सामान्य अध्ययन पेपर III: अंतर्राष्ट्रीय संधि और समझौते |
चर्चा में क्यों?
दक्षिण कोरिया-जापान-चीन की त्रिपक्षीय बैठक : हाल ही में चीन, जापान और दक्षिण कोरिया ने क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए त्रिपक्षीय बैठक की। पांच साल बाद पहली आर्थिक वार्ता में तीनों देशों ने व्यापार बाधाओं को कम करने और क्षेत्रीय आर्थिक स्थिरता बढ़ाने पर सहमति जताई हैं।
दक्षिण कोरिया-जापान-चीन की त्रिपक्षीय बैठक के मुख्य बिंदु
- चीन, जापान और दक्षिण कोरिया ने अमेरिकी टैरिफ नीतियों से उत्पन्न व्यापारिक चुनौतियों का सामना करने के लिए दक्षिण कोरिया के सियोल में त्रिपक्षीय बैठक आयोजित की।
- बैठक का प्रमुख उद्देश्य दक्षिण कोरिया-जापान-चीन मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को गति देना है। यह समझौता तीनों देशों के बीच व्यापार बाधाओं को कम करने, टैरिफ दरों को संतुलित करने और व्यापार संबंधों को सुगम बनाने में मदद करेगा।
- तीनों देशों ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) को अधिक प्रभावी और मजबूत बनाने की प्रतिबद्धता जताई। RCEP दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार समझौता है, जिसमें एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 15 देश शामिल हैं। इस गठबंधन का उद्देश्य व्यापार को सुगम बनाना, निवेश को प्रोत्साहन देना और क्षेत्रीय आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है। बैठक में इस पर सहमति बनी कि आरसीईपी के तहत मौजूदा व्यापार नियमों को और अधिक प्रभावी बनाया जाएगा।
- त्रिपक्षीय व्यापार सहयोग को और अधिक गहरा करने के लिए अगली मंत्रिस्तरीय बैठक जापान में आयोजित की जाएगी। इस बैठक में तीनों देशों द्वारा संयुक्त व्यापारिक परियोजनाओं पर चर्चा की जाएगी।
चीन-जापान-दक्षिण कोरिया मुक्त व्यापार समझौता
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चीन-जापान-दक्षिण कोरिया त्रिपक्षीय बैठक: परिचय
चीन, जापान और दक्षिण कोरिया पूर्वी एशिया की तीन प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ हैं। त्रिपक्षीय बैठक जिसे त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन भी कहा जाता है, इन तीन देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण मंच है।
- इसका प्रारंभिक विचार 2004 में दक्षिण कोरिया द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
- इसके बाद सबसे पहले 2008 में जापान के फुकुओका में पहली आधिकारिक बैठक आयोजित हुई। जिसका उद्देश्य आपसी सहयोग को मजबूत करना और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखना था।
- शुरुआत में यह आसियान-प्लस-थ्री (ASEAN+3) ढांचे के तहत बैठकें थीं, लेकिन बाद में इसे स्वतंत्र मंच के रूप में विकसित किया गया।
- मुख्य उद्देश्य:
- आर्थिक सहयोग – व्यापारिक नीतियाँ, निवेश और मुक्त व्यापार समझौतों पर चर्चा।
- सुरक्षा एवं भू-राजनीतिक रणनीति – क्षेत्रीय तनाव, समुद्री विवाद, और उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम।
- आपदा प्रबंधन – भूकंप, सुनामी, महामारी जैसी आपदाओं के दौरान सहयोग।
- वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग – नवाचार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, और ग्रीन एनर्जी पर अनुसंधान।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान – पर्यटन, छात्र विनिमय और सांस्कृतिक कार्यक्रम।
- ऐतिहासिक क्रम
- पहला शिखर सम्मेलन 2008 (जापान, फुकुओका) – त्रिपक्षीय सहयोग की नींव रखना, आर्थिक और आपदा राहत सहयोग पर सहमति।
- दूसरा शिखर सम्मेलन 2009 (चीन, बीजिंग) – आर्थिक स्थिरता और व्यापार सहयोग पर विशेष ध्यान।
- तीसरा शिखर सम्मेलन 2010 (दक्षिण कोरिया, जेजू द्वीप) – पहली बार उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर सामूहिक चिंता व्यक्त की गई।
- चौथा शिखर सम्मेलन 2011 (जापान, टोक्यो) – आपदा राहत और मानवीय सहायता के लिए त्रिपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर सहमति।
- पाँचवाँ शिखर सम्मेलन 2012 (चीन, बीजिंग) – त्रिपक्षीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (CJK FTA) की नींव रखी गई।
- छठा शिखर सम्मेलन 2015 (दक्षिण कोरिया, सियोल) – त्रिपक्षीय व्यापार वार्ता को पुनः सक्रिय किया गया।
