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संदर्भ:
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने गवर्नमेंट सिक्योरिटीज (G-secs) पर फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट की अनुमति देने का फैसला किया है। यह कदम बाजार के विकास को बढ़ावा देने और वित्तीय संस्थानों को ब्याज दर जोखिम से बचाव (hedging) में मदद करने के लिए उठाया गया है।
फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स और सरकारी प्रतिभूतियों में व्यापार:
- लंबी अवधि के निवेशकों (जैसे बीमा फंड) को ब्याज दर चक्रों में जोखिम प्रबंधन की सुविधा मिलेगी।
- बॉन्ड-आधारित डेरिवेटिव्स की मूल्य निर्धारण प्रक्रिया अधिक प्रभावी होगी।
फॉरवर्ड ट्रेडिंग इन गवर्नमेंट सिक्योरिटीज (G-secs):
- फॉरवर्ड ट्रेडिंग में निवेशक एक पूर्व निर्धारित मूल्य पर भविष्य की तारीख में सरकारी प्रतिभूतियों (G-secs) को खरीदने या बेचने का अनुबंध करते हैं।
- यह ब्याज दर में उतार-चढ़ाव से बचाव (Hedging) और G-secs के भविष्य के मूल्य परिवर्तनों पर सट्टा लगाने (Speculation) में मदद करता है।
फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट क्या है?
- यह दो पक्षों के बीच एक समझौता है, जिसमें एक पूर्व निर्धारित तिथि पर एक निश्चित कीमत पर किसी संपत्ति (Asset) को खरीदने या बेचने की प्रतिबद्धता होती है।
- दोनों पक्ष अनुबंध की शर्तों को पूरा करने के लिए बाध्य होते हैं।
- मुख्य विशेषताएँ:
- फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट विभिन्न लेनदेन के अनुसार भिन्न हो सकता है।
- इसे संपत्ति, समाप्ति तिथि (Expiry Date), और व्यापार की मात्रा के अनुसार अनुकूलित किया जा सकता है।
- प्रमुख उपयोग:
- मुख्य रूप से वस्तु बाजार (Commodity Markets) में व्यापार के लिए प्रयोग होता है।
- विदेशी मुद्रा (Forex) व्यापार के लिए भी एक लोकप्रिय उपकरण है।
गवर्नमेंट सिक्योरिटीज (Government Securities – G-Secs)
- परिभाषा:
- G-Secs एक ऋण साधन (Debt Instrument) हैं, जिनके माध्यम से सरकार जनता से उधार लेकर अपनी वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करती है।
- ये भारतीय सरकार द्वारा समर्थित होने के कारण जोखिम-मुक्त (Risk-Free) निवेश माने जाते हैं।
- भूमिका और महत्व:
- निश्चित आय (Fixed-Income) बाजार में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
- सरकारी प्रतिभूति बाजार में आसानी से कारोबार किया जा सकता है।
- उद्देश्य: सरकार वित्तीय खर्चों को पूरा करने, बजट घाटे की भरपाई करने, और बुनियादी ढांचे एवं समग्र विकास परियोजनाओं में निवेश करने के लिए G-Secs जारी करती है।
- कार्यप्रणाली:
- अन्य ऋण साधनों की तरह कार्य करते हैं।
- निवेशक सरकार को धन उधार देता है और बदले में उसे नियत अंतराल पर ब्याज प्राप्त होता है।
- परिपक्वता (Maturity) पूरी होने पर निवेशक को मूलधन वापस मिलता है।
ब्याज दर डेरिवेटिव्स और सरकारी प्रतिभूतियों में सुधार:
- ब्याज दर जोखिम प्रबंधन के लिए विस्तृत उत्पाद उपलब्ध:
- ब्याज दर स्वैप (Interest Rate Swaps)
- ब्याज दर ऑप्शंस (Interest Rate Options)
- ब्याज दर फ्यूचर्स (Interest Rate Futures)
- ब्याज दर स्वैप्शन (Interest Rate Swaptions)
- फॉरवर्ड रेट एग्रीमेंट्स (FRA)
- जीवन बीमा कंपनियों (Life Insurers) द्वारा उपयोग:
- वर्तमान में, वे FRA और पार्टली पेड बॉन्ड्स का उपयोग हेजिंग के लिए करते हैं।
- G-Secs में फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स की शुरूआत, उनके लिए हेजिंग के और अधिक साधन उपलब्ध कराएगी।
- NDS-OM (Negotiated Dealing System – Order Matching) तक गैर–बैंक दलालों की पहुंच:
- SEBI पंजीकृत गैर-बैंक दलाल (Non-Bank Brokers) अब NDS-OM तक सीधे पहुंच सकते हैं।
- यह RBI द्वारा निर्धारित नियमों और शर्तों के अधीन होगा।
- NDS-OM एक इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है, जो सरकारी प्रतिभूतियों के द्वितीयक बाजार लेनदेन को सुविधाजनक बनाता है।