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भारत-चीन राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ 

सामान्य अध्ययन पेपर II: भारत और उसके पड़ोसी, भारत से जुड़े और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौते 

चर्चा में क्यों? 

भारत-चीन राजनयिक संबंध: हाल ही में भारत और चीन के राजनयिक संबंधों के 75 वर्ष पूरे होने पर चीनी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने भारतीय नेतृत्व को बधाई संदेश भेजे। दोनों देशों ने आपसी सहयोग बढ़ाने और द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर व सकारात्मक दिशा में आगे ले जाने की प्रतिबद्धता जताई।

भारत-चीन राजनयिक संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

  • राजनयिक संबंधों की शुरुआत (1950): भारत ने 1950 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) को आधिकारिक रूप से मान्यता दी और 1 अप्रैल 1950 को दोनों देशों के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित हुए। इस कदम से यह संदेश गया कि भारत एशियाई एकता और पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को प्राथमिकता देता है।
  • पंचशील समझौता (1954): 1954 में दोनों देशों ने आपसी सहयोग और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए पंचशील सिद्धांतों को आधार बनाया। इन पांच सिद्धांतों में एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान, आपसी गैर-हस्तक्षेप, समानता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और पारस्परिक लाभकारी संबंध शामिल थे। भारत और चीन ने इन सिद्धांतों पर आधारित एक ऐतिहासिक समझौता किया, जिसने प्रारंभिक वर्षों में द्विपक्षीय संबंधों को सकारात्मक दिशा दी। 
  • 1950 का दशक: 1950 के दशक में भारत और चीन के संबंध सौहार्दपूर्ण थे। दोनों देशों ने औपनिवेशिक शोषण से मुक्त होकर अपने राष्ट्रीय विकास को प्राथमिकता दी। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री झोउ एनलाई के बीच कई द्विपक्षीय बैठकें हुईं, जिनमें व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सीमा विवादों पर चर्चा हुई। इस कालखंड में दोनों देशों के बीच “हिंदी-चीनी भाई-भाई” का नारा भी प्रचलित हुआ, जो आपसी मित्रता को दर्शाता था।
  • तिब्बत विवाद: 1959 में तिब्बत में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी और दलाई लामा भारत में शरण लेने आए। इस घटनाक्रम ने भारत-चीन संबंधों में पहली दरार पैदा की। चीन ने इसे अपने आंतरिक मामलों में भारत का हस्तक्षेप माना, जबकि भारत ने इसे मानवीय दृष्टिकोण से देखा। इस विवाद के बाद दोनों देशों के संबंधों में तनाव बढ़ने लगा, जिसने आगे चलकर 1962 के युद्ध की भूमिका बनाई।

भारत-चीन संबंधों की प्रमुख द्विपक्षीय घटनाएँ

  • 1962 का भारत-चीन युद्ध: 1962 में भारत-चीन युद्ध केवल सैन्य संघर्ष नहीं था, बल्कि इससे दोनों देशों के कूटनीतिक और राजनीतिक संबंधों पर गहरा असर पड़ा। यह युद्ध वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) की नींव बना, लेकिन सीमा विवाद पूरी तरह सुलझ नहीं पाया। इस संघर्ष के बाद भारत ने अपनी रक्षा नीति को पुनर्गठित किया और चीन के प्रति भारत की विदेश नीति में बदलाव आया।
  • 1914 में ब्रिटेन, तिब्बत और चीन के प्रतिनिधियों ने भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत की। इस संधि में मैकमोहन रेखा निर्धारित की गई। जिसे चीन ने मान्यता देने से इंकार कर दिया। यह विवाद आगे चलकर 1962 के युद्ध का एक प्रमुख कारण बना।
  • 1988 की चीन यात्रा: 1962 के युद्ध के बाद भारत और चीन के बीच संबंध ठंडे पड़ गए थे, लेकिन 1988 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चीन यात्रा ने एक नई शुरुआत की। यह 34 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली चीन यात्रा थी। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सीमा विवाद को बातचीत के जरिए हल करने की प्रतिबद्धता जताई और राजनयिक एवं आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए एक नई कार्ययोजना पर सहमति बनाई। 
  • सीमा शांति समझौते: 1993 में भारत और चीन ने “सीमा शांति और स्थिरता समझौता” (Agreement on Maintenance of Peace and Tranquility) किया, जिसमें पहली बार LAC को औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया। 1996 में एक और समझौता हुआ, जिसमें सीमा पर सैन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने और विवादित क्षेत्रों में संतुलन बनाए रखने के लिए दिशानिर्देश तय किए गए। 
  • विशेष प्रतिनिधि वार्ता की शुरुआत: 2003 में भारत और चीन ने सीमा विवाद के स्थायी समाधान के लिए “विशेष प्रतिनिधि तंत्र” (Special Representative Mechanism) की स्थापना की। इसके तहत दोनों देशों ने नियमित वार्ताएं शुरू कीं, जिससे सीमा विवाद से जुड़े संवेदनशील मुद्दों को कूटनीतिक तरीके से हल करने की कोशिश की गई। 

