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अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक 2025

सामान्य अध्ययन पेपर II: नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों? 

अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक 2025: हाल ही में भारत सरकार ने अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में संशोधन के लिए अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025 का मसौदा तैयार किया है। इस पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने केंद्रीय कानून मंत्री को अभ्यावेदन देकर इस विधेयक पर आपत्ति जताई है। उनका मानना है कि इससे कानूनी पेशे पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक 2025 क्या है?

भारत सरकार ने अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में सुधार लाने के उद्देश्य से अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक 2025 पेश किया है। यह विधेयक अनुशासनात्मक तंत्र और वैश्विक मानकों के अनुरूप सुधार लाने के लिए प्रस्तावित है।

  • अधिवक्ता अधिनियम, 1961 भारत में कानूनी पेशे को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून है। इस मौजूदा कानून में विदेशी वकीलों और विधि फर्मों के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं था, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा में बाधा आ रही थी। इस कारण यह विधेयक लाया गया है।
  • इस विधेयक में वर्तमान अधिनियम की तुलना में कई बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं। 
  • कानूनी मामलों के विभाग (Department of Legal Affairs) ने एक तुलनात्मक सारणी तैयार की है, जिसमें मौजूदा प्रावधानों और प्रस्तावित संशोधनों को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।
  • इस विधेयक को कानूनी पेशे में पारदर्शिता, अनुशासन और वैश्विक मानकों के अनुरूप सुधार लाने के लिए प्रस्तावित किया गया है। 
  • यह विधेयक कानूनी शिक्षा, अधिवक्ताओं की नैतिकता, बार काउंसिल की जवाबदेही और न्यायिक प्रक्रियाओं को अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से तैयार किया गया है।
  • यह विधेयक भारतीय कानून व्यवस्था को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक 2025 की प्रमुख विशेषताएँ

  • BCI की भूमिका: अब भारतीय बार काउंसिल (BCI) उन विधि फर्मों को नियंत्रित करेगी, जो एक से अधिक राज्यों में अपनी सेवाएँ देती हैं। यदि बार काउंसिल द्वारा बनाए गए नियम केंद्र सरकार की नीतियों के विपरीत होते हैं, तो सरकार को उन्हें निरस्त करने का अधिकार दिया गया है। इससे वकालत से जुड़े संगठनों पर अधिक नियंत्रण और निगरानी संभव होगी।
  • नियामक ढाँचा: इस संशोधन के तहत विदेशी विधि फर्मों को भारत में कार्य करने की अनुमति देने के लिए एक नियामक व्यवस्था बनाई जाएगी। इससे वैश्विक स्तर पर कानूनी सेवाओं का आदान-प्रदान आसान होगा और भारत में अंतरराष्ट्रीय कानून विशेषज्ञों के लिए मार्ग प्रशस्त होगा।
  • सदस्यों की नियुक्ति: अब केंद्र सरकार को भारतीय बार काउंसिल (BCI) में तीन सदस्य नामांकित करने का अधिकार दिया गया है। वहीं, महान्यायवादी (Attorney General) और सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General) पहले की तरह अपने पदों पर बने रहेंगे। अनुच्छेद 49B के तहत सरकार को BCI को कानून लागू करने संबंधी निर्देश देने का अधिकार भी होगा।
  • प्रतिबंध: न्यायपालिका के कार्यों को प्रभावित करने वाली वकीलों की हड़ताल या बहिष्कार को अनुच्छेद 35A के तहत प्रतिबंधित किया गया है। हालाँकि, प्रतीकात्मक या एक दिन की हड़ताल की अनुमति होगी, लेकिन इसके लिए शर्त यह होगी कि ग्राहकों (Clients) के अधिकारों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
  • पंजीकरण: अब यदि कोई वकील एक राज्य से दूसरे राज्य में अपना पंजीकरण स्थानांतरित करना चाहता है, तो उसे इसके लिए शुल्क देना होगा और BCI से अनुमोदन (Approval) प्राप्त करना होगा। इससे राज्य स्तरीय बार काउंसिल के प्रशासन को अधिक व्यवस्थित किया जाएगा।
  • हटाने का प्रावधान: अगर कोई अधिवक्ता तीन वर्ष या उससे अधिक की सजा वाले किसी अपराध में दोषी पाया जाता है, तो उसका नाम राज्य अधिवक्ता सूची से हटा दिया जाएगा। हालाँकि, यह प्रावधान तभी लागू होगा जब हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा सजा की पुष्टि कर दी गई हो।
  • विस्तार: अब “विधि स्नातक (Law Graduate)” की परिभाषा में उन्हीं छात्रों को शामिल किया जाएगा, जिन्होंने BCI द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थानों से LLB की डिग्री प्राप्त की हो। साथ ही, “कानूनी पेशेवर (Legal Practitioner)” की परिभाषा का विस्तार करके उसमें कॉर्पोरेट वकीलों और विदेशी विधि फर्मों में कार्यरत वकीलों को भी शामिल किया गया है।
  • सजा: अगर कोई व्यक्ति बिना अधिवक्ता (Advocate) बने कानून की प्रैक्टिस करता है, तो उसे अधिक कड़ी सजा का सामना करना पड़ेगा। इसमें एक वर्ष तक की कैद (पहले 6 महीने थे) और ₹2 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। इससे नकली वकीलों पर रोक लगेगी और कानूनी पेशे की साख और विश्वसनीयता बनी रहेगी।

