सामान्य अध्ययन पेपर III: संरक्षण, जैव प्रौद्योगिकी |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कई वर्षों पहले विलुप्त हुई डायर वुल्फ नामक प्राचीन भेड़िये की प्रजाति को आनुवंशिक तकनीक से दोबारा जीवित करने में सफलता प्राप्त की है, जिससे जैव विविधता संरक्षण और भविष्य में लुप्त प्रजातियों को बचाने की संभावनाएं बढ़ गई हैं।
विलुप्त डायर वुल्फ़ के पुनर्जीवन प्रयास के मुख्य बिंदु
- कोलोसल बायोसाइंसेज द्वारा हाल ही में किया गया एक अभूतपूर्व वैज्ञानिक प्रयोग अब विलुप्त प्रजातियों के पुनर्जन्म का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
- डायर वुल्फ, जो लगभग 10,000 से 13,000 वर्ष पूर्व पृथ्वी से विलुप्त हो गया था, उसे अब क्लोनिंग और जीन एडिटिंग की मदद से दोबारा पुनर्जीवित किया गया है।
- यह परियोजना पहले सफल डी-एक्सटिंक्शन का परिणाम है, जिसमें एक विलुप्त प्रजाति को वैज्ञानिक रूप से फिर से जीवित किया गया है।
- वैज्ञानिकों ने इनके पुराने जीवाश्मों से प्राप्त 13,000 साल पुराने दांत और 72,000 साल पुरानी खोपड़ी का अध्ययन कर इनके जीनोमिक विशेषताओं का विश्लेषण किया।
- इस परियोजना में वैज्ञानिकों ने पारंपरिक क्लोनिंग की बजाय एक कम आक्रामक विधि अपनाई गई।
- विधि: इसके अंतर्गत, उन्होंने ग्रे वुल्फ, जो डायर वुल्फ का सबसे नज़दीकी जीवित रिश्तेदार है, से एंडोथेलियल प्रोजेनिटर कोशिकाएं (EPC) प्राप्त कीं गई।
- इन कोशिकाओं को CRISPR तकनीक द्वारा 20 से अधिक स्थानों पर आनुवंशिक रूप से संशोधित किया गया ताकि वे डायर वुल्फ के डीएनए से मेल खा सकें।
- बाद में, संशोधित आनुवंशिक कोशिकाओं को एक स्थानीय भेड़िए की अंडाणु कोशिका में प्रत्यारोपित किया गया और फिर उसे सरोगेट माँ के रूप में इस्तेमाल किया गया।
- 62 दिनों के पश्चात, तीन डायर वुल्फ शावकों का जन्म हुआ। ये शावक सफेद एवं लंबे बालों वाले हैं, जिनके मजबूत मांसल जबड़े और वर्तमान में 80 पाउंड वजन है, जो वयस्क होने पर 140 पाउंड तक पहुंच सकता है।
क्लोनिंग
जीन एडिटिंग
विलुप्ति-उन्मूलन (De-extinction)
|
डायर वुल्फ का परिचय
- डायर वुल्फ, जिसे हिंदी में भयानक भेड़िया कहा जाता है, एक विशाल और अब विलुप्त हो चुका मांसाहारी जीव था, जो हज़ारों वर्षों पूर्व उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के विस्तृत क्षेत्रों में पाया जाता था।
- डायर वुल्फ का वैज्ञानिक नाम है Aenocyon dirus, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है – भयानक कुत्ते का वंशज।
- यह भेड़िया आज के साधारण ग्रे वुल्फ (gray wolf) से न सिर्फ आकार में बड़ा था, बल्कि इसकी बनावट और शिकार करने की शैली भी कहीं अधिक शक्तिशाली और आक्रामक थी।
- भयानक भेड़िया का अस्तित्व मुख्यतः प्लीस्टोसीन युग (लगभग 1.25 लाख वर्ष पूर्व से 10,000 वर्ष पूर्व तक) में था।
- डायर वुल्फ सामान्यतः बड़े शाकाहारी जीवों का शिकार किया करते थे, जैसे कि विशाल बाइसन, घोड़े, और ऊँट।
