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एयरटेल और जियो का स्टारलिंक के साथ समझौता

सामान्य अध्ययन पेपर III: आईटी और कंप्यूटर, विकास से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत की प्रमुख टेलीकॉम कंपनियां भारती एयरटेल और रिलायंस जियो ने एलन मस्क की स्टारलिंक सेवा के साथ समझौता करने की घोषणा की है। इस समझौते का उद्देश्य देशभर में उपभोक्ताओं को बेहतर कनेक्टिविटी उपलब्ध कराना है।

भारत में हाई-स्पीड सैटेलाइट इंटरनेट की नई क्रांति

  • एयरटेल-स्टारलिंक समझौता
    • एयरटेल अपने रिटेल नेटवर्क और इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करके स्टारलिंक हार्डवेयर (उपकरणों) की बिक्री और इंटरनेट सेवाओं का विस्तार करेगा।
    • स्पेसएक्स के लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट्स के माध्यम से दूरस्थ गाँवों, स्कूलों और हेल्थकेयर सेंटरों तक इंटरनेट पहुँचाया जाएगा।
    • कॉरपोरेट और एंटरप्राइज ग्राहकों के लिए यह सेवा OneWeb के साथ मिलकर काम करेगी, जिससे भारत के डिजिटल इकोसिस्टम को और मजबूती मिलेगी।
    • एयरटेल अपने नेटवर्क टावरों और डेटा केंद्रों का उपयोग करके इस सेवा को अधिक प्रभावी बनाएगा।
  • जियो-स्टारलिंक समझौता
    • जियो अपने रिटेल स्टोर्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से स्टारलिंक के इंटरनेट सॉल्यूशंस की बिक्री करेगा।
    • यह सेवा उन इलाकों तक पहुँचेगी, जहाँ पारंपरिक ब्रॉडबैंड या फाइबर नेटवर्क बिछाना कठिन है।
    • जियो स्टारलिंक उपकरणों की स्थापना (इंस्टॉलेशन) और सक्रियता (एक्टिवेशन) की भी सुविधा देगा।
    • यह सेवा JioFiber और JioAirFiber की मौजूदा ब्रॉडबैंड सेवाओं को और विस्तार देगी।

दोनों भारतीय कंपनियों के साथ सफल क्रियान्वयन के लिए स्टारलिंक को TRAI (टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी) और DoT (दूरसंचार विभाग) से आवश्यक अनुमतियाँ लेनी होंगी।

स्टारलिंक क्या है?

स्टारलिंक एक सैटेलाइट इंटरनेट सेवा है, जिसे स्पेसएक्स (SpaceX) संचालित करता है। इसका उद्देश्य दुनिया भर में तेज़ और विश्वसनीय इंटरनेट प्रदान करना है, विशेष रूप से उन इलाकों में जहाँ पारंपरिक ब्रॉडबैंड सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं। 

  • यह सेवा लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO – Low Earth Orbit) में स्थापित उपग्रहों के माध्यम से संचालित होती है और ग्राउंड ट्रांसीवर (ग्राहकों के रिसीवर) से सीधे जुड़ती है।
  • स्टारलिंक के उपग्रह लगभग 550 किमी की ऊँचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। यह परंपरागत संचार उपग्रहों की तुलना में काफी कम ऊँचाई है, जिससे इंटरनेट कनेक्शन तेज़ और कम-विलंबता (low-latency) वाला होता है।
  • 2019 में पहला लॉन्च होने के बाद, मार्च 2024 तक 6,000 से अधिक उपग्रह कक्षा में स्थापित किए जा चुके हैं।
  • स्टारलिंक सेवा में 50Mbps से 250Mbps तक की डाउनलोड स्पीड प्राप्त होती है।
  • यह नेटवर्क दुनिया के किसी भी हिस्से में, रेगिस्तानों, पहाड़ों, महासागरों और युद्धग्रस्त क्षेत्रों तक इंटरनेट पहुँचाने में सक्षम है।
  • स्टारलिंक सेवा उपयोग करने के लिए उपभोक्ताओं को एक सैटेलाइट रिसीवर (डिश) और वाई-फाई राउटर की आवश्यकता होती है।
  • स्टारलिंक की सेवाएं 80 से अधिक देशों में पहले से ही उपलब्ध हैं।
  • इसका उद्देश्य वैश्विक मोबाइल ब्रॉडबैंड नेटवर्क स्थापित करना है, जिससे बिना किसी केबल कनेक्शन के तेज़ इंटरनेट सेवा मिले।
  • 2024 तक स्टारलिंक के 3 मिलियन से अधिक ग्राहक हो चुके हैं, और यह संख्या तेज़ी से बढ़ रही है।
  • स्टारशील्ड (Starshield) नामक इसका एक सैन्य संस्करण, विशेष रूप से सरकारी और रक्षा उद्देश्यों के लिए डिज़ाइन किया गया है।

