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सामान्य अध्ययन पेपर II: सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप 

चर्चा में क्यों? 

वक्फ संशोधन विधेयक 2025 : हाल ही में लोकसभा और राज्य सभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 पारित किया गया, जिससे देश में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन में बड़े बदलाव होने वाले है। 

  • इस विधेयक को अब “यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट, एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट (UMEED) बिल” नाम दिया गया है, जो इसके व्यापक उद्देश्यों को दर्शाता है।
  • विधेयक में किए गए संशोधन संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट पर आधारित हैं, जिसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।
  • इसी के साथ मुस्लिम वक्फ (निरसन) विधेयक, 2024 भी स्वीकृत कर लिया गया, जिससे बाद मुसलमान वक्फ अधिनियम, 1923 को समाप्त कर दिया गया है। 

वक्फ की परिभाषा और इसका ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

  • वक्फ क्या है?
    • वक्फ (Waqf) एक इस्लामी अवधारणा है, जिसके अंतर्गत किसी संपत्ति को धर्मार्थ, धार्मिक या सामाजिक कल्याण के उद्देश्य से स्थायी रूप से समर्पित किया जाता है।
    • यह संपत्ति चल (movable) या अचल (immovable) हो सकती है और इसे वक्फ घोषित करने के बाद बेचा, स्थानांतरित या गिरवी नहीं रखा जा सकता।
    • वक्फ संपत्तियाँ आमतौर पर मस्जिदों, मदरसों, अनाथालयों, कब्रिस्तानों, अस्पतालों, और गरीबों के कल्याण के लिए समर्पित होती हैं।
    • भारत में वक्फ संपत्तियों का प्रशासन वर्तमान में वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत संचालित होता है। 
    • एक व्यक्ति वक्फ की घोषणा एक औपचारिक दस्तावेज़ (वक्फ डीड) के माध्यम से कर सकता है या यदि कोई संपत्ति वर्षों से धार्मिक या जनहित कार्यों के लिए उपयोग हो रही हो, तो उसे वक्फ माना जा सकता है।
    • गैर-मुस्लिम भी वक्फ संपत्ति बना सकते हैं, बशर्ते कि वह इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप हो और जनहितकारी उद्देश्यों की पूर्ति करे।
    • भारत में 8.72 लाख से अधिक वक्फ संपत्तियाँ हैं, जो 38 लाख एकड़ भूमि पर फैली हुई हैं।
    • देश में वक्फ संपत्तियों का सबसे बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश (27%) में स्थित है, इसके बाद पश्चिम बंगाल (9%) और पंजाब (9%) में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है।
  • वक्फ प्रणाली का ऐतिहासिक विकास
    • प्रारंभिक काल: भारत में वक्फ का प्रचलन मुगल काल से पहले का है। दिल्ली सल्तनत और मुगल शासकों ने बड़े पैमाने पर धार्मिक संस्थानों और समाज कल्याण के लिए संपत्तियाँ वक्फ की थीं। मुगलों के शासनकाल में कई प्रसिद्ध मस्जिदें, दरगाहें, और मदरसे वक्फ संपत्तियों के अंतर्गत आए।
    • औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश शासन के दौरान वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और प्रबंधन को लेकर कई समस्याएँ उत्पन्न हुईं, जिससे कानूनी ढांचे की आवश्यकता पड़ी।
      • 1913 में पहला प्रमुख कानून मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम, 1913 लागू किया गया।
      • 1923 में मुसलमान वक्फ अधिनियम, 1923 आया, जिसने वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रशासन और पारदर्शिता पर जोर दिया।
      • 1930 में मुसलमान वक्फ विधिमान्य अधिनियम, 1930 लाया गया, जिससे पारिवारिक वक्फ की मान्यता को कानूनी वैधता मिली।
  • स्वतंत्र भारत
    • स्वतंत्रता के बाद पहली बार केंद्र सरकार ने वक्फ संपत्तियों को व्यवस्थित रूप से प्रबंधित करने के लिए 1954 में वक्फ अधिनियम पारित किया।
      • इस अधिनियम के तहत राज्य वक्फ बोर्डों (State Waqf Boards – SWBs) की स्थापना की गई, जिनका कार्य वक्फ संपत्तियों का संरक्षण और प्रबंधन करना था।
    • 1964 में केंद्रीय वक्फ परिषद (Central Waqf Council – CWC) का गठन किया गया, जो देशभर में वक्फ संपत्तियों की निगरानी करता है।
    • 1954 के अधिनियम को निरस्त कर एक नया और अधिक व्यापक वक्फ अधिनियम 1995 में लाया गया।
      • इस कानून में वक्फ बोर्डों की शक्तियाँ बढ़ाई गईं, वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए कड़े प्रावधान किए गए।
      • इसमें वक्फ ट्रिब्यूनल की स्थापना की गई, जो वक्फ से जुड़े विवादों का निपटारा करता है।
      • इस अधिनियम ने स्पष्ट रूप से वक्फ संपत्तियों की बिक्री, हस्तांतरण, गिरवी या उपहार देने पर प्रतिबंध लगा दिया।
    • इसके बाद वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2013 लाया गया। 
      • इस संशोधन के तहत तीन सदस्यीय वक्फ ट्रिब्यूनल की स्थापना अनिवार्य की गई।
      • राज्य वक्फ बोर्डों में दो महिला सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया।
      • वक्फ संपत्तियों की लीज अवधि 3 वर्ष से बढ़ाकर 30 वर्ष कर दी गई, ताकि उनका बेहतर उपयोग सुनिश्चित हो सके।
      • वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण को रोकने के लिए सख्त प्रावधान किए गए और इसमें दो वर्ष तक की जेल की सजा का प्रावधान जोड़ा गया।
  • वर्तमान में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 पारित किया गया है। इसका उद्देश्य वक्फ प्रशासन में पारदर्शिता लाना, मुकदमेबाजी को कम करना और संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन को सुनिश्चित करना है।

