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सैटेलाइट स्पेक्ट्रम क्या है?

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केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिछले सप्ताह स्पष्ट किया कि उपग्रह संचार (सैटकॉम) के लिए स्पेक्ट्रम (सैटेलाइट स्पेक्ट्रम) का आवंटन “प्रशासनिक रूप से” किया जाएगा, न कि एयरवेव की नीलामी के माध्यम से, जिसका प्रस्ताव इस महीने की शुरुआत में रिलायंस जियो ने रखा था।

सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के बारे में:

सैटेलाइट स्पेक्ट्रम से तात्पर्य रेडियो आवृत्तियों (फ्रीक्वेंसी) की उस विशेष श्रेणी से है, जिसका उपयोग उपग्रहों के माध्यम से संचार सेवाओं के लिए किया जाता है। इन आवृत्तियों का उपयोग उपग्रहों द्वारा पृथ्वी पर स्थित भू-स्टेशनों, अन्य उपग्रहों और पृथ्वी पर विभिन्न उपकरणों के साथ संचार स्थापित करने के लिए किया जाता है। यह विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम का हिस्सा हैं, विशेष रूप से रेडियो तरंगें, और इनका उपयोग मुख्य रूप से संचार, प्रसारण, नेविगेशन और पृथ्वी अवलोकन के लिए किया जाता है।

सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का विनियमन:

सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के उपयोग को अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ विनियमित करती हैं। ITU इन आवृत्तियों का समन्वय और आवंटन करती है ताकि विभिन्न उपग्रह प्रणालियों और अन्य संचार माध्यमों के बीच हस्तक्षेप को रोका जा सके। यह सुनिश्चित करती है कि विभिन्न देशों और उपग्रह ऑपरेटरों द्वारा एक ही फ्रीक्वेंसी बैंड का इस्तेमाल व्यवस्थित रूप से किया जा सके।

उपग्रह आवृत्ति बैंड: सैटेलाइट संचार के लिए विभिन्न बैंड उपयोग किए जाते हैं, जो निम्नलिखित हैं:

  1. एल-बैंड (1-2 गीगाहर्ट्ज): इसका उपयोग मुख्य रूप से जीपीएस और मोबाइल उपग्रह सेवाओं के लिए किया जाता है।
  2. एस-बैंड (2-4 गीगाहर्ट्ज): यह बैंड मौसम रडार, हवाई यातायात नियंत्रण और मोबाइल उपग्रह सेवाओं के लिए उपयोग होता है।
  3. सी-बैंड (4-8 गीगाहर्ट्ज): इसका उपयोग उपग्रह टीवी प्रसारण और डेटा संचार के लिए किया जाता है, और यह बड़ी दूरी के लिए स्थिर संचार प्रदान करता है।
  4. एक्स-बैंड (8-12 गीगाहर्ट्ज): इसका मुख्य उपयोग सेना द्वारा रडार और संचार के लिए होता है।
  5. कू-बैंड (12-18 गीगाहर्ट्ज) और का-बैंड (26-40 गीगाहर्ट्ज): ये बैंड उपग्रह टेलीविजन, इंटरनेट और उच्च-थ्रूपुट डेटा संचार के लिए उपयोग किए जाते हैं।

सैटेलाइट स्पेक्ट्रम और इसके आवंटन के कारण:

  • अंतरराष्ट्रीय प्रकृति: सैटेलाइट स्पेक्ट्रम स्थलीय स्पेक्ट्रम से अलग है क्योंकि यह किसी विशेष राष्ट्रीय सीमा तक सीमित नहीं होता। यह विभिन्न देशों की सीमाओं के पार काम करता है, जिससे इसे किसी एक देश के लिए नीलाम करना मुश्किल हो जाता है। इस अंतरराष्ट्रीय प्रकृति को देखते हुए, इसका समन्वय और प्रबंधन अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा किया जाता है, जो संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
  • प्रशासनिक आवंटन की प्राथमिकता: अधिकांश देश, जैसे भारत, सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का प्रशासनिक आवंटन करना पसंद करते हैं, न कि इसकी नीलामी। इसका कारण यह है कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम एक साझा संसाधन है, जिसे कई ऑपरेटर एक ही समय में उपयोग कर सकते हैं। इसके विपरीत, स्थलीय मोबाइल सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम का उपयोग विशेष रूप से होता है और इसे साझा नहीं किया जा सकता, इसलिए नीलामी उपयुक्त होती है।

