: खोपरा, कपास, कच्चा जूट
- गन्ने के लिए ‘उचित एवं लाभकारी मूल्य’ (FRP) की घोषणा की जाती है।
MSP प्रणाली किसानों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे वे अपनी फसल को न्यूनतम मूल्य पर बेच सकें और कृषि में बने रहें।
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