वक्फ अधिनियम संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी?

  • रिकॉर्ड प्रबंधन की समस्याएं: वक्फ संपत्तियों के स्वामित्व से जुड़े रिकॉर्ड सही ढंग से डिजिटाइज़ नहीं किए गए हैं, जिससे संपत्तियों के दुरुपयोग और अवैध अतिक्रमण को बढ़ावा मिलता है।
  • लेखा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता: कई राज्यों में वक्फ बोर्डों द्वारा संपत्तियों का सही ऑडिट नहीं किया जाता, जिससे वित्तीय अनियमितताओं की गुंजाइश बनी रहती है। हाल ही में 515 से अधिक वक्फ संपत्तियों में गड़बड़ी पाई गई है।
  • अवैध कब्जे: कई राज्यों में वक्फ संपत्तियों पर अवैध अतिक्रमण की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे समुदाय को इसका सही लाभ नहीं मिल पा रहा है।
  • अवैध बिक्री और हस्तांतरण: मौजूदा कानूनों में वक्फ संपत्तियों की बिक्री, उपहार या गिरवी रखने पर प्रतिबंध है, लेकिन फिर भी कई संपत्तियों का हस्तांतरण अवैध रूप से किया गया है। दिल्ली में 123 वक्फ संपत्तियों को गलत तरीके से स्थानांतरित करने के मामले की हाल ही में जांच की गई।
  • कानूनों का दुरुपयोग रोकना: कुछ मामलों में संपत्तियों को वक्फ घोषित कर दिया जाता है, जिससे विवाद और कानूनी लड़ाइयां बढ़ती हैं। वक्फ संपत्तियों से जुड़े मामलों के कारण कई राज्यों में कानूनी और सामाजिक तनाव पैदा हो चुका है, जिसे नियंत्रित करना आवश्यक है।
  • वक्फ ट्रिब्यूनल की शक्ति बढ़ाना: वक्फ ट्रिब्यूनल को अधिक स्वायत्तता देने और उसमें न्यायिक एवं धार्मिक विशेषज्ञों की नियुक्ति से निर्णय अधिक निष्पक्ष और प्रभावी होंगे। 
  • न्यायिक प्रक्रिया का सरलीकरण: मुकदमों की संख्या कम करने के लिए वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution – ADR) को अपनाने की आवश्यकता है।