नीलामी न करने के कारण:

  1. गैर-अनन्य उपयोग: सैटेलाइट स्पेक्ट्रम गैर-अनन्य प्रकृति का होता है, यानी कई उपग्रह ऑपरेटर एक ही स्पेक्ट्रम का उपयोग कर सकते हैं। इस कारण से, नीलामी प्रणाली में इसकी बिक्री या आवंटन अव्यवहारिक हो जाता है।
  2. अंतर्राष्ट्रीय समन्वय: चूंकि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का उपयोग विभिन्न देशों की सीमाओं के पार होता है, इसका अंतर्राष्ट्रीय प्रबंधन आवश्यक है। ITU इस समन्वय को देखता है, और नीलामी की प्रक्रिया इस अंतरराष्ट्रीय समन्वय में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
  3. अतीत के नीलामी प्रयोग: अमेरिका, ब्राजील और सऊदी अरब जैसे कुछ देशों ने अतीत में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी की, लेकिन इन नीलामियों को अव्यवहारिक पाते हुए, बाद में वे प्रशासनिक आवंटन की ओर लौट आए। अमेरिका ने 2004 में आखिरी बार नीलामी की थी, जबकि ब्राजील ने 2020 में अपने नियामक ढांचे में संशोधन करके सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी की जगह प्रशासनिक लाइसेंसिंग लागू की।

स्पेक्ट्रम की नीलामी बनाम प्रशासनिक आवंटन:

स्पेक्ट्रम की नीलामी बनाम प्रशासनिक आवंटन के बीच के अंतर और दोनों विधियों के महत्व को समझना महत्वपूर्ण है, क्योंकि दोनों का उपयोग विभिन्न संदर्भों और उद्देश्यों के अनुसार किया जाता है। आइए इन दोनों के बीच तुलना करते हैं:

नीलामी (Auction):

  1. प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया:
    • नीलामी में स्पेक्ट्रम के उपयोग के लिए विभिन्न कंपनियां प्रतिस्पर्धी बोली लगाती हैं, और स्पेक्ट्रम लाइसेंस उस कंपनी को दिया जाता है, जो सबसे अधिक बोली लगाती है।
    • इससे संसाधनों का कुशल आवंटन होता है क्योंकि कंपनियां अपनी व्यापारिक योजनाओं के अनुसार स्पेक्ट्रम के मूल्यांकन के आधार पर बोली लगाती हैं।
  2. सरकारी राजस्व:
    • नीलामी सरकार के लिए उल्लेखनीय राजस्व उत्पन्न करती है क्योंकि उच्चतम बोली लगाने वाली कंपनियां बड़ी राशि का भुगतान करती हैं।
    • विशेष रूप से, वाणिज्यिक मोबाइल नेटवर्क या 5G जैसी सेवाओं के लिए, नीलामी से सरकार को आर्थिक लाभ होता है।
  3. पारदर्शिता और निष्पक्षता:
    • नीलामी प्रक्रिया पारदर्शी मानी जाती है क्योंकि स्पेक्ट्रम लाइसेंस बोली प्रक्रिया के आधार पर दिए जाते हैं, जो भ्रष्टाचार और पक्षपात की संभावनाओं को कम करती है।
    • यह बाजार-संचालित पद्धति है, जो प्रतिस्पर्धा वाले क्षेत्रों में सर्वोत्तम मानी जाती है।
  4. उपयुक्तता: नीलामी को व्यावसायिक दूरसंचार सेवाओं के लिए प्राथमिकता दी जाती है, जहाँ कई कंपनियाँ स्पेक्ट्रम के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं और इसका इष्टतम उपयोग करने की क्षमता रखती हैं।

