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नया आयकर विधेयक 2025

सामान्य अध्ययन पेपर II: सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

सामान्य अध्ययन III: वृद्धि एवं विकास, योजना, राजकोषीय नीति

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में नया आयकर विधेयक 2025 लोकसभा में 13 फरवरी 2025 को पेश किया गया। यह विधेयक भारत की छह दशक पुरानी प्रत्यक्ष कर प्रणाली में व्यापक सुधार लाने का प्रयास है। नए विधेयक का उद्देश्य कर प्रणाली को डिजिटल युग के अनुकूल बनाना है, जिससे करदाताओं को राहत मिल सके।

नया आयकर विधेयक 2025 क्या है?

आयकर विधेयक, 2025 भारत की कर प्रणाली में एक ऐतिहासिक सुधार है, जिसे सरकार ने मौजूदा आयकर अधिनियम, 1961 को प्रतिस्थापित करने के लिए प्रस्तावित किया है। यह विधेयक करदाताओं के लिए कर प्रणाली को अधिक सरल, पारदर्शी और प्रभावी बनाने का प्रयास करता है।

  • इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य पुराने और अप्रासंगिक प्रावधानों को हटाना, कर कानूनों की भाषा को सरल बनाना, और एक लोगों के लिए सहज कर ढाँचा तैयार करना है। 
  • लंबे समय से किए गए कई संशोधनों के कारण 1961 का आयकर अधिनियम अत्यधिक जटिल हो गया था, जिससे आम करदाताओं और व्यवसायों को समझना मुश्किल हो गया था।
  • विधेयक में “कर वर्ष” (Tax Year) की नई अवधारणा पेश की गई है, जिससे कर रिपोर्टिंग को व्यक्तिगत और व्यावसायिक आर्थिक वर्षों के साथ बेहतर तालमेल में लाया जा सके। इससे कर अनुपालन (Tax Compliance) में सुधार होगा और कर दायित्व को समझने में आसानी होगी।
  • सरकार का यह प्रयास करदाताओं के लिए एक अनुकूल और प्रभावी कर प्रणाली स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा सुधार है। 
  • प्रस्तावित बदलाव कर दाखिल करने की प्रक्रिया को सरल, अधिक पारदर्शी और डिजिटल युग के अनुकूल बनाएंगे, जिससे कर चोरी में कमी और राजस्व संग्रह में वृद्धि की संभावना है।
  • यदि यह विधेयक संसद से पारित हो जाता है, तो इसे 1 अप्रैल 2026 से लागू किया जाएगा, जिससे भारत की कर व्यवस्था में एक नया अध्याय जुड़ जाएगा।

नया आयकर विधेयक, 2025 के मुख्य प्रावधान

नया आयकर विधेयक, 2025, भारत की कर प्रणाली को सरल, पारदर्शी और डिजिटल रूप से उन्नत बनाने का एक ऐतिहासिक प्रयास है। इसमें भाषा की स्पष्टता, प्रक्रियाओं की सहजता और डिजिटल युग के अनुरूप कराधान प्रणाली पर विशेष ध्यान दिया गया है।

