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कांगो हिंसा: मानवता पर संकट

सामान्य अध्ययन पेपर II: मानव संसाधन, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव

चर्चा में क्यों? 

कांगो हिंसा: कांगो में बढ़ती हिंसा के कारण संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) ने आपातकालीन सत्र बुलाया है। इस सत्र में कांगो सरकार ने रवांडा और विद्रोही समूह M23 को मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराने और मानवाधिकार हनन की जांच के लिए एक तथ्य-खोज मिशन की मांग की है।

कांगो हिंसा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

  • औपनिवेशिक काल: 1885 में बेल्जियम के राजा लियोपोल्ड द्वितीय ने इस क्षेत्र को उपनिवेश बनाया। यह औपनिवेशिक शासन कांगोवासियों के लिए क्रूर साबित हुआ। इस दौरान लगभग 20 लाख लोगों की मौत हुई, जो उस समय की आबादी की लगभग आधी जनसंख्या थी। इस दौरान कांगोवासियों को दयनीय परिस्थितियों में रखा गया, उनके श्रम का शोषण किया गया और उन्हें अत्याचार झेलने पड़े।
  • स्वतंत्रता की शुरुआत: 1950 के दशक में कांगो में स्वतंत्रता आंदोलन जोर पकड़ने लगा। 1960 आते आते कांगो को बेल्जियम से स्वतंत्रता मिली और देश ने प्रधानमंत्री पैट्रिस लुमुंबा को चुना। परंतु कांगो के विशाल प्राकृतिक संसाधनों ने बाहरी शक्तियों को आकर्षित किया। लुमुंबा का पश्चिमी ताकतों के खनन में हस्तक्षेप का विरोध उनके पतन का कारण बना। 1961 में उनकी हत्या कर दी गई। इसके बाद देश में अनिश्चितता का दौर शुरू हुआ। अंततः मोबुटू सेसे सेको ने सत्ता संभाली। मोबुटू ने विदेशी ताकतों को खुश करके धन इकट्ठा किया लेकिन 1990 के दशक में शीत युद्ध खत्म होने के बाद कांगो की स्थिति और बिगड़ने लगी।
  • गृहयुद्ध और विद्रोह: 1990 के दशक में पड़ोसी देश रवांडा में हुए नरसंहार का प्रभाव कांगो पर भी पड़ा। तुत्सी और हुतू जातीय समूहों के बीच संघर्ष ने कांगो की सीमा में प्रवेश कर वहां की स्थिति और भी खराब कर दी। इसके बाद प्रथम कांगो (1996-1997) युद्ध शुरू हुआ, जिसमें मोबुटू का पतन हुआ। इसके बाद, लॉरेंट काबिला ने सत्ता संभाली लेकिन उन्होंने भी अपने समर्थकों से विश्वासघात किया। यह स्थिति द्वितीय कांगो युद्ध (1998-2003) की ओर ले गई, जिसे “अफ्रीका का विश्व युद्ध” कहा गया। इस युद्ध में 50 लाख से अधिक लोग मारे गए। 2001 में काबिला की हत्या के बाद उनके बेटे जोसेफ काबिला ने सत्ता संभाली। हालांकि हिंसा में कमी आई, लेकिन देश के पूर्वी हिस्से में विद्रोही समूह और खनिज संसाधनों के कारण अस्थिरता बनी रही।
  • जोसेफ कबीला का दूसरा कार्यकाल 2016 में समाप्त हुआ। चुनावों में देरी और बढ़ते विरोध प्रदर्शन ने स्थिति को और खराब कर दिया। वर्तमान में कांगो हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है। देश में शांति और स्थायित्व की संभावना अभी भी दूर है।

कांगो या कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC)

  • स्थान: कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) मध्य अफ्रीका में स्थित है और यह अफ्रीका का दूसरा सबसे बड़ा देश है, जो भूमि क्षेत्र के हिसाब से विशाल है। 
  • यह नौ देशों से अपनी सीमा साझा करता है: कांगो गणराज्य, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, दक्षिण सूडान, उगांडा, रवांडा, बुरुंडी, तंजानिया, जाम्बिया और एंगोला।

