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संदर्भ:
भारत में बदलता रोजगार क्षेत्र: 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से संगठित रोजगार का रुझान सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र की ओर तेजी से बदल रहा है। उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) नीतियों के प्रभाव से निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़े, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई।
भारत में रोजगार क्षेत्र परिवर्तन:
- भारतीय रेलवे में नियमित कर्मचारी: 1990-91 में 5 लाख कर्मचारी थे, जो 2022-23 में घटकर 11.9 लाख रह गए।
- आईटी क्षेत्र में रोजगार वृद्धि:
- 2004-05 में:
- TCS: 45,714 कर्मचारी
- Infosys: 36,750 कर्मचारी
- 2023-24 में:
- TCS: 4,48,464 कर्मचारी
- Infosys: 2,42,371 कर्मचारी
- 2004-05 में:
- बैंकिंग क्षेत्र में बदलाव:
- 1991-92: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कुल बैंक कर्मचारियों में 87% हिस्सेदारी थी।
- 2023-24:
- निजी बैंक कर्मचारी: 74 लाख
- सार्वजनिक बैंक कर्मचारी: 5 लाख से भी कम
भारत में मध्यम वर्गीय श्रमिकों के बदलाव के कारण:
- आर्थिक उदारीकरण (Economic Liberalization): 1991 के बाद की आर्थिक नीतियों से निजी क्षेत्र का विस्तार हुआ, जिससे अधिक नौकरियों के अवसर मिले।
- उच्च वेतन और सुविधाएँ (Higher Salaries and Benefits): निजी क्षेत्र में वेतन, पदोन्नति और लाभ अधिक आकर्षक होने के कारण मध्यम वर्ग सरकारी नौकरियों की तुलना में इसे प्राथमिकता दे रहा है।
- बेहतर कार्य संस्कृति (Improved Work Culture): निजी क्षेत्र में कार्य निष्पादन पर अधिक ध्यान दिया जाता है, जिससे महत्वाकांक्षी कर्मचारियों को अधिक अवसर मिलते हैं।
- सीमित सरकारी नौकरियाँ (Limited Public Sector Jobs): सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियों की वृद्धि धीमी हो गई है, और इन पदों के लिए प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक है।
- उद्यमिता के अवसर : स्टार्टअप और उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलने से कई लोग निजी व्यवसायों और स्वरोजगार की ओर आकर्षित हुए हैं।
भारत के सामने चुनौतियाँ:
- कृषि क्षेत्र में रोजगार (Employment in the Agriculture Sector):
- कृषि क्षेत्र से श्रमिकों का अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरण नहीं हो पा रहा है।
- PLFS रिपोर्ट:कृषि में श्रमिकों की हिस्सेदारी 1993-94 में 64% से घटकर 2018-19 में 5% हो गई थी, लेकिन 2023-24 में बढ़कर 46.2% हो गई।
- असंगठित सेवाओं में वृद्धि (Increase in Informal Sector Jobs):
- भारत में85% श्रमिक असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं, जो देश की GDP में आधे से अधिक का योगदान देते हैं।
- समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की अधिक संख्या असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है।
भारत में असंगठित क्षेत्र की बढ़ती हिस्सेदारी के कारण:
- अकुशल श्रमिक (Unskilled Labour): भारत की शिक्षा प्रणाली व्यावहारिक कौशल की बजाय सैद्धांतिक ज्ञान पर अधिक जोर देती है, जिससे स्नातक छात्र उद्योग की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होते हैं।
- ग्रामीण–शहरी विभाजन (Rural-Urban Divide): दूरस्थ क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण और औद्योगिक अनुभव के अवसर सीमित हैं।
- तकनीकी परिवर्तन: गिग इकॉनमी (Gig Economy) और अस्थायी रोजगार के नए अवसर असंगठित क्षेत्र को बढ़ावा दे रहे हैं।
- लचीलापन (Flexibility): कई श्रमिक अस्थायी नौकरियों को पसंद करते हैं क्योंकि इनमें लचीलापन होता है, हालांकि इनमें स्वास्थ्य सुविधाएँ और पेंशन जैसी सुरक्षा उपलब्ध नहीं होती।