भारत-चीन सीमा विवाद से जुड़ी प्रमुख घटनाएँ 

भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) एक अनिर्धारित और विवादित सीमा है, जिसे लेकर दोनों देशों के बीच कई बार सैन्य टकराव हो चुके हैं। चीन अक्सर LAC पर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए घुसपैठ करता है, जबकि भारत ने हर बार अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा की है। 

  • नाथु ला संघर्ष: 1967 में नाथु ला दर्रे पर जब भारतीय सेना ने कंटीले तार बिछाने शुरू किए, तो चीन ने इसका विरोध किया और सैन्य झड़प शुरू हो गई। यह संघर्ष दो महीने तक चला, जिसमें भारतीय सेना ने प्रभावी रूप से जवाब देते हुए चीनी सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर किया। यह पहली बार था जब भारत ने चीन की आक्रामकता के खिलाफ निर्णायक सैन्य कार्रवाई की।
  • अरुणाचल प्रदेश पर आपत्ति: 1986 में भारत ने अरुणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया, जिसे चीन ने स्वीकार नहीं किया। इसके बाद 1987 में सीमा पर तनाव चरम पर पहुंच गया। चीन ने सैन्य दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना की तत्परता और कूटनीतिक प्रयासों ने इसे युद्ध में बदलने से रोक दिया।
  • डोकलाम संकट: 2017 में चीन ने भूटान के डोकलाम क्षेत्र में सड़क निर्माण शुरू किया, जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा था। भारतीय सेना ने तुरंत हस्तक्षेप किया और निर्माण कार्य को रोक दिया। यह विवाद करीब दो महीने तक चला और अंततः चीन को पीछे हटना पड़ा।
  • गलवान घाटी संघर्ष: 15-16 जून 2020 को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण करने का प्रयास किया, जिससे दोनों पक्षों के बीच हिंसक झड़प हुई। यह दशकों में भारत-चीन के बीच सबसे बड़ा सैन्य टकराव था। इसके बाद दोनों देशों के बीच कई दौर की बातचीत हुई और सितंबर 2022 में सैनिकों को विवादित क्षेत्र से पीछे हटने पर सहमति बनी।
  • तवांग संघर्ष: 9 दिसंबर 2022 को अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में चीनी सैनिकों ने भारतीय चौकी पर हमला करने का प्रयास किया। भारतीय सेना ने उन्हें रोकते हुए करारा जवाब दिया।