कैसे काम करती है स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट सेवा?

यह सेवा लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO – निम्न पृथ्वी कक्षा) में तैनात हजारों उपग्रहों के माध्यम से संचालित होती है, जो पृथ्वी की सतह से सिर्फ 550 किलोमीटर की ऊँचाई पर चक्कर लगाते हैं। 

  • सैटेलाइट नेटवर्क: इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP) का डेटा सेंटर इंटरनेट डेटा को स्टारलिंक उपग्रहों तक भेजता है। यह डेटा उपग्रहों के नेटवर्क में ट्रांसमिट होकर पृथ्वी पर स्थित यूज़र के डिवाइस तक पहुँचता है। यह पूरी प्रक्रिया तेज़ और न्यूनतम विलंबता (low-latency) के साथ संचालित होती है।
  • सेटअप: स्टारलिंक सेवा का उपयोग करने के लिए यूज़र को एक विशेष डिश ऐंटीना (सैटेलाइट रिसीवर) मिलता है, जिसे खुली जगह (छत या खुले मैदान) में स्थापित किया जाता है। यह ऐंटीना स्वतः ही सबसे निकटतम उपग्रह से जुड़ता है और सिग्नल को रिसीव करता है। इसके बाद यह सिग्नल एक मॉडेम (Modem) के ज़रिए यूज़र के डिवाइस (मोबाइल, लैपटॉप आदि) तक पहुँचाया जाता है।
  • डेटा रिक्वेस्ट की प्रक्रिया: जब कोई यूज़र इंटरनेट पर कोई रिक्वेस्ट (जैसे वेबसाइट खोलना, वीडियो स्ट्रीमिंग आदि) करता है, तो यह सिग्नल पहले डिश ऐंटीना से स्टारलिंक उपग्रह तक जाता है। फिर यह उपग्रह इस रिक्वेस्ट को ISP डेटा सेंटर तक पहुँचाता है, जहाँ से इंटरनेट डेटा प्राप्त होता है। इसके बाद डेटा उपग्रहों के माध्यम से वापस यूज़र के ऐंटीना में आता है और डिवाइस तक पहुँचता है।

सैटेलाइट इंटरनेट सेवा:

  • सैटेलाइट इंटरनेट एक वायरलेस ब्रॉडबैंड तकनीक है, जिसमें पारंपरिक फाइबर ऑप्टिक या केबल आधारित नेटवर्क की बजाय अंतरिक्ष में स्थित उपग्रहों के माध्यम से इंटरनेट सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। 
  • यह सेवा रेडियो तरंगों के ज़रिए संचालित होती है, जो पृथ्वी पर स्थित सैटेलाइट डिश और अंतरिक्ष में परिक्रमा कर रहे उपग्रहों के बीच संचार स्थापित करती हैं।
  • इसमें एक सैटेलाइट डिश अपने सबसे नज़दीकी उपग्रह से संपर्क स्थापित करती है और इंटरनेट डेटा को भेजने (Upload) तथा प्राप्त करने (Download) का कार्य करती है।
  • इस पूरी प्रक्रिया में कुछ मिलीसेकंड का समय लगता है।

