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ओटावा कन्वेंशन (Ottawa Convention)

संदर्भ:

ओटावा कन्वेंशन (Ottawa Convention): पोलैंड, फिनलैंड और बाल्टिक देशों सहित कई यूरोपीय राष्ट्रों ने बढ़ते रूसी सुरक्षा खतरों का हवाला देते हुए ओटावा कन्वेंशन से बाहर निकलने की योजना की घोषणा की है। यह कन्वेंशन भूमि खदानों (landmines) के उपयोग, भंडारण, उत्पादन और स्थानांतरण पर प्रतिबंध लगाता है।

ओटावा कन्वेंशन (Ottawa Convention):

  1. संधि का परिचय:
    • आधिकारिक नाम: Mine Ban Treaty
    • यह एक वैधानिक रूप से बाध्यकारी  अंतरराष्ट्रीय समझौता है।
    • उद्देश्य: मानवविरोधी बारूदी सुरंगों (Anti-personnel landmines) को समाप्त करना।
  2.  प्रमुख तिथियाँ:
    • अपनाया गया: दिसंबर 1997
    • प्रभावी हुआ: मार्च 1999
  3. सदस्य देश: कुल सदस्य: 164 देश (2024 तक)
  4. सदस्य नहीं हैं: भारत, अमेरिका, रूस, चीन, इज़राइल

भारत की स्थिति:

  • भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए
  • कारण: सुरक्षा चिंताएँ, जैसे –
    • सीमाएं असुरक्षित हैं
    • विद्रोह (insurgency) और आतंकवाद की चुनौतियाँ

ओटावा कन्वेंशन (Ottawa Convention) का उद्देश्य:

  1. बारूदी सुरंगों से होने वाली मानवीय पीड़ा समाप्त करना
  2. संघर्ष के बाद आम नागरिकों की मृत्यु को रोकना
  3. पीड़ितों का पुनर्वास और भूमि का सामान्य उपयोग में पुनर्स्थापन

ओटावा कन्वेंशन (Ottawa Convention) की प्रमुख विशेषताएं: 

  • संधि के तहत, हस्ताक्षरकर्ताओं को अनुसमर्थन के चार साल के भीतर सभी भंडारित एंटी-पर्सनल माइंस को नष्ट करने की बाध्यता है, हालांकि प्रशिक्षण उद्देश्यों के लिए सीमित संख्या में माइंस को रखा जा सकता है।
  • कन्वेंशन में सुरंगों के विस्फोट से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए प्रावधान शामिल किए गए हैं।

Ottawa Convention से बाहर निकलने के मुख्य कारण:

  1. रूस से सुरक्षा संबंधी चिंता:
    • पोलैंड, फिनलैंड और बाल्टिक देश (लातविया, लिथुआनिया, एस्टोनिया) को रूस से सैन्य खतरे की आशंका है।
    • उनका मानना है कि युद्ध की स्थिति में बारूदी सुरंगें एक अहम रक्षा हथियार हो सकती हैं।
    • विशेषकर यदि रूस हमला करता है, तो ये सुरंगें सीमाओं की रक्षा में मदद करेंगी।
  2. सैन्य संतुलन बनाए रखना:
    • ये देश मानते हैं कि जब कुछ देश अभी भी बारूदी सुरंगों का उपयोग और भंडारण कर रहे हैं, तब खुद पर प्रतिबंध लगाना सैन्य रूप से नुकसानदेह हो सकता है।
    • संधि में बने रहना उन्हें रणनीतिक रूप से कमजोर बना सकता है।
  3. यूक्रेन संघर्ष के और बढ़ने की आशंका:
    • यदि रूस-यूक्रेन युद्ध अस्थायी रूप से रुकता है, तो रूस उस समय का उपयोग पुनः सैन्य ताकत बढ़ाने के लिए कर सकता है।
    • ऐसे में पड़ोसी देशों पर हमला होने की आशंका को देखते हुए वे तैयारी करना चाहते हैं, जिसमें बारूदी सुरंगें शामिल हैं।

ओटावा कन्वेंशन संधि से बाहर निकलने के प्रभाव:

  1. वैश्विक नियमों का कमजोर होना: कई यूरोपीय देशों के बाहर निकलने से बारूदी सुरंगों के खिलाफ बनी अंतरराष्ट्रीय भावना कमजोर होती है।
  2. माइन क्लियरेंस में गिरावट
    • अमेरिका ने जो पहले $300 मिलियन/साल दिया करता था (40% वैश्विक सहायता), उसमें कटौती हो गई है।
    • इससे माइन हटाने के प्रयास बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। (International Campaign to Ban Landmines)
  3. नागरिकों को बढ़ता खतरा:
    • 80% से अधिक पीड़ित सिविलियन (नागरिक) होते हैं।
    • अगस्त 2024 तक यूक्रेन में 1,286 नागरिक हताहत हो चुके हैं।
    • यूक्रेन दुनिया का सबसे अधिक बारूदी सुरंग वाला देश बन गया है। (संयुक्त राष्ट्र)

निष्कर्ष: इन देशों का मानना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है, और मौजूदा वैश्विक हालात में बारूदी सुरंगों की रोकथाम की संधि से बाहर निकलना एक रणनीतिक जरूरत बन गई है।

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