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हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने तटीय संकट पर जानकारी दी कि भारत के लगभग एक-तिहाई तट कटाव के खतरे में हैं। यह समस्या तटीय प्रबंधन की प्रभावी रणनीतियों की जरूरत को उजागर करती है।
तटीय संकट : रिपोर्ट की मुख्य बातें
- देशव्यापी तटीय कटाव का आंकड़ा:
- पिछले तीन दशकों में भारत के 6% तटीय क्षेत्रों में कटाव हुआ।
- 9% तटीय क्षेत्र में वृद्धि (संचय) दर्ज की गई, जबकि 39.6% क्षेत्र स्थिर रहा।
- कर्नाटक में क्षेत्रीय भिन्नताएँ:
- दक्षिण कन्नड़: कर्नाटक का सबसे प्रभावित जिला, जहां 66 किमी तटरेखा में से 48.4% (17.74 किमी) कटाव हुआ।
- उडुपी:71 किमी तटरेखा में से 34.7% (34.96 किमी) कटाव हुआ।
- उत्तर कन्नड़: सबसे कम कटाव, 175.65 किमी तटरेखा में से केवल 3% (21.64 किमी)।
- डेटा और अध्ययन की विधि:
- यह अध्ययन नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च (NCCR) द्वारा किया गया।
- तटरेखा में बदलाव का आंकलन 1990 से 2018 तक सैटेलाइट इमेज और फील्ड सर्वेक्षण के माध्यम से किया गया।
- जोखिम पहचान और मानचित्रण:
- इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन एंड सर्विसेज (INCOIS) ने मल्टी–हैज़र्ड वल्नरेबिलिटी मैप्स (MHVM) तैयार किए।
- इन मानचित्रों में समुद्र स्तर में वृद्धि, तटरेखा में बदलाव, और आपदाओं जैसे सुनामी और तूफानी लहरों के जोखिम वाले क्षेत्रों को दर्शाया गया है।
अन्य राज्यों में तटीय कटाव की स्थिति:
- पश्चिम बंगाल:
- राज्य के लगभग 5% तटीय क्षेत्र में कटाव हुआ है।
- सुंदरबन क्षेत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
- केरल:
- केरल के लगभग 4% तटीय क्षेत्र में कटाव दर्ज किया गया है।
- यह स्थानीय समुदायों और पारिस्थितिक तंत्रों के लिए बड़ी समस्या बन रहा है।
- तमिलनाडु:
- राज्य के 7% तटीय क्षेत्र में कटाव हुआ है।
- इससे तटीय बुनियादी ढांचे और लोगों की आजीविका को खतरा है।
तटीय कटाव के कारण:
- प्राकृतिक कारण:
- तरंग क्रिया (Wave Action): उच्च ज्वार और तूफानों के दौरान समुद्र की लहरें तटीय इलाकों को काटती हैं।
- समुद्र–स्तर में वृद्धि (Sea-Level Rise): जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का स्तर बढ़ने से तटीय बाढ़ और कटाव की घटनाएं बढ़ गई हैं।
- तूफानी लहरें (Storm Surges): चक्रवात और तूफानों से उत्पन्न लहरें निचले तटीय क्षेत्रों में गंभीर कटाव का कारण बनती हैं।
- मानवजनित कारण:
- तटीय विकास (Coastal Development): बंदरगाह और समुद्री दीवारों जैसे निर्माण कार्य तटीय क्षेत्र में प्राकृतिक तलछट प्रवाह को बाधित करते हैं।
- अवैध रेत खनन (Illegal Sand Mining): समुद्र तट और नदियों से रेत निकालने से समुद्र तटीय क्षेत्रों में रेत की प्राकृतिक आपूर्ति बाधित होती है।
- मैंग्रोव की कटाई (Deforestation of Mangroves): मैंग्रोव वनों की कटाई से तटीय सुरक्षा कमजोर होती है, जिससे कटाव तेज होता है।
तटीय कटाव के प्रभाव:
- भूमि और आजीविका पर प्रभाव:
- तटीय कटाव से कृषि योग्य भूमि और आवासीय क्षेत्र नष्ट हो जाते हैं।
- तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समुदाय विस्थापित होते हैं, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित होती है।
- बुनियादी ढांचे को नुकसान: सड़कों, पुलों, और इमारतों को तटीय कटाव से क्षति पहुंचती है, जिससे आर्थिक नुकसान होता है।
- पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
- मैंग्रोव, कोरल रीफ, और आर्द्रभूमि जैसे तटीय पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो जाते हैं।
- समुद्री जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- जल प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याएं:
- कटाव से समुद्र में मिट्टी और अन्य कण घुल जाते हैं, जिससे समुद्री जल प्रदूषित होता है।
- इसके कारण स्थानीय समुदायों में स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ती हैं।