भारत-चीन संबंधों में नवीनतम घटनाक्रम

  • सीमा स्थिरता पर सहमति: 2025 में भारत और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर स्थिरता बनाए रखने और सीमा विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की प्रतिबद्धता दोहराई। देपसांग और डेमचोक क्षेत्र से 2024 के अंत में सैन्य वापसी पर एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ, जिससे दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के प्रयासों को बल मिला।
    • अक्टूबर 2024 में ब्रिक्स कज़ान शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई। यह पाँच वर्षों में उनकी पहली औपचारिक बैठक थी, जिससे संबंधों को पुनर्जीवित करने की मंशा स्पष्ट हुई। 
    • 23वीं विशेष प्रतिनिधियों की बैठक और उप मंत्री-विदेश सचिव स्तर की वार्ता 2025 में बीजिंग में आयोजित की गई, जहाँ सीमा स्थिरता और आपसी सहयोग पर चर्चा हुई।
  • सांस्कृतिक एवं शैक्षिक सहयोग: भारत और चीन ने 2025 में शैक्षिक आदान-प्रदान और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को पुनर्जीवित करने, विश्वविद्यालयों और सांस्कृतिक संस्थानों के बीच सहयोग बढ़ाने की पहल की।
    • भारत और चीन ने नदियों पर जल विज्ञान संबंधी आंकड़े साझा करने और 2025 की गर्मियों तक कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने पर सहमति व्यक्त की। 
    • भारत और चीन पाँच वर्षों के अंतराल के बाद सीधी उड़ान सेवाएँ फिर से शुरू करने पर सहमत हुए। 

भारत-चीन संबंध: आर्थिक, सांस्कृतिक और वैश्विक संदर्भ

  • आर्थिक और व्यापारिक संबंध
    • 1984 में भारत और चीन ने एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत परस्पर मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा दिया गया।
    • 1994 में दोनों देशों ने दोहरे कराधान से बचने (Double Taxation Avoidance Agreement – DTAA) के लिए एक समझौता किया। इस समझौते से व्यापारिक संगठनों और निवेशकों को कर से राहत मिली, जिससे सीधे विदेशी निवेश (FDI) और आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहन मिला।
    • भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों में उतार-चढ़ाव के बावजूद 2023-24 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 118.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
    • इसमें भारत, इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार उपकरण और सक्रिय फार्मास्युटिकल घटकों (API) का चीन से बड़े पैमाने पर आयात करता है, जबकि लौह अयस्क, कार्बनिक रसायन और अन्य कच्चे माल का निर्यात करता है। 
    • चीनी कंपनियों ने भारतीय स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण निवेश किया है। वर्ष 2020 में ही 18 भारतीय यूनिकॉर्न कंपनियों को 3.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का चीनी निवेश प्राप्त हुआ। 
  • सांस्कृतिक और जनस्तरीय संबंध:
    • भारत और चीन का सांस्कृतिक संबंध हजारों वर्षों पुराना है, जिसमें बौद्ध धर्म, रेशम मार्ग और योग जैसे महत्वपूर्ण उदाहरण शामिल हैं।
    • भारत से बौद्ध धर्म चीन तक पहुँचा और वहाँ से संपूर्ण पूर्वी एशिया में फैला। भारतीय बौद्ध भिक्षु कुमारजीव, बोधिधर्म और परमार्थ ने चीन में बौद्ध ग्रंथों का अनुवाद किया, जिससे बौद्ध शिक्षाओं को गहरी स्वीकृति मिली।
    • प्राचीन रेशम मार्ग न केवल व्यापार का प्रमुख मार्ग था, बल्कि विचारों, परंपराओं और कलाओं के आदान-प्रदान का भी केंद्र था। भारत से चीन को धर्म, दर्शन और चिकित्सा विज्ञान मिला, जबकि चीन से भारत में रेशम, कागज और मुद्रण तकनीक आई।
    • चीन में योग और आयुर्वेद तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। बीजिंग और शंघाई जैसे शहरों में हजारों योग केंद्र खुल चुके हैं और पारंपरिक चीनी चिकित्सा (TCM) के साथ भारतीय आयुर्वेद का संयोजन हो रहा है।
    • 2025 में, विश्वभारती विश्वविद्यालय टैगोर की चीन यात्रा के 100 वर्ष पूरे होने पर एक विशेष सेमिनार आयोजित करेगा, जिससे बौद्धिक और शैक्षिक संबंधों को बल मिलेगा। 
  • वैश्विक मंचों पर सहयोग
    • भारत और चीन ब्रिक्स, SCO, जी-20 और Asian Infrastructure Investment Bank (AIIB) जैसे बहुपक्षीय मंचों पर सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। 
    • 2024 में दोनों देशों ने वैश्विक दक्षिण (Global South) की एकता को समर्थन दिया और SCO के माध्यम से बहुध्रुवीयता को बढ़ावा दिया। 
    • चीन भारत की अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) पहल का समर्थन करता है, जिससे दोनों देशों के बीच नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग को बढ़ावा मिला है।
    • जलवायु परिवर्तन, आपदा राहत और वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में भी दोनों देश जी-20 और ब्रिक्स जैसे मंचों पर संयुक्त रूप से कार्य कर रहे हैं। 
    • AIIB और न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) में भारत-चीन का सहयोग उनके क्षेत्रीय नेतृत्व को दर्शाता है।