  • राजधानी: कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य की राजधानी और सबसे बड़ा शहर किंशासा है, जो देश का आर्थिक और प्रशासनिक केंद्र भी है।
    • यहां की आधिकारिक भाषा फ्रेंच है। फ्रेंच के अतिरिक्त यहां कितुबा, लिंगाला, स्वाहिली और शिलुबा भाषा भी बोली जाती हैं।
    • यहां की मुद्रा कांगोलीज़ फ्रैंक (CDF) है।
    • कांगो नदी, जो अफ्रीका की दूसरी सबसे लंबी नदी है, कांगो बेसिन के माध्यम से बहती है। यह देश के अधिकांश हिस्से में बहने वाली प्रमुख जलधारा है।
    • पूर्वी कांगो क्षेत्र में अल्बर्टाइन रिफ्ट पर्वत श्रंखला स्थित है, जिसमें विरुंगा पर्वत और सक्रिय माउंट निर्गोंगो ज्वालामुखी शामिल हैं।
    • कांगो में कई बड़ी झीलें हैं, जैसे कि झील किवु, झील तांगान्यिका और झील एडवर्ड।

कांगो में संघर्ष और विद्रोह के मूल कारण

  • सांस्कृतिक और जातीय विभाजन: कांगो का संघर्ष उसकी विविध जातीय संरचना से जुड़ा हुआ है, जो औपनिवेशिक काल से उत्पन्न हुआ। यूरोपीय उपनिवेशवादियों ने जब कांगो की सीमाएँ खींचीं, तो विभिन्न जातीय समूहों को एक साथ बांध दिया, जो पहले एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी थे। इस प्रकार, औपनिवेशिक शासन ने “फूट डालो और राज करो” की नीति अपनाकर इन तनावों को और बढ़ाया, जिसके परिणामस्वरूप बाद में जातीय संघर्षों का सिलसिला शुरू हुआ। यह सांस्कृतिक और जातीय भेदभाव आज भी कांगो में युद्ध और हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं।
  • प्राकृतिक संसाधनों का शोषण: कांगो प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है, जैसे कि कोल्टन, सोना, हीरे और कोबाल्ट। इन संसाधनों के कारण स्थानीय और क्षेत्रीय समूहों के बीच संघर्ष बढ़ते जा रहे हैं। कई सशस्त्र समूह इन खनिजों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए आपस में संघर्ष करते हैं। इन समूहों का मुख्य उद्देश्य इन संसाधनों से प्राप्त धन के जरिए अपनी सत्ता मजबूत करना है, जिससे देश में अस्थिरता और बढ़ रही है।
  • कमजोर शासन व्यवस्था: कांगो में शासन की स्थिति अत्यधिक कमजोर रही है, विशेष रूप से 1965 में माबुटू सेसे सेको का शासन भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग से भरा हुआ था, और उनके बाद के वर्षों में भी यही स्थिति बनी रही। 1997 में माबुटू के शासन का अंत हुआ, लेकिन उसके बाद कांगो में सशस्त्र समूहों की गतिविधियों ने शासन को और कमजोर किया। राज्य द्वारा नागरिकों को आवश्यक सेवाएं और सुरक्षा प्रदान करने में विफलता ने अधिक लोगों को सशस्त्र संघर्षों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया, जिससे देश में अस्थिरता बनी रही।
  • विदेशी हस्तक्षेप: कांगो में संघर्षों में विदेशी देशों रवांडा और युगांडा की भी बड़ी भूमिका रही है। 1994 के रवांडा नरसंहार के बाद, इन देशों ने कांगो के पूर्वी हिस्से में अपनी सैन्य हस्तक्षेप की। इन हस्तक्षेपों का उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा और राजनीति में प्रभाव बढ़ाना था। इससे कांगो में संघर्षों को और हवा मिली और दो प्रमुख युद्धों की शुरुआत हुई।
  • अत्याचार और न्याय की कमी: कांगो में मानवाधिकार उल्लंघन और युद्ध अपराधों के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है। संघर्षों के दौरान होने वाले अपराधों के लिए अपराधियों को कभी सजा नहीं मिलती। इस स्थिति ने कांगोवासियों के लिए एक गहरी निराशा और न्याय की आशा को खत्म कर दिया है। 