सैटेलाइट इंटरनेट के प्रकार: LEO बनाम GEO

  • लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO – निम्न पृथ्वी कक्षा)
      • यह पृथ्वी की सतह से 200 किमी से 2,000 किमी की ऊँचाई पर स्थित होते हैं।
      • कम ऊँचाई के कारण डेटा को कम दूरी तय करनी पड़ती है, जिससे इंटरनेट की गति तेज़ और विलंबता (Latency) कम होती है।
      • पृथ्वी से निकट होने की वजह से इन्हें लगातार कनेक्शन बनाए रखने के लिए अधिक संख्या में तैनात करना पड़ता है।
      • स्टारलिंक (SpaceX), अमेज़न का कुइपर (Kuiper), और वनवेब (OneWeb) जैसी कंपनियाँ LEO उपग्रह आधारित इंटरनेट सेवाएँ विकसित कर रही हैं।
  • जियोस्टेशनरी ऑर्बिट (GEO – भूस्थैतिक कक्षा)
    • यह उपग्रह पृथ्वी से 35,786 किमी की ऊँचाई पर स्थित होते हैं।
    • ये उतने ही समय में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करते हैं, जितने में पृथ्वी अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करती है, इसलिए ये स्थिर प्रतीत होते हैं।
    • इनकी ऊँचाई अधिक होने के कारण ये एक बड़े क्षेत्र को कवर कर सकते हैं, जिससे कम संख्या में उपग्रहों की जरूरत पड़ती है।
    • हालाँकि, अधिक ऊँचाई की वजह से डेटा ट्रांसफर में देरी (High Latency) होती है, जिससे वीडियो कॉलिंग, ऑनलाइन गेमिंग और लाइव स्ट्रीमिंग जैसी सेवाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • इन उपग्रहों का उपयोग मुख्य रूप से मौसम निगरानी, सैन्य संचार और टेलीविज़न प्रसारण के लिए किया जाता है।

भारत में इन समझौतों का महत्व

  • डिजिटल इंडिया मिशन: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “डिजिटल इंडिया” अभियान का मुख्य उद्देश्य भारत को एक डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में बदलना है। लेकिन अभी भी कई ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों में इंटरनेट की सीमित पहुँच इस लक्ष्य को बाधित कर रही है। 
    • स्टारलिंक के लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट के जरिए भारत के उन हिस्सों में भी इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराई जा सकेगी, जहाँ अब तक फाइबर या मोबाइल नेटवर्क की पहुँच नहीं थी।
    • ई-गवर्नेंस, डिजिटल लेन-देन, ऑनलाइन शिक्षा और टेलीमेडिसिन जैसी सेवाओं को सुदूर क्षेत्रों तक पहुँचाने में यह समझौता सहायक होगा।
    • क्लाउड कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाने में यह कनेक्टिविटी मददगार साबित होगी।
    • इससे सरकारी योजनाओं की डिजिटल डिलीवरी बेहतर होगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
  • ग्रामीण भारत में इंटरनेट: भारत की लगभग 65% आबादी गाँवों में रहती है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी अभी भी बड़ी चुनौती बनी हुई है। स्टारलिंक की साझेदारी से इन इलाकों में इंटरनेट सेवाएँ तेजी से बढ़ेंगी, जिससे कई नए अवसर पैदा होंगे।
    • गाँवों के छात्र अब बिना बाधा के ऑनलाइन क्लासn(E-learning), डिजिटल लाइब्रेरी और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स का लाभ उठा सकेंगे।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी एक बड़ी समस्या है। इंटरनेट के जरिए शहरों के विशेषज्ञ डॉक्टर दूरदराज के मरीजों को परामर्श दे सकेंगे।
    • किसान अब मौसम की भविष्यवाणी, बाजार की जानकारी और कृषि संबंधी नवीनतम तकनीकों को ऑनलाइन एक्सेस कर सकेंगे, जिससे उनकी उत्पादकता बढ़ेगी।
  • उपभोक्ताओं को लाभ: भारत में जियो, एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया (Vi) के बीच पहले से ही कड़ी प्रतिस्पर्धा है। अब स्टारलिंक के प्रवेश से यह प्रतिस्पर्धा और भी बढ़ेगी, जिससे उपभोक्ताओं को कई लाभ होंगे।
    • टेलीकॉम कंपनियाँ अब बेहतर नेटवर्क कवरेज, उच्च स्पीड और किफायती प्लान पेश करने के लिए मजबूर होंगी।
    • 5G के बाद अब सैटेलाइट इंटरनेट भी भारतीय उपभोक्ताओं को एक नया विकल्प देगा, जिससे तेज़ और निर्बाध इंटरनेट सेवा मिलेगी।
    • छोटे व्यवसाय और स्टार्टअप अब रिमोट लोकेशन से भी वैश्विक स्तर पर अपने काम को बढ़ा सकेंगे।