  • सरलीकृत संरचना (Simplified Structure): नया विधेयक 622 पृष्ठों का है, जो 1961 के आयकर अधिनियम की तुलना में 24% छोटा है। इसमें 23 अध्याय, 536 धाराएँ और 16 अनुसूचियाँ शामिल हैं। इसकी विशेषता यह है कि इसमें 57 व्याख्यात्मक सारणी दी गई हैं। 1,200 उपवाक्य (provisos) और 900 स्पष्टीकरण को हटाकर इसे सरल और स्पष्ट बनाया गया है। इससे करदाताओं को अपने कर दायित्वों को समझने में आसानी होगी और कानूनी अस्पष्टता समाप्त होगी।
  • “कर वर्ष” (Tax Year) की अवधारणा: विधेयक में “पिछला वर्ष” (Previous Year) और “मूल्यांकन वर्ष” (Assessment Year) की जटिल प्रणाली को समाप्त करके एक नया “कर वर्ष” लागू किया गया है। यह 12 महीनों की अवधि होगी, जो 1 अप्रैल से 31 मार्च तक चलेगी। विशेष रूप से, नए व्यवसायों और पेशों के लिए कर वर्ष उनकी स्थापना की तारीख से शुरू होगा और उसी वित्तीय वर्ष के अंत तक चलेगा। इससे कर रिपोर्टिंग अधिक तार्किक और समकालिक हो जाएगी।
  • डिजिटल निगरानी और अनुपालन (Digital Monitoring & Compliance) का विस्तार: केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) को कर निगरानी के लिए डिजिटल प्रणाली लागू करने का अधिकार दिया गया है। विधेयक में “आभासी डिजिटल क्षेत्र” (Virtual Digital Space) की नई परिभाषा शामिल की गई है, जिसमें सोशल मीडिया खाते, ईमेल सर्वर, क्लाउड स्टोरेज और ऑनलाइन बैंकिंग प्लेटफॉर्म आते हैं। इससे कर अधिकारियों को सर्वेक्षण और खोजी प्रक्रियाओं के दौरान डिजिटल साक्ष्य तक पहुँचने की सुविधा मिलेगी। साथ ही, बिना बार-बार विधायी संशोधन किए कर अनुपालन प्रणाली को अद्यतन करने की क्षमता मिलेगी।
  • कर दाखिल प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाना: विधेयक में अनावश्यक कानूनी जटिलताओं, अप्रयुक्त प्रावधानों और कठिन कानूनी भाषा को हटाकर कर प्रक्रिया को सहज बनाया गया है। कम क्रॉस-रेफरेंस और बेहतर संरचना के कारण करदाताओं के लिए रिटर्न दाखिल करना सरल और सुविधाजनक होगा। यह न केवल व्यक्तिगत करदाताओं बल्कि कंपनियों और संगठनों के लिए भी फायदेमंद होगा।
  • पूंजीगत लाभ कर छूट (Capital Gains Exemption) को अद्यतन करना: 1961 के अधिनियम में 1992 से पहले खरीदी गई परिसंपत्तियों के पूंजीगत लाभ पर कर छूट दी जाती थी, जो अब निष्क्रिय हो चुकी थी। नया विधेयक इसे समाप्त कर आधुनिक आर्थिक ढाँचे के अनुरूप कराधान प्रणाली स्थापित करता है।
  • कर विवाद समाधान तंत्र (Dispute Resolution Mechanism) को सशक्त बनाना: विधेयक में विवाद निवारण पैनल (Dispute Resolution Panel – DRP) के नियमों को अधिक स्पष्ट और प्रभावी बनाया गया है। अब निर्णय लेने की प्रक्रिया निर्धारित बिंदुओं, सुस्पष्ट निर्णयों और ठोस कारणों पर आधारित होगी। इससे कर विवादों में अस्पष्टता कम होगी और निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी।
  • आभासी डिजिटल संपत्तियों (Virtual Digital Assets) को पूंजीगत संपत्ति (Capital Assets) में शामिल करना: इस विधेयक में क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency), नॉन-फंजिबल टोकन (NFTs) और अन्य आभासी डिजिटल संपत्तियों (VDA) को पूंजीगत संपत्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। अब इन पर संपत्ति, शेयर और प्रतिभूतियों (Securities) के समान पूंजीगत लाभ कर लगेगा। यह प्रावधान डिजिटल संपत्तियों की कराधान प्रणाली (Taxation) को पारदर्शी बनाएगा और इस क्षेत्र में कर अनुपालन (Tax Compliance) को सुनिश्चित करेगा।
  • कटौतियों (Deductions) और छूटों (Exemptions) का सरलीकरण: इस विधेयक में किराए, जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, भविष्य निधि (PF) अंशदान और गृह ऋण (Home Loan) पर कटौतियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। साथ ही, अप्रचलित और अप्रासंगिक कर छूटों को हटाया गया है। उदाहरण के लिए, धारा 54E के तहत 1992 से पहले हस्तांतरित परिसंपत्तियों पर पूंजीगत लाभ कर छूट अब लागू नहीं होगी। इससे कर प्रणाली अधिक व्यावहारिक और वर्तमान आर्थिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनेगी।

नए आयकर विधेयक, 2025 की आवश्यकता क्यों पड़ी?

1961 का आयकर अधिनियम कई बार संशोधित होने के कारण बेहद जटिल और विसंगतिपूर्ण हो चुका था। इसके अस्पष्ट प्रावधानों, अनावश्यक कानूनी प्रक्रियाओं और नई अर्थव्यवस्था के साथ तालमेल की कमी के कारण नया आयकर विधेयक, 2025 लाना आवश्यक हो गया था।