भारत-चीन संबंधों में चुनौतियाँ

  • सीमा विवाद: भारत और चीन के बीच 3,488 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव बना हुआ है। लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ और सैन्य झड़पें दोनों देशों के संबंधों में स्थायी अविश्वास बनाए रखती हैं। 2020 में गलवान घाटी संघर्ष इसका सबसे बड़ा उदाहरण था, जिसने भारत की सुरक्षा रणनीति को पुनः परिभाषित किया।
  • व्यापार असंतुलन: भारत और चीन के बीच 125 बिलियन डॉलर से अधिक का व्यापार हो रहा है, लेकिन व्यापार घाटा भारत के लिए एक बड़ी चिंता है। भारत का निर्यात मुख्यतः कच्चे माल और संसाधनों तक सीमित है। चीन में भारतीय IT और फार्मास्युटिकल उद्योगों के लिए बाजार पहुंच सीमित है, जिससे आर्थिक संतुलन बिगड़ रहा है।
  • जल विवाद: ब्रह्मपुत्र नदी का जल प्रवाह तिब्बत से भारत और बांग्लादेश तक जाता है। चीन द्वारा तिब्बत में बड़े पैमाने पर बांधों का निर्माण भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में जल संकट पैदा कर सकता है। सूचना साझा करने की कमी और चीन की एकतरफा जल नीति भारत के लिए एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है।
  • दक्षिण चीन सागर: चीन दक्षिण चीन सागर के 90% हिस्से पर दावा करता है, जो तेल और प्राकृतिक गैस के समृद्ध भंडार से भरा है। भारत, वियतनाम के साथ मिलकर इस क्षेत्र में तेल अन्वेषण करता है, जिसे चीन अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है। 
  • हिंद-प्रशांत सुरक्षा: चीन ताइवान को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है, जबकि भारत इस मुद्दे पर “एक-चीन नीति” का पालन करता है। लेकिन भारत और ताइवान के बीच बढ़ता व्यापार और प्रौद्योगिकी सहयोग चीन के लिए चिंता का विषय है।
  • बेल्ट एंड रोड पहल (BRI): चीन की Belt and Road Initiative (BRI) दक्षिण एशिया में भारत की रणनीतिक स्थिति को चुनौती देती है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), जो पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, भारत की संप्रभुता के लिए खतरा है। भारत ने BRI में शामिल होने से इनकार किया है और इसके विकल्प के रूप में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (IMEC) जैसी पहल को बढ़ावा दे रहा है।

UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न (2016): “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” का उल्लेख कभी-कभी समाचारों में किसके संदर्भ में किया जाता है: 

(a) अफ्रीकी संघ  

(b) ब्राज़ील  

(c) यूरोपीय संघ  

(d) चीन  

उत्तरः d 

प्रश्न (2018): चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को चीन की बड़ी ‘वन बेल्ट वन रोड’ पहल का एक प्रमुख हिस्सा माना जाता है। CPEC का संक्षिप्त विवरण दें और उन कारणों को गिनाएँ कि भारत ने खुद को इससे क्यों दूर रखा है। 

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