कांगो संकट में प्रमुख क्षेत्रीय समूहों की भूमिका

  • M23 आंदोलन: M23, जिसे कांगोलेज़ क्रांतिकारी सेना (Congolese Revolutionary Army) के नाम से भी जाना जाता है, एक विद्रोही समूह है जो मुख्य रूप से कांगो के उत्तरी किवु प्रांत में सक्रिय है। यह समूह कांगो के तुत्सी समुदाय द्वारा नेतृत्व किया जाता है और रवांडा द्वारा समर्थित है। M23 ने 2012 में गोमा पर कब्जा कर लिया था, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय दबाव और कांगो सेना तथा संयुक्त राष्ट्र के संयुक्त प्रयासों के कारण उसे गोमा से पीछे हटने के लिए मजबूर किया गया। 2017 में M23 के तत्वों ने कांगो में फिर से अपनी गतिविधियाँ शुरू की थीं, हालांकि इसका प्रभाव स्थानीय स्तर पर सीमित था। 2022 में यह समूह फिर से आक्रामक हो गया और कांगो के सीमावर्ती शहर बुंगाना पर कब्जा कर लिया, जिससे कांगो के लगभग 1.8 लाख लोग विस्थापित हो गए।
  • ADF (अलायड डेमोक्रेटिक फोर्सेज़): ADF एक आतंकवादी संगठन है जो कांगो और युगांडा में सक्रिय है और इसे ISIS-DRC के नाम से भी जाना जाता है। ADF ने कांगो में नागरिकों, सेना और संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारियों पर हमले किए हैं। यह समूह कई घातक हमलों और अपहरणों के लिए जिम्मेदार है, जिनमें कांगो और युगांडा दोनों देश प्रभावित हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र और युगांडा सरकार ने इसे आतंकवादी संगठन घोषित किया है। इसके नेता जमील मुकुलु को 2015 में तंजानिया से गिरफ्तार किया गया था, और उन्हें युगांडा के कंपाला में लाया गया।
  • CODECO (कोऑपरेटिव फ़ॉर डेवलपमेंट ऑफ़ द कांगो): CODECO कांगो के इटुरी और उत्तरी किवु क्षेत्रों में सक्रिय एक सशस्त्र विद्रोही आंदोलन है। यह एक मिलिशिया समूहों का संघ है जो पहले एक शांतिपूर्ण कृषि सहकारी संगठन था। CODECO के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र ने नरसंहार और युद्ध अपराधों का आरोप लगाया है। 2020 में CODECO ने युद्धविराम की घोषणा की, लेकिन 2021 और 2022 में इसके हमलों में वृद्धि हो गई, जिससे क्षेत्र में और अधिक हिंसा फैल गई। कांगो सरकार ने CODECO और ISIS-DRC द्वारा किए गए हमलों के खिलाफ इटुरी और उत्तरी किवु में घेराबंदी की स्थिति घोषित की।