    • जटिल और बोझिल कर संरचना:  1961 का आयकर अधिनियम समय के साथ कई संशोधनों से गुजरता रहा, जिससे यह बेहद जटिल और असंगत बन गया। वर्तमान में यह अधिनियम 823 पृष्ठों, 47 अध्यायों, 298 धाराओं और 1,200 उपवाक्यों (Provisos) में फैला हुआ है। इतने बड़े और विस्तृत कर कानून को आम करदाता के लिए समझना कठिन हो गया था।
    • अस्पष्ट कानूनी भाषा: भाषा की अस्पष्टता, एक से अधिक संदर्भों (Cross-References) और उलझे हुए प्रावधानों के कारण कर विवाद और कानूनी मुकदमेबाजी (Tax Disputes & Litigation) में भारी वृद्धि हुई। स्पष्टता के अभाव में करदाताओं और व्यावसायिक संस्थानों को अपने कर दायित्वों को समझने में कठिनाई हो रही थी।
    • “मूल्यांकन वर्ष” और “पिछले वर्ष” की जटिल अवधारणा: 1961 अधिनियम में “पिछला वर्ष” (Previous Year) और “मूल्यांकन वर्ष” (Assessment Year) की अवधारणा थी, जो करदाताओं के लिए बेहद भ्रमित करने वाली साबित हुई। करदाताओं को दो अलग-अलग समय अवधियों को ट्रैक करना पड़ता था, जिससे कर प्रणाली अव्यवस्थित और कठिन बन गई थी। 
    • कर अनुपालन की कठिनाई: बढ़ती कानूनी जटिलताओं, कई संशोधनों और विरोधाभासी प्रावधानों के कारण कर अनुपालन (Tax Compliance) अत्यधिक कठिन और जटिल हो गया था। करदाताओं को कर नियमों को समझने और पालन करने में भारी परेशानी होती थी, जिससे कई अनजाने कर उल्लंघन और विवाद उत्पन्न होते थे।
  • व्यापारिक लेन-देन की जटिलता: वर्तमान में व्यापारिक लेन-देन अधिक जटिल और वैश्विक (Globalized) हो गए हैं। डिजिटल इकॉनमी, ई-कॉमर्स, स्टार्टअप्स, मल्टीनेशनल कंपनियाँ और क्रॉस-बॉर्डर ट्रांजैक्शंस में कराधान को लेकर लगातार विवाद होते रहे हैं। पुरानी कर व्यवस्था इन नए आर्थिक परिदृश्यों को समायोजित करने में असफल रही थी।

नए आयकर विधेयक, 2025 का प्रभाव

नया आयकर विधेयक, 2025, आधुनिक, सरल, पारदर्शी और डिजिटल युग के अनुकूल कर प्रणाली स्थापित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इससे न केवल कर अनुपालन आसान होगा, बल्कि निवेश, व्यापार और अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।

  • सरल और स्पष्ट कर संरचना: नए विधेयक में भाषा को सरल और स्पष्ट बनाया गया है, जिससे आम करदाता इसे आसानी से समझ सके। जटिल कानूनी शब्दावली को हटाकर, सारणीबद्ध (Tabular) प्रारूप, सूत्र (Formulas) और स्पष्टीकरण (Illustrations) जोड़े गए हैं, ताकि करदाताओं को अपनी देनदारी का सटीक आकलन करने में आसानी हो। इससे न केवल कर प्रणाली अधिक पारदर्शी बनेगी, बल्कि गलतफहमी और कर विवादों की संभावना भी कम होगी।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था के अनुरूप कराधान: आज की डिजिटल वित्तीय प्रणाली (Digital Finance System) में क्रिप्टोकरेंसी, नॉन-फंजिबल टोकन (NFTs) और अन्य वर्चुअल डिजिटल संपत्तियाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। नए विधेयक में इन सभी को “पूंजीगत संपत्ति” (Capital Assets) की श्रेणी में रखकर इन पर स्पष्ट कर प्रावधान बनाए गए हैं। यह भारत के कर ढांचे को वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था के अनुरूप बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
  • कर अनुपालन: कर प्रणाली को सरल और प्रभावी बनाने के लिए, नए विधेयक में अनावश्यक प्रक्रियाओं और अस्पष्ट प्रावधानों को हटाया गया है। इससे न केवल करदाताओं के लिए अनुपालन (Compliance) सरल होगा, बल्कि कर प्रशासनिक अधिकारियों का कार्यभार भी कम होगा। कर संग्रहण अधिक प्रभावी और निष्पक्ष होगा, जिससे सरकार की राजस्व प्राप्ति में वृद्धि होगी। वर्चुअल डिजिटल स्पेस (Virtual Digital Space), ऑनलाइन बैंकिंग, क्लाउड स्टोरेज और सोशल मीडिया के माध्यम से कर प्रशासन को सुदृढ़ किया जाएगा। इससे आधुनिक तकनीकों के अनुकूल कराधान प्रणाली विकसित होगी, जो भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखेगी।
  • व्यवसायों और निवेश को बढ़ावा: सरल और अनुकूल कर वातावरण (Business-Friendly Tax Environment) तैयार करने से व्यवसायों को बढ़ावा मिलेगा और विदेशी निवेश आकर्षित होगा। भारत की “Ease of Doing Business” रैंकिंग में सुधार होगा, जिससे नए स्टार्टअप्स और उद्यमों को प्रोत्साहन मिलेगा। न्यूनतम कर अनुपालन बोझ के कारण व्यवसायों की उत्पादकता बढ़ेगी और आर्थिक विकास को गति मिलेगी।