- सातवाँ शिखर सम्मेलन 2018 (जापान, टोक्यो) – त्रिपक्षीय व्यापार और निवेश सहयोग पर चर्चा।
- आठवाँ शिखर सम्मेलन 2019 (चीन, चेंगदू) – 5G, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और पर्यावरण संरक्षण पर सहयोग बढ़ाने का निर्णय।
- नौवाँ शिखर सम्मेलन 2024 (दक्षिण कोरिया, सियोल) – त्रिपक्षीय सहयोग सचिवालय (TCS) को और मजबूत करने का निर्णय। इसमें हरित ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन पर साझा रणनीति पर भी सहमति जताई गई।
चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के ऐतिहासिक संबंध
- जापान-दक्षिण कोरिया
- 20वीं शताब्दी में जापानी उपनिवेशवाद के कारण दोनों देशों के बीच गहरा तनाव रहा, जो समय-समय पर फिर से उभरता रहा है।
- 2019 में यह तनाव तब बढ़ गया जब जापान ने दक्षिण कोरिया के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण रसायनों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिनका उपयोग सेमीकंडक्टर उद्योग में होता है।
- यह प्रतिबंध दक्षिण कोरियाई अदालत द्वारा जापानी कंपनियों को द्वितीय विश्व युद्ध के समय जबरन श्रम के लिए मुआवजा देने के आदेश के बाद लगाया गया था।
- हालांकि, व्यापारिक दबाव और अमेरिकी हस्तक्षेप के चलते दोनों देशों ने धीरे-धीरे वार्ता का रास्ता अपनाया। लेकिन सुरक्षा मुद्दों पर मतभेद तब और गहरा गए जब दक्षिण कोरिया ने जापान के साथ एक महत्त्वपूर्ण सैन्य सूचना साझेदारी समझौते से खुद को अलग कर लिया, जिससे अमेरिका को भी झटका लगा।
- चीन-दक्षिण कोरिया
- दक्षिण कोरिया और चीन के बीच व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधों में गहरा उतार-चढ़ाव देखा गया है।
- चीन ने अमेरिकी मिसाइल डिफेंस सिस्टम ‘THAAD’ को दक्षिण कोरिया में तैनात किए जाने का कड़ा विरोध किया, क्योंकि उसे यह अपनी सुरक्षा के लिए खतरा महसूस हुआ।
- जवाब में चीन ने दक्षिण कोरिया के खिलाफ कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जिसमें कोरियाई मनोरंजन उद्योग पर रोक, चीनी पर्यटकों के दौरों पर प्रतिबंध और दक्षिण कोरियाई कंपनियों को चीन में व्यापार करने से रोकना शामिल था।
- हालांकि, समय के साथ चीन और दक्षिण कोरिया ने व्यापारिक संबंधों को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश की, और 2020 में चीनी राष्ट्रपति द्वारा दक्षिण कोरिया का दौरा किया गया, लेकिन उसका कुछ खास असर नहीं दिखा।
- जापान-चीन
- जापान और चीन के संबंध ऐतिहासिक रूप से सबसे अधिक जटिल और शत्रुतापूर्ण रहे हैं।
- उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण, चीन के समुद्री सैन्य विस्तार और जापान की सुरक्षा चिंताओं ने दोनों देशों के बीच तनाव को लंबे समय तक बनाए रखा।
- हालांकि, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध ने जापान और चीन को नए व्यापार समझौतों पर विचार करने के लिए प्रेरित किया।
- चीन और जापान ने पारस्परिक व्यापार को बढ़ावा देने और राजनीतिक मतभेदों को कम करने के लिए उच्च-स्तरीय द्विपक्षीय वार्ता शुरू की।
- साथ ही, जापान ने चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत और अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ सैन्य और व्यापारिक साझेदारी को भी मजबूत किया, जिससे क्षेत्र में शक्ति संतुलन की एक नई स्थिति बन रही है।
चीन-जापान-दक्षिण कोरिया त्रिपक्षीय बैठक का महत्व
- कूटनीतिक परिप्रेक्ष्य
- क्षेत्रीय स्थिरता की पहल – यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय हुआ जब पूर्वी एशिया में सुरक्षा और कूटनीति को लेकर गहरी अस्थिरता देखी जा रही थी। दक्षिण कोरिया ने इस बैठक की मेजबानी कर क्षेत्रीय अस्थिरता को कम करने और कूटनीतिक संवाद को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया।
- चीन-जापान संबंधों में नई दिशा – जापान ने यह संकेत दिया कि उसकी सुरक्षा नीतियाँ चीन के खिलाफ नहीं, बल्कि क्षेत्रीय शांति के लिए हैं।
- उत्तर कोरिया और ताइवान मुद्दा – कोरियाई प्रायद्वीप में उत्तर कोरिया के बढ़ते परमाणु परीक्षण और ताइवान को लेकर चीन की आक्रामकता के बीच यह बैठक महत्वपूर्ण रही।
- इंडो-पैसिफिक रणनीति
- क्वाड और SQUAD के संदर्भ में बैठक का विश्लेषण – अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया का क्वाड गठबंधन और फिलीपींस को जोड़कर बना नया SQUAD गठबंधन चीन को संतुलित करने के लिए कार्यरत हैं।