वक्फ संशोधन विधेयक 2025 के प्रमुख प्रावधान

  1. “उपयोग द्वारा वक्फ” (Waqf by User) की सुरक्षा और शर्तें
    • परंपरागत रूप से उपयोग में आई संपत्तियों की सुरक्षा: नए प्रावधान के तहत, यदि कोई संपत्ति ऐतिहासिक रूप से धार्मिक या सामुदायिक उपयोग में रही है, तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में संरक्षित किया जाएगा।
    • विवादित संपत्तियों पर विशेष नियम: यदि किसी संपत्ति पर विवाद है, तो उसे स्वचालित रूप से वक्फ घोषित नहीं किया जाएगा। अब उसके स्वामित्व और उपयोग का निर्णय कानूनी प्रक्रिया से किया जाएगा। यानी जो मस्जिदें लंबे समय से धार्मिक गतिविधियों के लिए उपयोग में रही हैं, लेकिन उनका आधिकारिक दस्तावेज (वक्फनामा) नहीं है, उन्हें अब कानूनी जांच के बाद ही वक्फ घोषित किया जाएगा।
  2. वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक सुधार
    • पारदर्शिता और विशेषज्ञता बढ़ाने की पहल: अब केंद्र और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल किया जा सकेगा, ताकि प्रशासनिक प्रक्रियाओं में निष्पक्षता और व्यावसायिकता आए। 
      • संशोधित विधेयक के तहत, केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना में संसद सदस्यों, पूर्व न्यायाधीशों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए मुस्लिम होने की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है, जिससे इसमें अधिक समावेशिता लाई गई है।
      • संशोधित विधेयक में उच्च न्यायालय में अपील का प्रावधान जोड़ा गया है, जिसके तहत 90 दिनों के भीतर न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती दी जा सकेगी, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में संतुलन बना रहेगा।
    • संख्या और प्रतिनिधित्व: केंद्रीय वक्फ परिषद (Central Waqf Council) में अब 22 में से कम से कम 2 गैर-मुस्लिम सदस्य नियुक्त किए जा सकते हैं।
      • राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया है कि वे विभिन्न समूहों का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रत्येक वर्ग से एक व्यक्ति को नामित कर सकें।
      • वक्फ बोर्ड शिया, सुन्नी और पिछड़े मुस्लिम वर्गों से कम से कम एक-एक सदस्य शामिल किया जाएगा। 
      • साथ ही, दो मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी अनिवार्य की गई है, जिससे महिलाओं की भूमिका को सशक्त बनाया जा सके।
    • पहले, वक्फ बोर्डों को गैर-दस्तावेजी वक्फ संपत्तियों की पहचान करने का अधिकार था, लेकिन अब यह अधिकार (धारा 40 – Section 40) हटा दिया गया है।
  3. डिजिटल पंजीकरण और संपत्तियों की निगरानी
    • केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल: सभी वक्फ संपत्तियों का डिजिटल पंजीकरण अब एक केंद्रीय पोर्टल के माध्यम से अनिवार्य किया गया है।
      • पहले वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण सर्वेक्षण आयुक्त (Survey Commissioner) द्वारा किया जाता था, लेकिन अब जिला कलेक्टर या अन्य वरिष्ठ अधिकारी इस प्रक्रिया को संचालित करेंगे। 
      • इसके अलावा, यदि किसी सरकारी भूमि को वक्फ घोषित किया गया है, तो अब इसे वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। विवादित मामलों में, क्षेत्रीय कलेक्टर को स्वामित्व निर्धारित करने की शक्ति दी गई है।
    • समय सीमा: वक्फ बोर्डों को 6 महीने के भीतर सभी संपत्तियों का पंजीकरण कराना होगा, जिसे वक्फ ट्रिब्यूनल के निर्देश पर बढ़ाया भी जा सकता है। इससे संपत्तियों के स्वामित्व, उपयोग और वित्तीय लेनदेन का रिकॉर्ड पारदर्शी रहेगा और अवैध कब्जों को रोकने में सहायता मिलेगी।
  4. वक्फ ट्रिब्यूनल की संरचना में बदलाव
    • पुरानी दो-सदस्यीय संरचना समाप्त: पहले वक्फ ट्रिब्यूनल में केवल दो सदस्य होते थे, जो कई मामलों में निर्णय लेने में सक्षम नहीं होते थे।
    • नई संरचना: अब प्रत्येक वक्फ ट्रिब्यूनल में एक जिला न्यायाधीश, एक संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी, और एक मुस्लिम कानून विशेषज्ञ होंगे।
      • विधेयक के तहत वक्फ न्यायाधिकरणों से मुस्लिम कानून विशेषज्ञ (Expert in Muslim Law) को हटाने का प्रावधान किया गया है। 
      • अब इन न्यायाधिकरणों में एक जिला न्यायालय के न्यायाधीश (अध्यक्ष), संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी और अन्य प्रशासनिक सदस्य होंगे।
  5. “सीमा अधिनियम” (Limitation Act) का वक्फ संपत्तियों पर प्रभाव
    • धारा 107 (Section 107) हटाई गई: अब वक्फ संपत्तियों पर सीमा अधिनियम, 1963 (Limitation Act, 1963) लागू होगा।
    • यदि कोई व्यक्ति 12 वर्षों तक लगातार वक्फ संपत्ति पर अवैध कब्जा बनाए रखता है, तो वह “प्रतिकूल कब्जे” (Adverse Possession) के आधार पर संपत्ति का कानूनी मालिक बन सकता है।
      • वक्फ संस्थानों की वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए ₹1 लाख से अधिक की वार्षिक आय वाले वक्फ संस्थानों का ऑडिट राज्य सरकार द्वारा नियुक्त ऑडिटरों के माध्यम से किया जाएगा। 