अधिवक्ता अधिनियम, 1961

  • अधिवक्ता अधिनियम, 1961 भारत में विधि व्यवसाय (Legal Profession) के नियमन और एकीकृत प्रबंधन के लिए बनाया गया एक प्रमुख कानून है। 
  • इसका उद्देश्य बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) और राज्य विधिज्ञ परिषदों (State Bar Councils) की स्थापना करना और अधिवक्ताओं की योग्यता, आचरण, पंजीकरण और अनुशासन से संबंधित प्रावधान तय करना है।
  • इस अधिनियम के तहत 1879 के विधि व्यवसायी अधिनियम (Legal Practitioners Act) को निरस्त किया और एक नई एकीकृत कानूनी व्यवस्था लागू की गई।
  • इस अधिनियम में वकीलों की योग्यता, विशेष दर्जे और नामांकन (Enrollment) की प्रक्रिया निर्धारित की गई।
  • इसमें अधिवक्ताओं के लिए व्यावसायिक आचार संहिता (Code of Conduct) तय की गई और उल्लंघन करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान किया गया।
  • इसके तहत वकीलों के एक राज्य से दूसरे राज्य में पंजीकरण स्थानांतरण (Transfer of Enrollment) की प्रक्रिया तय की गई।

भारतीय विधिज्ञ परिषद (BCI)

  • भारतीय विधिज्ञ परिषद (Bar Council of India – BCI) भारत में विधिक व्यवसाय और विधि शिक्षा का नियमन करने वाली एक स्वायत्त (Autonomous) और सांविधिक (Statutory) संस्था है। 
  • इसका गठन अधिवक्ता अधिनियम, 1961 (Advocates Act, 1961) के तहत किया गया था।
  • यह संस्था न केवल वकीलों के आचरण और पेशेवर नैतिकता को नियंत्रित करती है, बल्कि विधि शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए भी जिम्मेदार है।
  • मुख्य कार्य
    • BCI वकीलों के पंजीकरण (Registration), उनके व्यावसायिक आचरण (Professional Conduct) और अनुशासन (Discipline) को नियंत्रित करता है। यदि कोई वकील पेशेवर आचार संहिता का उल्लंघन करता है, तो परिषद उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है।
    • यह संस्था विधि महाविद्यालयों (Law Colleges) और विश्वविद्यालयों (Universities) को मान्यता देती है, जो भारत में विधि शिक्षा प्रदान करते हैं। 
    • भारत में प्रत्येक राज्य में राज्य विधिज्ञ परिषदें (State Bar Councils) कार्यरत हैं। BCI इन राज्य परिषदों को मार्गदर्शन और नियामक समर्थन प्रदान करता है।
    • परिषद का उद्देश्य वकालत पेशे में निष्पक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है। 
  • संरचना 
    • BCI में निम्नलिखित पदेन (Ex-officio) और निर्वाचित (Elected) सदस्य होते हैं:
      • भारत के महान्यायवादी (Attorney General of India) – पदेन सदस्य
      • भारत के महा सॉलिसिटर (Solicitor General of India) – पदेन सदस्य
      • प्रत्येक राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा निर्वाचित सदस्य
  • अनुशासनात्मक शक्तियाँ
    • BCI के पास न्यायालय जैसी शक्तियाँ होती हैं, जिनमें शामिल हैं:
      • किसी व्यक्ति को समन (Summon) जारी करना और गवाही के लिए बुलाना
      • शपथ पर साक्ष्य लेना और साक्ष्यों की जांच करना
      • दस्तावेजों और अभिलेखों की जांच करना
      • राज्य विधिज्ञ परिषदों के निर्णयों की समीक्षा और अपील पर सुनवाई करना

अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक 2025 लाने के पीछे मुख्य कारण

