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“कोइमा” नामक की मछली की प्रजाति की खोज:

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हाल ही में एक शोध में कोइमा” नामक एक नई मीठे पानी की मछली की प्रजाति की खोज हुई है, जो पश्चिमी घाट में पाई जाती है। यह खोज इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता और नए शोध की आवश्यकता को दर्शाती है। यह अध्ययन केरल विश्वविद्यालय ऑफ फिशरीज एंड ओशन स्टडीज और शिव नादर इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस के वैज्ञानिकों ने किया। उनकी रिपोर्ट जर्नल जूटाक्सा में प्रकाशित हुई है।

नाम “कोइमा” का महत्व

  1. स्थानीय भाषा से प्रेरित:
    • “कोइमा” नाम मलयालम भाषा से लिया गया है, जिसमें इसका मतलब लोचेस है।
    • यह नाम स्थानीय संस्कृति और ज्ञान को सम्मान देता है।
    • यह खोज पश्चिमी घाट की जलीय जैव विविधता को बेहतर तरीके से समझने और संरक्षित करने की अपील करती है।

 कोइमा की विशेषताएं

  1. अनूठा रंग:
    • कोइमा का शरीर पीले-भूरे रंग का होता है।
    • इसकी पार्श्व रेखा (lateral line) पर काले धब्बों की एक पंक्ति होती है।
    • इसके पंख पारदर्शी (hyaline) होते हैं और इसकी पीठ पर कोई स्थायी धारियां नहीं होतीं।
    • ये गुण इसे नेमाचिलिडाई परिवार की अन्य मछलियों से अलग बनाते हैं।

पश्चिमी घाट का महत्व

  1. जैव विविधता का केंद्र:
    पश्चिमी घाट को जैव विविधता हॉटस्पॉट माना जाता है, जहां कई स्थानीय प्रजातियां पाई जाती हैं।

    • विशेष रूप से मीठे पानी की मछलियां इस क्षेत्र की जैव विविधता का अहम हिस्सा हैं।
    • “कोइमा” की खोज से पता चलता है कि इस क्षेत्र की जलीय जीवन को और गहराई से समझने और संरक्षित करने की जरूरत है।

टैक्सोनोमिक पुनर्विचार की आवश्यकता

  1. प्रजातियों का पुनर्मूल्यांकन:
    शोधकर्ताओं ने बताया कि मीठे पानी की कई मछलियों की सही पहचान के लिए टैक्सोनोमिक पुनरीक्षण बेहद जरूरी है।

    • छोटी प्रजातियों और उनके शरीर की भिन्नताओं को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है।
    • नेमाचिलिड लोचेस जैसी प्रजातियों की सही पहचान जरूरी है।

कोइमा का आवास

  1. कोइमा रेमादेवी:
    • यह तेज़ बहाव वाले नदियों में चट्टानी सतहों के बीच रहती है।
    • इसे अब तक सिर्फ साइलेंट वैली नेशनल पार्क की कुंती नदी में पाया गया है।
  2. कोइमा मोनिलिस:
    • यह कावेरी नदी की कई सहायक नदियों में पाई जाती है।
    • यह 350 से 800 मीटर ऊंचाई के बीच विभिन्न माइक्रो-हैबिटैट्स में रहती है।

शोध की प्रक्रिया

  1. शोध पद्धति:
    • शोधकर्ताओं ने कुंती, भवानी, मोयर, काबिनी और पांबर नदियों से मछलियों के नमूने एकत्र किए।
    • उन्होंने आकृतिगत (morphological) और आनुवंशिक (genetic) गुणों का गहराई से अध्ययन किया।

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