समझौतों से संबंधित चुनौतियाँ

भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सेवा का विस्तार करने के लिए एयरटेल और स्टारलिंक का समझौता कई संभावनाएँ लेकर आया है। हालाँकि, इस तकनीक को व्यापक रूप से अपनाने से पहले कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक होगा। 

  • मौसम का प्रभाव: सैटेलाइट इंटरनेट सेवा का सबसे बड़ा तकनीकी प्रतिबंध मौसम की परिस्थितियाँ हैं। भारी बारिश, घना कोहरा, तूफान या बर्फबारी जैसे प्राकृतिक कारक सैटेलाइट के सिग्नलों को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे इंटरनेट सेवा धीमी हो सकती है या पूरी तरह बाधित हो सकती है। पारंपरिक ब्रॉडबैंड सेवाओं की तुलना में, सैटेलाइट इंटरनेट को इन समस्याओं से अधिक जूझना पड़ता है, जिससे इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न उठते हैं।
  • उच्च लागत: सैटेलाइट इंटरनेट सेवा अभी भी केबल इंटरनेट की तुलना में अधिक महंगी है। स्टारलिंक जैसी सेवाओं के लिए न केवल शुरुआत में डिश एंटीना और अन्य हार्डवेयर खरीदने का खर्च अधिक होता है, बल्कि मासिक डेटा प्लान भी महंगे होते हैं। यह सेवा आम उपभोक्ताओं के लिए विशेष रूप से भारत जैसे मूल्य-संवेदनशील बाजार में सुलभ नहीं हो सकती, जहाँ मोबाइल डेटा और ब्रॉडबैंड सेवाएँ अपेक्षाकृत सस्ती हैं।
  • अंतरिक्ष में मलबे (Space Debris) की समस्या: स्टारलिंक और अन्य कंपनियाँ हजारों सैटेलाइट लॉन्च कर रही हैं, जिससे अंतरिक्ष में कृत्रिम उपग्रहों की भीड़ बढ़ रही है। यह “स्पेस डेब्रिस” या अंतरिक्ष मलबे की समस्या को और गंभीर बना सकता है। यदि किसी निष्क्रिय या क्षतिग्रस्त सैटेलाइट के टकराने से मलबा उत्पन्न होता है, तो इससे अन्य सैटेलाइट्स और भविष्य में होने वाले अंतरिक्ष अभियानों को खतरा हो सकता है। 
  • VPN और साइबर सुरक्षा: सैटेलाइट इंटरनेट पारंपरिक ब्रॉडबैंड या फाइबर इंटरनेट की तरह स्थिर नहीं होता, जिससे यह वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPN) सेवाओं के साथ पूरी तरह सुसंगत नहीं रहता। VPN का उपयोग डेटा सुरक्षा और गोपनीयता बढ़ाने के लिए किया जाता है, लेकिन सैटेलाइट इंटरनेट में इसकी कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है।

UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न (2023): निम्नलिखित देशों में से किस एक के पास अपनी उपग्रह मार्गनिर्देशन (नैविगेशन) प्रणाली है?

(a) ऑस्ट्रेलिया

(b) कनाडा

(c) इज़रायल

(d) जापान

उत्तर: (d)

प्रश्न (2018): भारतीय क्षेत्रीय-संचालन उपग्रह प्रणाली (इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम/IRNSS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: 

  1. IRNSS के तुल्यकाली (जियोस्टेशनरी) कक्षाओं में तीन उपग्रह हैं और भूतुल्यकाली (जियोसिंक्रोनेस) कक्षाओं में चार उपग्रह हैं।  
  2. IRNSS की व्याप्ति संपूर्ण भारत पर और इसकी सीमाओं के लगभग 5500 वर्ग किलोमीटर बाहर तक है।  
  3. वर्ष 2019 के मध्य तक भारत की पूर्ण वैश्विक व्याप्ति के साथ अपनी उपग्रह संचालन प्रणाली होगी।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 2

(c) केवल 2 और 3

(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (a)

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