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अमेरिका ने पेरिस समझौते के तहत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को अपडेट करते हुए 2035 तक उत्सर्जन में 2005 के स्तर से 61-66% की कमी करने का लक्ष्य घोषित किया है।
मुख्य बिंदु:
- उत्सर्जन कटौती लक्ष्य: अमेरिका ने 2035 तक 2005 के स्तर से 61-66% तक उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य घोषित किया।
- पहले से मौजूद लक्ष्य: यह लक्ष्य 2030 तक 2005 के स्तर से 50-52% उत्सर्जन कटौती के मौजूदा लक्ष्य पर आधारित है।
- NDC का दूसरा दौर: पेरिस समझौते के तहत, 2035 के लिए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) का दूसरा दौर अब तय किया जा रहा है।
- समय सीमा: अगले साल फरवरी तक सभी देशों को 2035 के लिए अपने NDC जमा करने होंगे।
- 2020 लक्ष्य पूरा: अमेरिका ने 2020 तक 2005 के स्तर से 17% उत्सर्जन कटौती का लक्ष्य पूरा किया।
जलवायु परिवर्तन और अमेरिका की जिम्मेदारी:
- उत्सर्जन में कटौती का लक्ष्य:
- अमेरिका को 2030 तक 2005 के स्तर से 62-65% उत्सर्जन में कटौती करनी होगी ताकि 5°C तापमान वृद्धि के लक्ष्य के अनुरूप हो सके।
- वर्तमान में, अमेरिका ने इस स्तर को 2035 तक हासिल करने का लक्ष्य रखा है, जो निर्धारित समय सीमा से पीछे है।
- वैश्विक उत्सर्जन में कटौती:
- IPCC के अनुसार, 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन को 2019 के स्तर से 43% कम करना आवश्यक है ताकि 5°C लक्ष्य को जीवित रखा जा सके।
- अमेरिका के लिए यह लक्ष्य अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐतिहासिक उत्सर्जन में इसका बड़ा योगदान है।
- अमेरिका का प्रदर्शन:
- 2030 तक, अमेरिका अपने 2019 के उत्सर्जन स्तर से 46% कटौती का अनुमान लगा रहा है।
- यह वैश्विक लक्ष्य (43%) से अधिक है, लेकिन ऐतिहासिक उत्सर्जन के संदर्भ में इसे अपर्याप्त माना जा रहा है।
उत्सर्जन क्या है?
उत्सर्जन (Emission) से तात्पर्य उन गैसों और कणों के वातावरण में उत्सर्जन से है, जो मानव गतिविधियों या प्राकृतिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं। मुख्य ग्रीनहाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) और फ्लोरोकार्बन शामिल हैं।
जलवायु परिवर्तन में उत्सर्जन का प्रभाव:
- ग्लोबल वार्मिंग: ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन पृथ्वी के वायुमंडल में गर्मी को फँसाता है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है। औद्योगिक क्रांति के बाद से, CO₂ की मात्रा में लगभग 30% की वृद्धि हुई है।
- मौसम में परिवर्तन: उत्सर्जन के कारण मौसम पैटर्न में बदलाव हो रहा है, जिससे सूखा, बाढ़, और तूफानों की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हो रही है।
- समुद्र स्तर में वृद्धि: ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्र के तापमान में वृद्धि के कारण समुद्र स्तर बढ़ रहा है, जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और भूमि क्षरण की समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
चुनौतियाँ:
- ऊर्जा क्षेत्र पर निर्भरता: भारत में बिजली उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता के कारण CO₂ उत्सर्जन का एक तिहाई हिस्सा ऊर्जा क्षेत्र से आता है। अकार्बनीकरण की दिशा में कदम उठाना आवश्यक है।
- आर्थिक प्रभाव: एशियाई विकास बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण भारत की GDP में 2070 तक 25% तक की कमी हो सकती है।
- प्राकृतिक आपदाएँ: बढ़ती बारिश और चरम मौसम की घटनाओं के कारण भूस्खलन और बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि हो रही है, जिससे जनजीवन और बुनियादी ढाँचे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
- मानवाधिकारों पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियाँ विशेषकर कमजोर समुदायों, जैसे आदिवासी लोगों, की पारंपरिक आजीविका को प्रभावित कर रही हैं, जिससे उनके मानवाधिकारों पर असर पड़ रहा है।
बकू, अजरबैजान में आयोजित COP29 सम्मेलन में विकसित देशों ने जलवायु वित्त को $100 बिलियन से बढ़ाकर $300 बिलियन प्रति वर्ष करने का संकल्प लिया है। यह लक्ष्य 2035 तक प्राप्त किया जाएगा।