नए आयकर विधेयक, 2025 की कुछ कमियाँ 

  • मौलिक सुधारों की कमी: हालांकि नए विधेयक को सरलता और स्पष्टता प्रदान करने के उद्देश्य से लाया गया है, लेकिन यह केवल पूर्ववर्ती प्रावधानों का पुनर्गठन करता है। करदाताओं की जटिल समस्याओं का समाधान करने के बजाय, यह पुराने कानून को नए प्रारूप में प्रस्तुत करता है। कर आधार (Tax Base), कर प्रक्रिया (Tax Procedures) और अनुपालन ढांचा (Compliance Framework) पहले की तरह ही बना हुआ है, जिससे वास्तविक सुधारों का प्रभाव सीमित हो गया है।
  • सरलीकरण के लक्ष्यों की अपूर्णता: भले ही यह विधेयक कर कानूनों को आसान बनाने का दावा करता है, लेकिन कई महत्वपूर्ण परिभाषाएँ जैसे “आय” (Income) 1961 के कोड से अपरिवर्तित बनी हुई हैं। पुनर्मूल्यांकन (Reassessment) से संबंधित प्रावधान, जो अतीत में विवादों और कानूनी चुनौतियों का कारण बने थे, बिना किसी महत्वपूर्ण संशोधन के जारी रखे गए हैं। भले ही प्रस्तुतीकरण में सुधार किया गया हो, लेकिन मूल जटिलताओं को दूर नहीं किया गया है।
  • स्पष्ट कार्यान्वयन रोडमैप का अभाव: हालांकि सरकार ने सार्वजनिक टिप्पणियाँ (Public Comments) आमंत्रित की थीं, लेकिन चरणबद्ध कर सुधारों (Phase-Wise Tax Reforms) के लिए कोई स्पष्ट खाका प्रस्तुत नहीं किया। यह विधेयक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत कर मानकों के अनुरूप नहीं है। कानूनी संरचना पर अधिक जोर दिया गया है, लेकिन व्यवसायों और करदाताओं की बदलती जरूरतों को ध्यान में नहीं रखा गया। 
  • कराधान में असंगतता: गैर-लाभकारी संगठनों (Non-Profits), शैक्षणिक संस्थानों और व्यावसायिक ट्रस्टों के लिए कराधान को स्पष्ट किया गया है, लेकिन पूर्व के कानूनों में व्यापारिक ट्रस्टों के लिए असंगत प्रावधान बार-बार संशोधित किए गए थे। इससे भविष्य में नए संशोधनों और अस्पष्टता की संभावनाएँ बनी रहेंगी, जो करदाताओं के लिए अस्थिरता (Uncertainty) की स्थिति पैदा कर सकती हैं। विधेयक में कुछ व्यय को “अत्यधिक” मानकर कर नियमों को सख्त कर दिया गया है, जिससे यह व्यवसायों के वाणिज्यिक विवेकाधिकार (Commercial Expediency) से टकरा सकता है। अंतरराष्ट्रीय कर संधियों (International Tax Treaties) की व्याख्या के नए नियमों के कारण, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कर विवादों की संभावना बढ़ सकती है। 

UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न (2021): भारत में काले धन के सृजन के निम्नलिखित प्रभावों में से कौन-सा भारत सरकार की चिंता का प्रमुख कारण है?

(a) स्थावर संपदा के व्रय और विलासितायुक्त आवास में निवेश के लिये संसाधनों का अपयोजन

(b) अनुत्पादक गतिविधियों में निवेश और जवाहरात, गहने, सोना इत्यादि का व्रय

(c) राजनीतिक दलों को बड़े चंदे एवं क्षेत्रवाद का विकास

(d) कर अपवंचन के कारण राजकोष में राजस्व की हानि

उत्तर:(d)

प्रश्न (2013): ‘कर व्यय’ शब्द का क्या अर्थ है? आवास क्षेत्र को उदाहरण के रूप में लेते हुए, चर्चा कीजिये कि यह सरकार की बजटीय नीतियों को कैसे प्रभावित करता है। 

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