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सूखा और सिंचाई के लिए बढ़ती पानी की जरूरतों के कारण खेतों और शहरों में भूजल पर अधिक निर्भरता बढ़ रही है, जिससे भूमिगत जल आपूर्ति में लगातार गिरावट आ रही है।
अब नासा और जर्मन उपग्रहों द्वारा किए गए अवलोकनों के आधार पर वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने यह पाया है कि मई 2014 से धरती पर मीठे और ताजे जल की मात्रा में अचानक गिरावट आई है और तब से यह कमी लगातार बनी हुई है।
ताजे जल के भंडारों में गिरावट:
वैश्विक स्थिति:
- वर्ष 2015 से 2023 के बीच, झीलों, नदियों और भूजल सहित भूमि पर संग्रहीत ताजे जल में 1,200 घन किलोमीटर की कमी आई है।
- लगभग आधे देशों में ताजे जल की गुणवत्ता में गिरावट आई है। 400 से अधिक नदी बेसिनों में जल प्रवाह में कमी देखी जा रही है, जिनमें कांगो बेसिन जैसे महत्वपूर्ण जलग्रहण क्षेत्र भी शामिल हैं।
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 नदियों के लिए पिछले तीन दशकों में सबसे सूखा वर्ष होगा, जिससे ताजे जल का संकट और बढ़ेगा।
भारतीय स्थिति:
- भारत में विश्व की 18% आबादी रहती है, लेकिन देश में ताजे जल के केवल 4% संसाधन हैं और यह पृथ्वी की सतह का सिर्फ़ 4% हिस्सा घेरता है।
- देश की आधी नदियाँ प्रदूषित हैं, और 150 से अधिक प्रमुख जलाशय अपनी भंडारण क्षमता के केवल 38% पर काम कर रहे हैं, जिससे जल संकट और बढ़ गया है।
- नीति आयोग के 2018 के जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार, भारत की बड़ी आबादी जल तनाव से प्रभावित है। करीब 600 मिलियन भारतीय जल की कमी से जूझ रहे हैं।
- पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्यों में भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिसके कारण जल स्तर में गंभीर गिरावट आई है।
- मध्य और पश्चिमी भारत के राज्य जैसे राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात अक्सर सूखे का सामना करते हैं, जिससे जल भंडार और भी घटते जा रहे हैं।
ताजे जल के स्तर में गिरावट के प्रमुख कारण
- अल नीनो घटनाएँ:
- वर्ष 2014-2016 की अल नीनो घटना ने वैश्विक वर्षा के पैटर्न को प्रभावित किया, जिससे सूखा और जल संकट और भी बढ़ा।
- प्रशांत महासागर के तापमान में वृद्धि के कारण वायुमंडलीय जेट धाराएँ बदल गईं, जिससे पूरे विश्व में जलवायु संकट गहरा गया।
- जलवायु परिवर्तन:
- जलवायु परिवर्तन के कारण असमान वर्षा और अनियमित मानसून जैसी समस्याएँ बढ़ी हैं, जिसके कारण सूखा और अनावृष्टि जैसी घटनाएँ बढ़ गईं।
- वर्षा के बाद तीव्र अपवाह और लंबे समय तक सूखा रहने से जल अवशोषण क्षमता में कमी आ रही है।
- जलवायु परिवर्तन से वाष्पीकरण की दर बढ़ी है, जिससे सूखा और जल संकट की स्थिति और गहरी हो रही है।
- भू–जल का अत्यधिक दोहन:
- विशेष रूप से सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सिंचाई के लिए भू-जल का अत्यधिक उपयोग हो रहा है, जो जल स्तर में गिरावट का कारण बन रहा है।
- भू-जल का दोहन अधिक होने के कारण प्राकृतिक पुनःपूर्ति से जल स्तर को संतुलित रखना मुश्किल हो रहा है।
- पारिस्थितिकी तंत्र की क्षति:
- वनों की कटाई और आर्द्रभूमि जैसे पारिस्थितिकी तंत्रों के नष्ट होने से जल धारण की क्षमता घट गई है।
- मृदा का अपरदन और भूमि की जल अवशोषण क्षमता कम होने से जल भंडारण पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।
- कृषि पद्धतियाँ और प्रदूषण:
- अकुशल सिंचाई विधियों और जल की अधिक मांग वाली फसलों के कारण जल की बर्बादी हो रही है।
औद्योगिक अपशिष्ट और अनुपचारित अपशिष्ट जल जल स्रोतों को प्रदूषित कर रहे हैं, जिससे जल की गुणवत्ता और उपलब्धता प्रभावित हो रही है।
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