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आदतन अपराधी कानून (Habitual Offender Law)

संदर्भ:

आदतन अपराधी कानून (Habitual Offender Law): भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आदतन अपराधियों (Habitual Offenders) के वर्गीकरण से जुड़े कानूनों पर चिंता व्यक्त की है। मार्च 2025 तक, 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ये वर्गीकरण लागू हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी इस वर्गीकरण को संवैधानिक रूप से संदिग्ध माना था, विशेष रूप से अस्वीकृत जनजातियों (Denotified Tribes) पर इसके प्रभाव को लेकर।

भारत में आदतन अपराधी कानून (Habitual Offender Law):

  • परिभाषा: ऐसे कानून जो राज्य प्राधिकरणों को बार-बार कुछ अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्तियों की निगरानी करने की अनुमति देते हैं।
  • उद्देश्य: मूल रूप से बार-बार अपराध करने वालों पर नियंत्रण रखने के लिए बनाए गए थे, लेकिन इन्हें विशेष रूप से विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों (DNT, NT, SNT) के खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा देने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है, जिन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान ‘अपराधी जनजातियाँ’ के रूप में लेबल किया गया था।

आदतन अपराधी कानून (Habitual Offender Law) का विकास:

  1. औपनिवेशिक युग की नीतियाँ (Colonial Era Policies): ब्रिटिश काल के कानूनों ने कुछ जनजातियों को जन्म से ही ‘अपराधी’ घोषित कर दिया था।
  2. स्वतंत्रता के बाद का विकास (Post-Independence Developments):
    • अपराधी जनजाति अधिनियम का निरसन (1952):कई राज्यों द्वारा इसे आदतन अपराधी अधिनियम (Habitual Offenders Acts) से बदल दिया गया।
    • राज्य कानून (1950-1970 के दशक):
      • मद्रास आदतन अपराधी अधिनियम, 1948
      • राजस्थान आदतन अपराधी अधिनियम, 1953।
      • इसी तरह के कानून आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि में भी बनाए गए।

सुप्रीम कोर्ट का रुख और सिफारिशें:

अक्टूबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने आदतन अपराधी कानूनों के अनुप्रयोग चिंता व्यक्त की।

  • अदालत ने कहा कि ये कानून अक्सर विमुक्त जनजातियों  के सदस्यों को निशाना बनाते हैं, जिससे अपराधीकरण का चक्र बना रहता है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से ऐसे कानूनों की आवश्यकता पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया और सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया।

NCRB डेटा (2022) के अनुसार आदतन अपराधी

  • भारत के 29 लाख दोषियों में से 1.9% को आदतन अपराधी के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • दिल्ली में सबसे अधिक आदतन अपराधियों का अनुपात है (5%)।

विमुक्त जनजातियों पर प्रभाव:

  • सामाजिक प्रभाव:
    • लगातार पुलिस उत्पीड़न और गलत गिरफ्तारी।
    • रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं में भेदभाव।
    • संपूर्ण समुदायों को “जन्मजात अपराधी” के रूप में कलंकित करना।
  • कानूनी और मानवाधिकार संबंधी चिंताएं:
    • 1998 बुढ़न साबर केस: पुलिस हिरासत में मृत्यु से राष्ट्रव्यापी आक्रोश उत्पन्न हुआ।
    • DNT-RAG: महाश्वेता देवी और जी.एन. देवी द्वारा विमुक्त जनजातियों के अधिकारों के लिए गठित।
    • NHRC (2000): आदतन अपराधी कानूनों को समाप्त करने की सिफारिश की।
    • संयुक्त राष्ट्र (2007): मानवाधिकार उल्लंघनों का हवाला देते हुए इन कानूनों को समाप्त करने की मांग की।

आगे का रास्ता:

  1. न्यायिक और विधायी समीक्षा: राज्यों को आदतन अपराधी कानूनों की प्रासंगिकता का वस्तुनिष्ठ विश्लेषण करना चाहिए।
  2. विकल्पीय अपराधरोकथाम: पुनर्वास और सामाजिक पुनः एकीकरण कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना। रोजगार और शिक्षा के अवसर बढ़ाना।
  3. संवेदनशीलता बढ़ाना: पुलिस बलों को विमुक्त जनजातियों के प्रति भेदभाव रोकने के लिए प्रशिक्षण देना। कानून प्रवर्तन में संवेदनशीलता और निष्पक्षता को बढ़ावा देना।

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