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भारतीय वैज्ञानिकों ने भारतीय महासागर में 4,500 मीटर गहराई पर सक्रिय हाइड्रोथर्मल वेंट की दुर्लभ तस्वीर ली।
मुख्य बिंदु:
- ऐतिहासिक खोज: राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR) और राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) के वैज्ञानिकों ने यह उपलब्धि हासिल की।
- खोज का महत्व:
- यह खोज भारत सरकार के₹4,000 करोड़ के ‘डीप ओशन मिशन‘ के अंतर्गत की गई है।
- इससे खनिज संसाधनों की खोज और उनके उपयोग में नए अवसर मिल सकते हैं।
- गहराई पर खोज: सक्रिय हाइड्रोथर्मल वेंट 4,500 मीटर की गहराई पर स्थित है, जो समुद्र के अज्ञात हिस्सों का खुलासा करता है।
- वैज्ञानिक महत्व: यह खोज महासागर विज्ञान के अध्ययन को नई दिशा देगी और भारत की तकनीकी क्षमताओं को प्रदर्शित करती है।
- भविष्य की संभावना: इस खोज से महासागर में खनिज संपदा के सतत उपयोग और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने की दिशा में अनुसंधान को प्रोत्साहन मिलेगा।
सक्रिय हाइड्रोथर्मल वेंट:
- परिचय: सक्रिय हाइड्रोथर्मल वेंट महासागर तल पर प्राकृतिक छिद्र होते हैं, जहां से भू-तापीय रूप से गर्म और खनिज-समृद्ध पानी समुद्र में प्रवाहित होता है। ये अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र और भूवैज्ञानिक घटनाओं का निर्माण करते हैं।
- बनने की प्रक्रिया:
- पानी का प्रवेश:समुद्र का पानी महासागर की परतों में दरारों के माध्यम से प्रवेश करता है।
- मैग्मा द्वारा गर्म होना:पानी समुद्र तल के नीचे मौजूद मैग्मा द्वारा अत्यधिक गर्म हो जाता है।
- खनिजों का घुलना:गर्म होने पर, पानी आसपास की चट्टानों से खनिजों को घोल लेता है।
- वेंट का निर्माण:यह गर्म और खनिज-समृद्ध पानी वापस समुद्र में निकलता है, जिससे हाइड्रोथर्मल वेंट बनते हैं।
- भौगोलिक स्थिति:
- ये वेंट मुख्य रूप से ज्वालामुखीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- ये अक्सर उन स्थानों पर मिलते हैं जहां समुद्री प्लेटें अलग हो रही होती हैं, जैसे कि मध्य-महासागरीय रिज।
- हाइड्रोथर्मल वेंट के प्रकार:
- ब्लैक स्मोकर्स:
- इनसे 350°C से भी अधिक गर्म पानी निकलता है।
- पानी में सल्फाइड्स की उपस्थिति इसे काला रंग देती है।
- व्हाइट स्मोकर्स:
- इनसे अपेक्षाकृत ठंडा पानी निकलता है।
- इसमें बेरियम, कैल्शियम और सिलिकॉन जैसे हल्के रंग के खनिज होते हैं, जो इसे सफेद रंग प्रदान करते हैं।
- ब्लैक स्मोकर्स:
गहरे सागर मिशन (Deep Ocean Mission):
गहरे सागर मिशन भारत सरकार का प्रमुख पहल है, जिसे 2021 में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के तहत शुरू किया गया। इसका उद्देश्य महासागर के विशाल संसाधनों का अन्वेषण और उपयोग करना है, साथ ही महासागर विज्ञान और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की चुनौतियों का समाधान करना है।
- उद्देश्य:
- गहरे सागर संसाधनों का अन्वेषण: भारतीय महासागर में पाए जाने वाले हाइड्रोथर्मल वेंट्स, पॉलिमेटैलिक नोड्यूल्स, और कोबाल्ट-समृद्ध परतों का अध्ययन और मानचित्रण।
- गहरे सागर खनन के लिए तकनीक का विकास: 6,000 मीटर की गहराई तक खनन के लिए उन्नत उपकरण और वाहन विकसित करना और उन्हें तैनात करना।
- जैव विविधता और पर्यावरण अध्ययन: गहरे सागर के अद्वितीय पारिस्थितिक तंत्र और जीवन रूपों पर अनुसंधान करना।
- जलवायु परिवर्तन और महासागर निगरानी: जलवायु परिवर्तन और इसके महासागरों पर प्रभाव की निगरानी करने की भारत की क्षमता को मजबूत करना।
- समुद्री जैव प्रौद्योगिकी और औषधि विकास: औद्योगिक और औषधीय उपयोग के लिए समुद्री जीवों का अध्ययन और अनुसंधान।
- महत्व:
- यह मिशन भारत की गहरी महासागर क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ वैश्विक महासागर अनुसंधान में योगदान देगा।
- समुद्री संसाधनों के टिकाऊ उपयोग और जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने में मददगार और समुद्री दवाओं के विकास में सहायक।