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हाल ही में, मतदाताओं के बीच विश्वास बढ़ाने और चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग को और मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। यह आवश्यकता विशेष रूप से चुनावों में पारदर्शिता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
चुनाव आयोग से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
- संविधानिक निकाय: भारत का चुनाव आयोग (ईसीआई) 25 जनवरी 1950 को स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना था।
- अखिल भारतीय क्षेत्राधिकार: चुनाव आयोग का कार्यक्षेत्र केंद्र और राज्य सरकारों दोनों पर समान रूप से लागू होता है।
- शक्तियां और कार्य: चुनाव आयोग को चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करने की शक्तियां प्राप्त हैं। यह संसद, राज्य विधानमंडल, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों पर जिम्मेदारी रखता है।
- संरचना: चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और अधिकतम दो चुनाव आयुक्त होते हैं। सभी सदस्य समान शक्तियों और जिम्मेदारियों के साथ कार्य करते हैं।
- नियुक्ति प्रक्रिया: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सिफारिशों के आधार पर की जाती है, जिसमें विपक्ष के नेता और केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य भी शामिल होते हैं।
- कार्यकाल और शर्तें: चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो।
- निष्कासन: मुख्य चुनाव आयुक्त को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह ही निष्कासित किया जा सकता है, जबकि अन्य चुनाव आयुक्तों को सीईसी की सिफारिश पर हटाया जा सकता है।
चुनाव आयोग से संबंधित प्रमुख संवैधानिक लेख:
- अनुच्छेद 324: चुनाव आयोग को चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्तियां प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 325: यह धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर मतदाता सूची में भेदभाव को निषेध करता है।
- अनुच्छेद 326: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के लिए वयस्क मताधिकार का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 329: यह चुनावों में न्यायालयों के हस्तक्षेप को निषेध करता है, केवल निर्वाचन याचिकाओं के मामलों में न्यायालय हस्तक्षेप कर सकते हैं।
भारत की चुनाव प्रणाली में प्रमुख मुद्दे:
- मतदाता मतदान में गिरावट: जागरूकता की कमी, संस्थागत बाधाएं और राजनीतिक मोहभंग के कारण मतदान में कमी आ रही है।
- चुनावी हिंसा: चुनावों के दौरान हिंसा और धमकियाँ मतदान प्रक्रिया को बाधित करती हैं, खासकर ग्रामीण और संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में।
- गलत सूचना और मीडिया का शोषण: सोशल मीडिया सहित मीडिया का हेरफेर मतदाताओं को विभाजित करता है और चुनावी परिणामों को प्रभावित करता है।
- लैंगिक असमानता: महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बहुत कम है, जिससे उनके राजनीतिक अधिकारों की हनन होती है।
- काले धन का प्रयोग: अनियमित चुनावी वित्तपोषण के कारण काले धन का प्रभाव बढ़ता है।
- राजनीतिक अपराधीकरण: 2024 के चुनावों में 46% निर्वाचित सदस्य पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
- दलबदल: दलबदल विरोधी कानून के बावजूद राजनीतिक दलबदल की समस्या बनी रहती है।
- धनी उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि: राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में धन का असमान प्रभाव है, जिससे अन्य उम्मीदवारों के लिए मुश्किल होती है।
चुनाव आयोग में सुधार की आवश्यकता:
- चुनाव वित्तपोषण पारदर्शिता: राजनीतिक दलों के वित्तपोषण पर स्वतंत्र ऑडिट और राज्य वित्तपोषण की व्यवस्था लागू करना।
- निष्पक्ष नियुक्ति प्रक्रिया: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में पारदर्शिता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
- अपराधीकरण पर रोक: गंभीर आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों को चुनावी प्रक्रिया से बाहर करना।
- मतदाता शिक्षा और उम्मीदवारों की पारदर्शिता: मतदाता को शिक्षा देना और उम्मीदवारों के खुलासों में पारदर्शिता लाना।
- धन असमानताओं को सीमित करना: उम्मीदवारों के व्यय पर कठोर सीमा लागू करना और चुनावी खर्चों का ऑडिट करना।
- दलबदल विरोधी कानून में सुधार: राजनीतिक दलबदल और खरीद-फरोख्त के खिलाफ सख्त दंड लागू करना।