वक्फ संशोधन विधेयक 2025 के लाभ

  • रिकॉर्ड की पारदर्शिता: डिजिटल पंजीकरण और ऑडिटिंग प्रक्रिया को मजबूत कर पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है। इससे संपत्तियों के स्वामित्व, उपयोग और वित्तीय लेनदेन का रिकॉर्ड सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होगा, जिससे भ्रष्टाचार और हेरफेर की संभावना घटेगी।
  • अभिलेखों का सुव्यवस्थित सर्वेक्षण: वर्षों से लंबित वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण को तेज़ी से पूरा करने के लिए डिजिटल मैपिंग और केंद्रीकृत डेटा प्रणाली लागू की गई है। इससे गलत स्वामित्व दावों और अनधिकृत हस्तांतरण पर रोक लगेगी।
    • विधेयक सरकारी भूमि पर वक्फ दावों को नियंत्रित करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है, जिससे भूमि विवादों को कम किया जा सकेगा और सरकारी संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
  • महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा: विधेयक में मुस्लिम महिलाओं, विशेषकर विधवाओं और तलाकशुदा महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने के लिए कानूनी सहायता केंद्रों और वित्तीय स्वायत्तता योजनाओं का प्रावधान किया गया है। इससे महिलाओं को वक्फ संपत्तियों से मिलने वाले लाभों तक पहुंच सुनिश्चित होगी।
  • वक्फ बोर्डों पर नियंत्रण: अब वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को केवल अपनी जांच के आधार पर वक्फ संपत्ति घोषित नहीं कर सकते। प्रत्येक संपत्ति के दावे की निष्पक्ष कानूनी जांच की जाएगी, जिससे अनियंत्रित शक्तियों पर रोक लगेगी।
  • लेखा-परीक्षण प्रणाली में सुधार: वक्फ संपत्तियों के वित्तीय लेन-देन को नियमित करने और आय-व्यय की पारदर्शी रिपोर्टिंग के लिए वार्षिक ऑडिट अनिवार्य किया गया है, जिससे धन का दुरुपयोग रोका जा सकेगा।
  • हितधारकों का बेहतर प्रतिनिधित्व: केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में सभी संबंधित पक्षों को शामिल किया गया है, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया अधिक समावेशी और प्रभावी बनेगी।
  • राजस्व में वृद्धि: वक्फ भूमि के अनधिकृत उपयोग और अतिक्रमण पर रोक लगाने से बोर्डों की आय में वृद्धि होगी, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबों के लिए आवास योजनाओं में अधिक निवेश संभव होगा।

वक्फ संशोधन विधेयक 2025  से जुड़ी प्रमुख चिंताएँ

  • वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति: संशोधित विधेयक के तहत राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की अनिवार्यता जोड़ी गई है, जिससे समुदाय में असंतोष व्याप्त हो सकता है। जबकि हिंदू और सिख धार्मिक न्यासों में आमतौर पर उन्हीं धर्मों के अनुयायी शामिल होते हैं, वक्फ प्रबंधन में इस नए बदलाव को मुस्लिम समुदाय की संस्थागत स्वायत्तता में हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा है।
  • मुस्लिम कानून विशेषज्ञों की अनुपस्थिति: विधेयक के अनुसार, अब वक्फ न्यायाधिकरणों में मुस्लिम कानून के विशेषज्ञों को शामिल नहीं किया जाएगा, जिससे वक्फ से संबंधित मामलों की उचित व्याख्या और निष्पक्ष निर्णयों पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • वक्फ बनाने की सख्त शर्तें: संशोधित कानून में केवल उन्हीं मुसलमानों को वक्फ संपत्ति समर्पित करने की अनुमति दी गई है, जो कम से कम पाँच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं। इस प्रावधान का औचित्य स्पष्ट नहीं किया गया है और यह हाल ही में धर्म अपनाने वालों के लिए भेदभावपूर्ण हो सकता है।
  • संपत्तियों के निर्धारण की शक्ति: संशोधन के तहत, अब वक्फ न्यायाधिकरण के बजाय जिला कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया है कि वह विवादित वक्फ संपत्तियों पर निर्णय लें। इस प्रक्रिया में, जब तक निर्णय नहीं हो जाता, संपत्ति को सरकारी भूमि माना जाएगा। इससे मुस्लिम समुदाय की आशंका है कि इसका उपयोग वक्फ संपत्तियों को कमजोर करने और सरकारी कब्जे को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है।

UPSC पिछले वर्ष का प्रश्न (PYQ)

प्रश्न (2018). धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी मॉडल से कैसे भिन्न है? चर्चा कीजिये।

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