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केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आश्वासन दिया कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) उत्पादन लागत से 50% अधिक तय करेगी और किसानों से फसल की खरीद भी सुनिश्चित करेगी।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) क्या है?
अर्थ: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) वह न्यूनतम मूल्य है जिस पर सरकार किसानों से उनकी फसलें खरीदती है। इसका उद्देश्य किसानों को फसल कीमतों में अचानक गिरावट से बचाना है।
घोषणा: यह मूल्य हर फसल बोने के मौसम की शुरुआत में सरकार द्वारा कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर घोषित किया जाता है।
उद्देश्य:
- किसानों को फसल की उचित कीमत सुनिश्चित करना।
- कृषि उत्पादों में मूल्य स्थिरता बनाए रखना।
- किसानों को लागत से अधिक मुनाफा प्रदान करना।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का इतिहास–
- शुरुआत:
- MSP की अवधारणा पहली बार 1966 में प्रस्तावित की गई थी।
- इसका प्रेरणा स्रोत हरित क्रांति थी, जिसने भारत में कृषि उत्पादन में वृद्धि की आवश्यकता को उजागर किया।
- लक्ष्य:
- सरकार हर साल प्रमुख कृषि उपज के लिए MSP तय करती है ताकि किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य मिल सके।
- यह प्रणाली खरीफ और रबी दोनों फसलों को समान रूप से प्रभावित करती है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का महत्व–
- स्थिर आय सुनिश्चित करना:
- वित्तीय सुरक्षा: बाजार में कीमतों की अस्थिरता के खिलाफ किसानों को आर्थिक सुरक्षा मिलती है।
- जोखिम प्रबंधन: फसल विफलता और कम उत्पादन की स्थिति में भी किसानों की आय सुरक्षित रहती है।
- सूचित निर्णय लेने में मदद:
- फसल चयन: बुवाई के मौसम की शुरुआत में MSP की घोषणा किसानों को यह तय करने में मदद करती है कि उन्हें कौन-सी फसल उगानी चाहिए।
- आर्थिक लाभ: किसान अपने खेत के आकार, जलवायु और सिंचाई सुविधाओं के अनुसार अधिक लाभ देने वाली फसल का चुनाव कर सकते हैं।
- फसल विविधीकरण को प्रोत्साहन:
- विविध फसलें: 1966-67 में गेहूं के लिए शुरू हुई MSP व्यवस्था अब 24 फसलों तक बढ़ा दी गई है।
- आय में वृद्धि: किसानों को अलग-अलग फसलें उगाने और अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जाता है।
- लक्षित फसल उत्पादन:
- खाद्य सुरक्षा: सरकार कम आपूर्ति वाली खाद्य फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए MSP का उपयोग करती है।
- उत्पादन वृद्धि: इससे किसानों को वांछित फसलों की खेती करने की प्रेरणा मिलती है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से जुड़ी समस्याएं:
- गैर–आनुपातिक वृद्धि:
- मूल्य वृद्धि की कमी:
- MSP में वृद्धि उत्पादन लागत के साथ समानुपातिक नहीं है।
- क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014-17 के दौरान MSP में वृद्धि की दर घट गई थी।
- मूल्य वृद्धि की कमी:
- सीमित पहुंच:
- लाभ की कमी:
- सभी किसान और सभी फसलें इस योजना का लाभ नहीं उठा पाते हैं।
- जागरूकता की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों विशेषकर पूर्वोत्तर भारत में MSP की कमजोर लागू प्रणाली देखी गई है।
- लाभ की कमी:
- अधिक भंडारण समस्या: पर्याप्त भंडारण सुविधाओं के अभाव में सरकारी गोदामों में अनाज का बड़ा भंडार जमा हो जाता है।
- पीडीएस और बफर स्टॉक: यह स्टॉक सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और बफर स्टॉक योजनाओं की आवश्यकता से दोगुना हो चुका है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा: MSP में वृद्धि से भारतीय कृषि उत्पाद महंगे हो जाते हैं, जिससे वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है।
- आर्थिक दबाव: चावल और गेहूं की असीमित खरीद बाजार मूल्य से काफी अधिक दरों पर की जाती है, जिससे सरकारी वित्तीय बोझ बढ़ता है।