प्रशासनिक आवंटन (Administrative Allocation)

  1. सरकार द्वारा प्रत्यक्ष आवंटन:
    • इस पद्धति में सरकार बिना बोली प्रक्रिया के स्पेक्ट्रम लाइसेंस सीधे आवंटित करती है, और कंपनियों से नाममात्र शुल्क या प्रशासनिक शुल्क लिया जाता है।
    • यह पद्धति नीलामी के विपरीत होती है, जहाँ प्रतिस्पर्धा पर ध्यान नहीं दिया जाता, बल्कि उपयोगकर्ताओं के बीच स्पेक्ट्रम साझा किया जाता है।
  2. उभरते क्षेत्रों और सार्वजनिक सेवाओं के लिए लचीलापन:
    • प्रशासनिक आवंटन उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जहाँ स्पेक्ट्रम का उपयोग साझा किया जा सकता है, जैसे कि उपग्रह संचार, सरकारी सेवाएँ, या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवंटित स्पेक्ट्रम।
    • यह लचीलापन प्रदान करता है, जिससे सरकार विशेष या महत्वपूर्ण सेवाओं को आसानी से स्पेक्ट्रम उपलब्ध करा सकती है।
  3. कम शुल्क:
    • इस विधि में सरकार कम या नाममात्र शुल्क के साथ स्पेक्ट्रम आवंटित करती है, जिससे संसाधनों का उचित उपयोग सुनिश्चित होता है।
    • इसका उपयोग तब होता है जब नीलामी करना अव्यवहारिक हो या जब प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता नहीं होती है।
  4. उपयुक्तता:
    • प्रशासनिक आवंटन उपग्रह संचार, राष्ट्रीय सुरक्षा, और सार्वजनिक सेवाओं के लिए अधिक उपयुक्त है, जहाँ कई कंपनियाँ एक साथ एक ही स्पेक्ट्रम का उपयोग कर सकती हैं।
    • यह उन क्षेत्रों में उपयोगी होता है जहाँ प्रतिस्पर्धा कम होती है या संसाधनों का साझा उपयोग संभव होता है।

मुख्य अंतर:

विशेषताएँ

नीलामी

प्रशासनिक आवंटन

प्रक्रिया

प्रतिस्पर्धी बोली, उच्चतम बोली लगाने वाले को आवंटन

सरकार द्वारा सीधा आवंटन, बिना बोली प्रक्रिया

लक्ष्य

कुशल संसाधन आवंटन, पारदर्शिता, और राजस्व

लचीलापन, राष्ट्रीय सेवाओं और उभरते क्षेत्रों के लिए

राजस्व

महत्वपूर्ण राजस्व उत्पन्न होता है

न्यूनतम या नाममात्र शुल्क लिया जाता है

उपयुक्तता

व्यावसायिक दूरसंचार सेवाएँ, जहाँ प्रतिस्पर्धा हो

उपग्रह संचार, सरकारी सेवाएँ, सार्वजनिक हित के क्षेत्र

सैटेलाइट स्पेक्ट्रम और सैटकॉम का महत्व:

  • विस्तृत कवरेज: उपग्रहों की मदद से सैटकॉम सेवाएँ उन दूरदराज के इलाकों में पहुँचाई जा सकती हैं, जहाँ ज़मीन-आधारित नेटवर्क स्थापित करना मुश्किल या महंगा होता है।
  • लचीलापन: उपग्रह आधारित नेटवर्क स्थलीय नेटवर्क की तुलना में अधिक लचीले होते हैं क्योंकि इसमें कम ज़मीन-आधारित उपकरणों की ज़रूरत होती है, जिससे चरम मौसम या प्राकृतिक आपदाओं में भी यह प्रभावी रूप से काम कर सकता है।
  • भविष्य की संभावनाएँ: भारत में सैटकॉम का बाजार 2028 तक $20 बिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है, जो इसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र बनाता है। इसका उपयोग उन लाखों भारतीय घरों में ब्रॉडबैंड सुविधा देने के लिए किया जाएगा, जहाँ अब तक इंटरनेट की पहुँच नहीं है।

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