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भारत में कोयले से हरित ऊर्जा में परिवर्तन की उच्च लागत

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आईफॉरेस्ट (पर्यावरण, स्थिरता और प्रौद्योगिकी के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच) के एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि भारत को कोयले से मुक्ति के लिए अगले 30 वर्षों में 1 ट्रिलियन डॉलर (84 लाख करोड़ रुपये) से अधिक की आवश्यकता होगी। यह अध्ययन कोयला-निर्भर क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करते हुए कोयला खदानों और संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की लागत का अनुमान लगाता है।

भारत में कोयला संसाधन:

  • कोयला भंडार: राष्ट्रीय कोयला सूची 2023 के अनुसार, 1 अप्रैल 2023 तक भारत का कुल अनुमानित कोयला भंडार 21 बिलियन टन है।
  • कोयला उत्पादन: 2023-24 में भारत का कोयला उत्पादन 83 मीट्रिक टन था, जिसमें 11.71% की वृद्धि हुई।
  • कोयला आयात: 2023-24 में कुल कोयला आयात 261 मिलियन टन था। आयात मुख्य रूप से इस्पात, विद्युत और सीमेंट जैसे क्षेत्रों में किया जाता है।

न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन की आवश्यकता:

  • न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन” का तात्पर्य एक समावेशी और संतुलित परिवर्तन से है, जिसमें जीवाश्म ईंधन पर निर्भर श्रमिकों और समुदायों का ध्यान रखा जाए।
  • भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश है, और कोयला खनन तथा उससे जुड़ी गतिविधियों में बड़ी संख्या में लोग रोजगार पाते हैं:
  • 3.6 लाख से अधिक कर्मचारी सार्वजनिक क्षेत्र की कोयला कंपनियों में कार्यरत हैं, और निजी क्षेत्र में यह संख्या और भी अधिक है।
  • भारत ने 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए कोयला आधारित ऊर्जा से हरित ऊर्जा में परिवर्तन जरूरी होगा। लेकिन, यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि कोयला-निर्भर क्षेत्रों में कार्यरत लोग इस परिवर्तन में पीछे न छूटें, जो एक महत्वपूर्ण वित्तीय और सामाजिक चुनौती है।

न्यायोचित परिवर्तन की लागत:

भारत में कोयले से ऊर्जा परिवर्तन की लागत को समझने के लिए, अंतरराष्ट्रीय उदाहरणों और कोयला-निर्भर क्षेत्रों के आकलन से निम्नलिखित आठ प्रमुख लागत घटकों की पहचान की गई है:

  1. खदानों का बंद होना और पुन: उपयोग
  2. कोयला संयंत्रों का बंद होना और स्वच्छ ऊर्जा में रूपांतरण
  3. हरित नौकरियों के लिए कौशल विकास
  4. नए व्यवसायों को बढ़ावा देना
  5. समुदायों का समर्थन
  6. हरित ऊर्जा निवेश
  7. राजस्व हानि की भरपाई
  8. योजना और प्रशासनिक लागत

अनुमानित 1 ट्रिलियन डॉलर की लागत में से लगभग 48% राशि हरित ऊर्जा परियोजनाओं और स्वच्छ विकल्पों में निवेश के लिए आवंटित होगी।

परिवर्तन के लिए धन का स्रोत:

भारत को कोयले से हरित ऊर्जा में बदलने के लिए सार्वजनिक और निजी निवेश दोनों की जरूरत होगी:

  • सार्वजनिक वित्तपोषण: यह मुख्य रूप से अनुदान और सब्सिडी के माध्यम से “गैर-ऊर्जा” लागतों, जैसे सामुदायिक समर्थन, श्रमिकों के लिए कौशल विकास, और नए व्यवसायों को बढ़ावा देने पर केंद्रित होगा।
    • जिला खनिज फाउंडेशन फंड: भारत में खनिकों से एकत्रित 4 बिलियन डॉलर का यह फंड कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के साथ मिलकर कोयला-निर्भर समुदायों की मदद कर सकता है।
  • निजी निवेश: इसके तहत “ऊर्जा लागत” को कवर किया जाएगा, जो मुख्य रूप से स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं और हरित बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश पर ध्यान केंद्रित करेगा।

कोयले के चरणबद्ध उपयोग को कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन:

  1. दक्षिण अफ्रीका का न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन:

दक्षिण अफ्रीका की जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन इन्वेस्टमेंट प्लान (JET-IP) को कई अंतर्राष्ट्रीय देशों से वित्तीय सहायता प्राप्त हो रही है, जिसमें यूके, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, यूरोपीय संघ, नीदरलैंड और डेनमार्क शामिल हैं।

  • आवश्यक धनराशि: इस योजना के लिए दो दशकों में 98 बिलियन डॉलर की आवश्यकता है, जिसमें से 8.5 बिलियन डॉलर 2023-2027 के बीच उपलब्ध कराए जाएंगे।
  • फंडिंग का उपयोग: अधिकांश धनराशि हरित ऊर्जा निवेश पर खर्च की जाएगी। इसका वित्तपोषण रियायती ऋण, अनुदान और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से किया जाएगा।
  1. जर्मनी की विधायी कार्रवाई:

जर्मनी ने 2038 तक कोयला बिजली को समाप्त करने के लिए एक कानून बनाया है, जिसके तहत कोयला खदानों और बिजली संयंत्रों को बंद करने के लिए 55 बिलियन डॉलर से अधिक का आवंटन किया गया है।

  • धनराशि का उपयोग: इस धनराशि का उपयोग कोयला-निर्भर क्षेत्रों को आर्थिक विकास के माध्यम से सहायता प्रदान करने के लिए किया जाएगा।
  1. भारत में कोयला-निर्भर जिलों का अध्ययन:

भारत में कोयले पर निर्भर चार जिलों – कोरबा (छत्तीसगढ़), बोकारो और रामगढ़ (झारखंड), तथा अंगुल (ओडिशा) पर एक अध्ययन किया गया।

  • उद्देश्य: अध्ययन का लक्ष्य इन जिलों में कोयले पर निर्भरता का आकलन करना और न्यायोचित परिवर्तन की लागत का अनुमान लगाना था।
  • बोकारो के आंकड़े:
    • बोकारो में कोयला आधारित उद्योग जिले के घरेलू उत्पाद में 54% का योगदान देते हैं।
    • यह क्षेत्र कोयला खनन, बिजली संयंत्रों, और इस्पात एवं सीमेंट जैसे संबंधित क्षेत्रों में लगभग 1,39,000 श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है।

आर्थिक प्रक्षेपण: अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि बोकारो में कोयले का पूर्ण उन्मूलन 2040 के बाद शुरू होगा।

  • निवेश की आवश्यकता: श्रमिकों के पुनर्वास, कोयला स्थलों के पुननिर्माण, और हरित ऊर्जा अवसंरचना के विकास के लिए 30 वर्षों में 1.01 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष:

इन केस स्टडीज़ से स्पष्ट होता है कि कोयले के चरणबद्ध उपयोग को कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वित्तीय सहायता महत्वपूर्ण है। दक्षिण अफ्रीका और जर्मनी की योजनाएं एक प्रगतिशील दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती हैं, जबकि भारत में कोयले-निर्भर जिलों का अध्ययन यह दर्शाता है कि स्थानीय स्तर पर न्यायोचित परिवर्तन के लिए आवश्यक निवेश और योजना की आवश्यकता है। इस प्रकार, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और स्थानीय प्रयासों का संयोजन वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा।

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