कांगो संघर्ष और विद्रोह के परिणाम

  • मानवाधिकार का संकट और नागरिकों पर प्रभाव: कांगो में जारी संघर्ष ने एक गहरे मानवाधिकार संकट को जन्म दिया है। यहां के नागरिकों की ज़िन्दगी असुरक्षित हो चुकी है, और उन्हें हर दिन अपनी सुरक्षा और अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ता है। लड़ाई के बीच में हजारों निर्दोष नागरिकों की हत्या, शारीरिक हिंसा और अन्य अमानवीय घटनाएँ हो रही हैं। 
  • नागरिकों का विस्थापन और शरणार्थी संकट: कांगो में संघर्ष की बढ़ती घटना ने लाखों लोगों को उनके घरों से विस्थापित कर दिया है। 2024 तक लगभग 7.3 मिलियन लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हो चुके हैं, जो इसे दुनिया के सबसे बड़े विस्थापन संकटों में से एक बनाता है। जिन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा संघर्ष हो रहे हैं, वहां लोग भोजन, आश्रय और चिकित्सा सेवाओं के बिना जीने के लिए मजबूर हैं। सर्दी, बाढ़ और महामारी जैसी समस्याओं ने स्थिति को और बुरा बना दिया है, जिससे नागरिकों की जीवनशैली और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है।
  • युद्ध अपराध और लिंग आधारित हिंसा: कांगो में महिलाओं और बच्चों को विशेष रूप से युद्ध अपराधों और लिंग आधारित हिंसा का शिकार होना पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य संस्थाओं ने कांगो में व्यापक हिंसा की घटनाओं को दर्ज किया है।
  • मानवाधिकार उल्लंघन, यातनाएँ और मनमानी गिरफ्तारी: संघर्ष ने कांगोवासियों के खिलाफ यातनाओं और अपहरण की घटनाओं को बढ़ावा दिया है। 2022 में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने यह पाया कि राज्य और सशस्त्र समूहों द्वारा कई निर्दोष नागरिकों को यातनाएं दी गईं। इसके अलावा, कई लोग बिना किसी कारण के जेलों में बंद हैं या उन्हें गायब कर दिया जाता है। 
  • स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबी: कांगो की संघर्षग्रस्त स्थिति में न केवल नागरिकों की सुरक्षा प्रभावित हो रही है, बल्कि उनका स्वास्थ्य और शिक्षा भी एक बड़े संकट का सामना कर रहा है। कांगो, जो प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, फिर भी दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है। अनुमान के अनुसार, यहां की 74.6 प्रतिशत आबादी 2023 में प्रति दिन 2.15 अमेरिकी डॉलर से भी कम पर जीवन यापन कर रही है। गरीबी, शिक्षा की कमी, और स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता ने नागरिकों को और अधिक कठिनाइयों में डाल दिया है। 

कांगो संघर्ष को कम करने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका 

  • संयुक्त राष्ट्र (UN) ने 1960 में कांगो संकट के दौरान अपना पहला महत्वपूर्ण शांति मिशन शुरू किया, जिसे “संयुक्त राष्ट्र ऑपरेशन इन कांगो” (ONUC) कहा गया। यह मिशन कांगो की स्वतंत्रता के बाद उत्पन्न हुए संकटों का समाधान करने के लिए स्थापित किया गया था। यह संयुक्त राष्ट्र का पहला शांति मिशन था जिसमें सैन्य शक्ति का इस्तेमाल किया गया और यह मिशन आकार और दायरे के हिसाब से अब तक के सबसे बड़े शांति अभियानों में से एक बना।
  • संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख उद्देश्य कांगो में शांति स्थापित करना, अन्य देशों को संकट में हस्तक्षेप से रोकना, देश की अर्थव्यवस्था को सुधारना और स्थिरता बहाल करना था। इस मिशन में पहले दो हफ्तों में संयुक्त राष्ट्र के सैनिकों की तैनाती की गई और अस्थिर स्थिति के कारण सैनिकों की संख्या को बढ़ा दिया गया। 
  • 1961 के अंत में संयुक्त राष्ट्र ने ऑपरेशन मर्थोर नामक एक सैन्य अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य कांगो के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित कटांगा प्रांत की विद्रोही सरकार को समाप्त करना था। यह अभियान बिना अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति के शुरू किया गया था। संयुक्त राष्ट्र ने इस अभियान के जरिए कांगो में शांति स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। इस ऑपरेशन के समाप्त होने के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने कांगो से अपनी सेना को हटा लिया। संयुक्त राष्ट्र के अनेक प्रयासों के बाद भी वहाँ की राजनीतिक और सैन्य स्थिति अभी तक स्थिर नहीं हो सकी।

UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न PYQs)

प्रश्न (2023): विश्व का लगभग तीन-चौथाई कोबाल्ट, इलेक्ट्रिक मोटर वाहनों के लिये बैटरी के निर्माण के लिये आवश्यक धातु, का उत्पादन किसके द्वारा किया जाता है?

(a) अर्जेंटीना

(b) बोत्सवाना

(c) कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य

(d) कज़ाखस्तान

उत्तर: (c)

प्रश्न (2023): निम्नलिखित में से कौन-सा कांगो बेसिन का हिस्सा है?

(a) कैमरून

(b) नाइजीरिया

(c) दक्षिण सूडान

(d) युगांडा

उत्तर: (a)

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