-
वर्गीकरण
- साम्राज्य (Domain): यूकैरियोटा (Eukaryota) – वे सभी जीव जिनकी कोशिकाओं में नाभिक (nucleus) होता है।
- जगत (Kingdom): एनिमेलिया (Animalia) – सभी पशु वर्ग के जीव।
- संघ (Phylum): कॉर्डाटा (Chordata) – जिन जीवों की पीठ की हड्डी होती है।
- वर्ग (Class): मैमेलिया (Mammalia) – स्तनधारी।
- गण (Order): कार्निवोरा (Carnivora) – मांसाहारी प्राणी।
-
भौगोलिक विस्तार
- डायर वुल्फ मुख्यतः उत्तरी अमेरिका के वन आच्छादित क्षेत्रों में पाए जाते थे।
- ये दक्षिण अमेरिका के शुष्क सवाना जैसे क्षेत्रों में भी निवास करते थे।
- वह मुख्यत: घास के मैदानों और कम घने जंगलों में निवास किया करते थे।
- यह हिमयुग के दौरान लौरेंटाइड और कॉर्डिलेरन हिमखंडों के पास के ठंडे क्षेत्रों में बहुत कम मात्रा में पाए गए थे।
डायर वुल्फ की खोज और नामकरण का इतिहास
- डायर वुल्फ के पहले जीवाश्म 1850 के दशक में अमेरिका में खोजे गए थे। हालांकि उस समय यह स्पष्ट नहीं था कि वे किसी नई या अलग प्रजाति से संबंधित हैं।
- 1854 में इंडियाना राज्य के पास ओहियो नदी के किनारे एक जबड़े की हड्डी मिली, जिसे बाद में अमेरिकी जीवाश्म विज्ञानी जोसेफ लिडी ने पहचानकर उसे भेड़िये की विलुप्त प्रजाति बताया।
- प्रारंभ में इस प्रजाति को “Canis primaevus” नाम दिया गया, पर बाद में इसे बदलकर “Canis indianensis” और फिर अंततः 1858 में “Canis dirus” नाम दिया गया।
- हालांकि, 20वीं सदी की शुरुआत में जब रैंचो ला ब्रेआ में बड़े पैमाने पर डायर वुल्फ के जीवाश्म मिले, तब वैज्ञानिक समुदाय ने इस प्रजाति की विशेषताओं को बेहतर ढंग से समझा और इसे स्वतंत्र वंश “Aenocyon” के अंतर्गत रखा गया।
- कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि यह यूरेशिया से अमेरिका में आए कैनिस (Canis) वंश के भेड़ियों से विकसित हुआ।
- वहीं कुछ वैज्ञानिक यह मानते है कि यह एक प्राचीन अमेरिकी वंश से उत्पन्न हुआ था, जो कैनिस वंश से पूरी तरह अलग था।
डायर वुल्फ की प्रमुख विशेषताएँ
- शारीरिक बनावट: भयानक भेड़िया (Aenocyon dirus) एक अत्यंत सशक्त और विशालकाय शिकारी था, जो अपने समय के किसी भी अन्य भेड़िये या कुत्तेनुमा प्राणी से भौतिक रूप में कहीं अधिक उन्नत था।
- इसकी औसत लंबाई लगभग 1.8 मीटर और कंधे तक ऊँचाई 97 सेंटीमीटर तक पहुंचती थी। उसका शरीर भारी-भरकम और पेशीय था।
- इसके सिर की बनावट भिन्न थी। इनकी खोपड़ी चौड़ी, जबड़े मज़बूत और दांत गहरे और मोटे हुआ करते थे।
- इसकी खोपड़ी पर बना सैजिटल क्रेस्ट (पृष्ठीय शिखा) काफी विकसित था, जो जबड़े की मांसपेशियों को सहारा देता था।
- भयानक भेड़िये के पैर अपेक्षाकृत छोटे थे।
- इसके दाँतों के पिछली ओर अतिरिक्त छोटे नुकीले भाग हुआ करते थे। जिनमें विशेष प्रकार की कतरने वाली धारियाँ भी पाई जाती थी।