  • अनुशासन की कमी: बार-बार होने वाली अनुशासनहीनता, अवैध हड़तालें और न्यायिक कार्यों में व्यवधान से वकालत का पेशा प्रभावित हो रहा था। कई बार वकीलों द्वारा अनावश्यक बहिष्कार (Boycott) और प्रदर्शन किए जाते थे, जिससे अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही थी। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने सख्त प्रावधानों की जरूरत महसूस की।
  • पारदर्शिता की कमी: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) और राज्य बार काउंसिल्स की कार्यशैली में पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव देखा गया। कई बार अनियमितताओं और पक्षपात के आरोप लगे हैं। सरकार को लगा कि इन संस्थानों में केंद्र सरकार की अधिक निगरानी आवश्यक है, जिससे यह विधेयक लाया गया।
  • गैर-कानूनी रूप से वकालत: बिना लाइसेंस या वैध पंजीकरण के कई लोग गैरकानूनी रूप से वकालत कर रहे थे, जिससे आम नागरिकों के अधिकारों का हनन हो रहा था। मौजूदा कानूनों में ऐसे फर्जी वकीलों पर कार्रवाई करने के लिए स्पष्ट और कठोर प्रावधान नहीं थे। इस विधेयक में ऐसे गैर-अधिवक्ताओं पर सख्त दंड का प्रावधान किया गया है।
  • नियमन: भारत में कई विधि फर्में बिना किसी स्पष्ट नियामक नियंत्रण (Regulatory Control) के संचालित हो रही थीं। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पास अभी तक केवल व्यक्तिगत वकीलों को नियंत्रित करने की शक्ति थी, लेकिन विधि फर्मों को एकीकृत नियामक ढांचे में लाने की जरूरत महसूस की गई।

अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक 2025: संभावित प्रभाव और उत्पन्न चिंताएँ

  • संभावित प्रभाव
    • व्यावसायिक मानकों में सुधार: प्रस्तावित संशोधन नियमित प्रमाणन (Regular Certification) और सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई के माध्यम से वकीलों की गुणवत्ता में सुधार करेंगे। इससे विधि व्यवसाय में पेशेवर नैतिकता और अनुशासन को मजबूती मिलेगी।
    • कानूनी शिक्षा का मानकीकरण: एक एकीकृत कानूनी शिक्षा ढांचा (Standardized Legal Education Framework) लागू होने से डिग्रियों की विश्वसनीयता बढ़ेगी। इससे भारतीय वकीलों को वैश्विक कानूनी बाजारों में अवसर मिलेंगे और भारत की विधि शिक्षा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनेगी।
    • बार काउंसिल में पारदर्शिता: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) और राज्य बार काउंसिल्स की कार्यप्रणाली को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी (Transparent and Accountable) बनाया जाएगा। इससे बार काउंसिल के कामकाज में सुधार होगा और भ्रष्टाचार की संभावना घटेगी।
    • फर्जी वकीलों पर सख्त कार्रवाई: बिना लाइसेंस अवैध रूप से वकालत करने वालों पर सख्त दंडात्मक प्रावधान लागू होंगे। इससे वकालत पेशे की गरिमा और विश्वसनीयता बनी रहेगी।
    • विदेशी विधि फर्म: संशोधन से विदेशी विधि फर्मों और विदेशी वकीलों के लिए एक कानूनी ढांचा (Regulatory Framework) तैयार किया जाएगा। इससे भारत में कानूनी सेवाओं के वैश्वीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
  • चिंताएँ
    • सरकार का नियंत्रण: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) में केंद्र सरकार के तीन नामांकित सदस्यों को शामिल करने का प्रस्ताव है। इससे वकीलों की स्वायत्तता (Autonomy) और स्वतंत्रता (Independence) पर असर पैदा हो सकता है।
    • हड़ताल पर प्रतिबंध: अनुच्छेद 35A के तहत हड़ताल और बहिष्कार पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं। इससे वकीलों की संवैधानिक अधिकारों, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विरोध के अधिकार पर प्रभाव पड़ सकता है।
    • विदेशी विधि फर्म: विदेशी विधि फर्मों को भारत में काम करने की अनुमति देने से स्थानीय वकीलों और विधि फर्मों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। इससे छोटे और मध्यम स्तर के वकीलों को रोजगार और आय के अवसरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
    • आर्थिक बोझ: वकीलों को एक राज्य से दूसरे राज्य में पंजीकरण स्थानांतरित करने के लिए शुल्क देना होगा और बार काउंसिल की अनुमति लेनी होगी। इससे युवा और छोटे वकीलों पर वित्तीय बोझ बढ़ सकता है।

UPSC पिछले वर्ष का प्रश्न (PYQ)

प्रश्न (2022): भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. सरकारी विधि अधिकारी और विधिक फर्म अधिवक्ताओं के रूप में मान्यता प्राप्त हैं, किंतु कॉर्पोरेट वकील और पेटेंट न्यायवादी अधिवक्ता की मान्यता से बाहर रखे गये हैं।  
  2. विधिज्ञ परिषदों (बार काउंसिल) को विधिक शिक्षा और विधि विश्वविद्यालयों की मान्यता के बारे में नियम अधिकथित करने की शक्ति है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

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