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भारत में रोजगार: औपचारिक क्षेत्र में रोजगार सृजन की बढ़ती चुनौती

संदर्भ:

भारत में रोजगार: भारत, श्रम-प्रधान अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, औपचारिक क्षेत्र में रोजगार सृजन की बढ़ती चुनौती का सामना कर रहा है। कुशल अवसरों की कमी और अनौपचारिक क्षेत्र की बढ़त के कारण रोजगार असंतुलन बना हुआ है, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक विकास प्रभावित हो सकता है।

भारत में रोजगार के रुझान:

  1. पूंजीप्रधान उत्पादन प्रक्रिया: पारंपरिक श्रम-प्रधान उद्योगों सहित कई उत्पादन प्रक्रियाएँ अब अधिक पूंजी-प्रधान (Capital-Intensive) होती जा रही हैं। स्वचालन (Automation) और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के बढ़ते उपयोग से मानव श्रम की आवश्यकता और भी कम हो सकती है।
  2. अनौपचारिक और स्वरोजगार में वृद्धि: रोजगार में वृद्धि मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार और अनौपचारिक सेवाओं के क्षेत्र में हो रही है, जिससे काम की गुणवत्ता और स्थिरता प्रभावित हो रही है।
  3. नौकरी की कमी: 2017-18 से अब तक भारत की कार्यशील आयु वाली जनसंख्या में 9 करोड़ की वृद्धि हुई है, लेकिन औपचारिक क्षेत्र में केवल 6 करोड़ नई नौकरियाँ ही जुड़ी हैं। इस कारण हर साल औसतन 50 लाख नौकरियों की कमी बनी हुई है।

प्रौद्योगिकी का रोजगार पर प्रभाव:

  1. श्रम गहनता में गिरावट: बढ़ती पूंजी-प्रधानता  के कारण विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन की श्रम गहनता (Labour Intensity) लगातार घट रही है।
  2. कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का प्रभाव: पूंजी-प्रधान उत्पादन की प्रवृत्ति कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की प्रगति के साथ और तेज़ होने की संभावना है।
  3. पूंजी बनाम श्रम लागत: पूंजी की सापेक्ष लागत में गिरावट से पूंजी-प्रधान तकनीकों में निवेश को बढ़ावा मिलता है, भले ही इससे उत्पादकता में विशेष वृद्धि न हो।
  4. कौशल अंतर (Skill Gap): भारत की श्रम शक्ति का 10% से भी कम हिस्सा औपचारिक तकनीकी या व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त कर चुका है, जिससे उपलब्ध कौशल और बाज़ार की आवश्यकताओं के बीच असंतुलन बना हुआ है।

जीडीपी में क्षेत्रीय योगदान:

  1. सेवा क्षेत्र की बढ़ती हिस्सेदारी: सेवा क्षेत्र (Services Sector) का सकल मूल्य वर्धन (GVA) और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान सबसे अधिक बढ़ा है।
  2. निर्माण क्षेत्र की स्थिरता: विनिर्माण  क्षेत्र का योगदान स्थिर बना हुआ है।
  3. कृषि क्षेत्र में गिरावट: कृषि  का जीडीपी में हिस्सा धीरे-धीरे घटता जा रहा है।

सरकारी प्रयास: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना:

  1. उद्देश्य: उत्पादन क्षमता का विस्तार करना, विशेष रूप से उच्च-मूल्य वाले उत्पादों और कुशल श्रमिकों पर ध्यान केंद्रित करना।
  2. बजट आवंटन: PLI योजना के कुल बजट का 50% से अधिक हिस्सा इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी हार्डवेयर और ड्रोन के लिए निर्धारित किया गया है।
  3. रोजगार प्रभाव: अधिकांश नौकरियां खाद्य प्रसंस्करण  और दवा (Pharmaceuticals) क्षेत्र में बनी हैं, जिससे बजट आवंटन और रोजगार सृजन क्षमता के बीच असंगति स्पष्ट होती है।

रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन (ELI) योजना:

  1. उद्देश्य: औपचारिक क्षेत्र (Formal Sector) में नौकरियां बढ़ाने के लिए सरकार की नकद सब्सिडी के माध्यम से अप्रशिक्षित श्रमिकों को काम पर रखने की लागत को कम करना।
  2. अवधि: यह सब्सिडी आमतौर पर 2-3 वर्षों तक जारी रहती है, लेकिन इसका स्थायी रोजगार पर प्रभाव अभी आंका जाना बाकी है।
  3. चुनौतियां: योजना को श्रमिकों की सतत कौशल वृद्धि  को प्रोत्साहित करने के लिए बेहतर बनाना आवश्यक है।

सिफारिशें:

  1. उत्पादन और श्रम कौशल विकास रणनीतियों को आपस में जोड़ना ताकि समग्र रूप से रोजगार सृजन को बढ़ावा मिल सके।
  2. विभिन्न मंत्रालयों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करना ताकि कौशल विकास और रोजगार रणनीतियों का एकीकरण किया जा सके।
  3. ELI प्रोत्साहनों को स्तरानुसार संशोधित करना, जिससे प्रमाणित कौशल स्तर बढ़ने पर अधिक लाभ मिल सके।

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