- दक्षिण कोरिया की स्वतंत्र इंडो-पैसिफिक रणनीति – दक्षिण कोरिया ने अपनी नई इंडो-पैसिफिक रणनीति में लोकतंत्र, मानवाधिकार और स्वतंत्रता की रक्षा पर बल दिया, लेकिन चीन को सीधे चुनौती देने से बचा।
- व्यापार सहयोग
- मुक्त व्यापार समझौता (FTA) को पुनर्जीवित करने की कोशिश – 2015 से लागू चीन-दक्षिण कोरिया FTA के तहत चीन दक्षिण कोरिया का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में सुधार – अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और सेमीकंडक्टर संकट के बीच तीनों देशों ने आपूर्ति श्रृंखला को स्थिर बनाए रखने पर चर्चा की।
2025 त्रिपक्षीय बैठक का वैश्विक प्रभाव
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर प्रभाव
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री स्थिरता – त्रिपक्षीय सहयोग से समुद्री जागरूकता, नौवहन की स्वतंत्रता और समुद्री डकैती विरोधी अभियानों में तालमेल बढ़ेगा।
- चीन का प्रभाव और जापान-दक्षिण कोरिया की भूमिका – दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती गतिविधियाँ क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर रही हैं, जिससे जापान और दक्षिण कोरिया अपने सुरक्षा हितों को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
- भारत पर संभावित प्रभाव
- भारत की तटस्थ कूटनीति – भारत जापान और दक्षिण कोरिया के साथ मजबूत द्विपक्षीय संबंध रखता है, लेकिन चीन के साथ उसका रिश्ता प्रतिस्पर्धा और सहयोग दोनों का मिश्रण है। भारत अमेरिका-जापान-भारत त्रिपक्षीय और रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय गठबंधन का हिस्सा है। इससे स्पष्ट है कि यह गठबंधन विरोधी नहीं, बल्कि संतुलन बनाने वाली रणनीतियाँ हैं।
- भारत के लिए रणनीतिक महत्व – भारत-प्रशांत में भारत का “स्वतंत्र और मुक्त समुद्री मार्गों” को बनाए रखने पर जोर है, जो इस शिखर सम्मेलन के समुद्री सुरक्षा एजेंडे से मेल खाता है।
- वैश्विक आपूर्ति
- वैश्विक GDP में योगदान – चीन, जापान और दक्षिण कोरिया मिलकर दुनिया की GDP का 25% हिस्सा बनाते हैं, जिससे इनका आर्थिक सहयोग वैश्विक स्तर पर असर डालता है।
- अमेरिका-चीन व्यापार तनाव का असर – वाशिंगटन द्वारा व्यापारिक साझेदारियों को पुनः आकार देने की रणनीति का इस शिखर सम्मेलन पर परोक्ष प्रभाव पड़ा।
तीनों देशों के त्रिपक्षीय सहयोग में बाधाएँ
- ऐतिहासिक विवाद
- जापान की द्वितीय विश्वयुद्ध की आक्रामकता को लेकर चीन और दक्षिण कोरिया में अब भी गहरी असंतोष की भावना बनी हुई है।
- कोरियाई “कम्फर्ट वुमन” विवाद अब भी एक प्रमुख कूटनीतिक मुद्दा बना हुआ है।
- जापानी पाठ्यपुस्तकों में युद्ध अपराधों की प्रस्तुति चीन और दक्षिण कोरिया के लिए चिंता का विषय है।
- चीन के “एंटी-जापान वॉर म्यूज़ियम” और दक्षिण कोरिया के “सेजोंग इंस्टिट्यूट” जैसी संस्थाएँ जापान की ऐतिहासिक नीतियों की आलोचना करती हैं।
- अमेरिका-चीन रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का दबाव
- दक्षिण कोरिया और जापान अमेरिका के करीबी सैन्य सहयोगी है। दोनों देशों में लगभग 80,000 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं, जिससे इनका सुरक्षा ढांचा पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर है।
- अमेरिका द्वारा दक्षिण कोरिया और जापान के साथ त्रिपक्षीय सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देने से चीन असहज महसूस करता है।
- चीन को लगता है कि अमेरिका एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा संतुलन को बदलने की कोशिश कर रहा है। इस कारण से, चीन जापान और दक्षिण कोरिया की अमेरिका पर निर्भरता को चुनौती देने की रणनीति अपनाता है।
- उत्तर कोरिया का सुरक्षा संकट
- उत्तर कोरिया की बढ़ती सैन्य ताकत और परमाणु-सक्षम मिसाइलों के भंडार में तेजी से वृद्धि ने दक्षिण कोरिया और जापान के लिए खतरा बढ़ा दिया है।
- दोनों देश अमेरिका के साथ मिलकर मिसाइल-रोधी सुरक्षा प्रणाली को मजबूत कर रहे हैं।
- चीन उत्तर कोरिया को राजनीतिक और आर्थिक समर्थन देता है और संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को पूरी तरह लागू करने से बचता है।
- अमेरिका और अन्य देशों को लगता है कि चीन गुप्त रूप से उत्तर कोरिया की सहायता कर रहा है।
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