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तीस्ता बांध और जलवायु परिवर्तन

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संदर्भ:

तीस्ता बांध और जलवायु परिवर्तन: हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति ने सिक्किम की तीस्ता नदी पर स्थित तीस्ता3 बांध के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव देने की सिफारिश की है। 

तीस्ता बांध, जलवायु परिवर्तन और हिमनदों का पिघलना:

  1. वैश्विक तापवृद्धि (Global Warming): ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमनदों (ग्लेशियर) के पिघलने की गति तेज हो रही है।
  2. ब्लैक कार्बन का प्रभाव: ब्लैक कार्बन (कालिख) कण हिमनदों के पिघलने की प्रक्रिया को तेज कर देते हैं।
  3. हिमनद झीलों की संख्या में वृद्धि: 2011 से 2024 के बीच हिमनद झीलों की संख्या 7% बढ़ी है।
  4. झीलों का विस्तार: दक्षिण ल्होनक झील का आकार 1960 के दशक से बढ़कर 2023 में 167 हेक्टेयर हो गया।

तीस्ता3 बांध का विनाश:

  1. विनाश का कारण:
    • दक्षिण ल्होनक झील के किनारे स्थित मोरीन (moraine) के ढहने से तीस्ता-3 जलविद्युत बांध नष्ट हो गया।
    • इस आपदा से लगभग 50 अरब लीटर पानी घाटी में बह गया, जिससे कई भूस्खलन और भारी नुकसान हुआ।
  2. प्रभाव और हानि:
    • इस विनाशकारी बाढ़ में 100 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई।
    • चार जिलों में 80,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए।
    • बांध के विफल होने से बाढ़ की तीव्रता और बढ़ गई, क्योंकि मलबे ने एक बैटरिंग राम (तोड़फोड़ करने वाले हथियार) की तरह काम किया।
  3. विश्लेषण और भविष्य की चुनौतियाँ:
    • बाद के विश्लेषणों से पता चला कि झील की मोरीन अस्थिर थी, जिससे यह आपदा घटी।
    • वैज्ञानिक अब झील की अस्थिरता और संभावित खतरों की निगरानी कर रहे हैं।
    • यह घटना हिमनद झीलों के विस्तार से उत्पन्न खतरों को उजागर करती है, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और क्षेत्रीय भूगर्भीय अस्थिरता के संदर्भ में।

तीस्ता3: नया डिज़ाइन और चुनौतियाँ

  1. नया निर्माण और सुरक्षा उपाय:
    • निर्माण सामग्री: केवल कंक्रीट से बनाया जाएगा, पत्थरों का उपयोग नहीं होगा।
    • बेहतर स्पिलवे क्षमता: जल निकासी प्रणाली (स्पिलवे) तीन गुना बड़ी होगी।
    • सुरक्षा उपाय: अर्ली-वार्निंग सिस्टम स्थापित किया जाएगा।
    • जलवायु अनुकूलता: आईएमडी द्वारा अनुमानित ‘वर्स्ट-केस’ बारिश पर आधारित डिज़ाइन।
  2. नए डिज़ाइन की सुरक्षा चिंताएँ:
    • अनिश्चितता: जलवायु परिवर्तन अप्रत्याशित है, और भविष्य की बाढ़ अतीत से भिन्न हो सकती हैं।
    • वर्षा आधारित मॉडलिंग की सीमाएँ:
      • वर्षा आधारित मॉडलिंग अविश्वसनीय मानी जाती है।
      • यह गाद (sediment) परिवहन, कटाव और नदी तल के बदलाव को पूरी तरह से नहीं दर्शाती।
      • तेजतर्रार बाढ़ का खतरा: यदि पहले से अधिक तीव्र बाढ़ आई, तो नुकसान और भी अधिक हो सकता है।
  3. विशेषज्ञों की राय और चिंताएँ:
    • खामियाँ: आईआईटी भुवनेश्वर, आईआईएससी बैंगलोर, और आईटीबीपी के अध्ययन ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) मॉडलिंग में खामियाँ दर्शाते हैं।
    • जलवायु पूर्वानुमान की चुनौतियाँ: चरम वर्षा की सटीक भविष्यवाणी कर पाना कठिन है।
  4. इंजीनियरिंग समाधानों की सीमाएँ:
    • अमेरिकी विशेषज्ञों का मत – “इंजीनियरिंग जलवायु परिवर्तन हल नहीं कर सकती, पीछे हटना अनिवार्य है।”
    • जोखिमकेंद्रित निर्णय लेने की आवश्यकता: केवल आर्थिक लाभ पर ध्यान न देकर जोखिम न्यूनीकरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

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