- बैकुलम की बनावट: 2024 के एक नवीनतम अध्ययन के अनुसार भयानक भेड़िए का बैकुलम (लिंग हड्डी) न केवल लंबाई में अधिक था बल्कि अन्य कैनिड्स की तुलना में इसकी संरचना विशिष्ट थी।
- इससे यह संकेत मिलता है कि संभवतः ये एकांगी (monogamous) नहीं थे।
- शिकार शैली: भयानक भेड़िया घास के मैदानों, मैदानी इलाकों और कुछ जंगलों में सक्रिय रहता था।
- यह मुख्यतः समूह में शिकार करता था।
- उनके प्रमुख शिकारों में विलुप्त ऊँट (Camelops), बाइसन (Bison antiquus), घोड़े (Equus occidentalis), और विशाल ग्राउंड स्लॉथ जैसे भारी-भरकम शाकाहारी जानवर शामिल थे।
इसकी ये सभी विशेषताएँ इसे प्लाइस्टोसीन युग के सबसे विकसित और खतरनाक शिकारी प्राणियों में से एक बनाती हैं। यह एक ऐसा जीव था जो शारीरिक रूप से शक्तिशाली होने के साथ साथ सामाजिक संरचना और प्रजनन व्यवहार में भी उन्नत था।
डायर वुल्फ के विलुप्त होने के मुख्य कारण
- चतुर्थक विलुप्तीकरण: भयानक भेड़िया (Aenocyon dirus) का अस्तित्व प्लाइस्टोसीन युग के अंतिम चरणों तक रहा। यह प्रजाति लगभग 12,700 वर्ष पहले के आसपास चतुर्थक विलुप्तीकरण घटना के दौरान विलुप्त हो गई। यह वह समय था जब पृथ्वी पर अनेक बड़े आकार के स्तनधारी, जिन्हें मेगाफौना कहा जाता है, तेजी से समाप्त हो रहे थे।
- भोजन संकट: भयानक भेड़िये का आहार मुख्यतः बड़े शरीर वाले शाकाहारी जीवों पर आधारित था। जब जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण ये शिकार कम होते गए, तो भेड़िये भी संकट में आ गए। वह छोटे जानवरों का पीछा करने में न तो दक्ष थे, न ही अनुकूल। इस भोजन संकट ने भयानक भेड़िये के अस्तित्व को प्रत्यक्ष रूप से चुनौती दी और धीरे-धीरे वे विलुप्त होते गए।
- संकरण की असफलता: अन्य कैनिड्स जैसे ग्रे भेड़िया और कोयोट मानव-परिवेश के साथ सह-अस्तित्व की क्षमता रखते थे और संकरण (hybridization) के ज़रिए नए लक्षणों को अपनाने में सफल रहे। लेकिन भयानक भेड़िये का आनुवंशिक पृथक्करण इतना स्पष्ट था कि वह न तो अन्य प्रजातियों से मिश्रण कर सका और न ही नई परिस्थितियों के अनुकूल लक्षण विकसित कर सका।
- आनुवंशिक संकट: 2023 के एक शोध ने भयानक भेड़ियों की हड्डियों में ओस्टियोचोन्ड्रोसिस डिसेकंस जैसी बीमारी के संकेत पाए। इससे यह संकेत मिलता है कि विलुप्त होने के समय इनकी जनसंख्या बहुत सीमित थी। इससे आनुवंशिक विविधता की कमी, रोगों की संभावना और संतानोत्पत्ति में गिरावट जैसी समस्याओं के कारण यह प्रजाति धीरे धीरे विलुप्त हो गई।
UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs) प्रश्न (2019). निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 (b) केवल 2 (c) केवल 1 और 3 (d) 1, 2 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न (2012). निम्नलिखित में से कौन-सा जानवरों का समूह संकटापन्न प्रजातियों की श्रेणी में आता है? (a) ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, मस्क हिरन, लाल पांडा और एशियाई जंगली गधा (b) कश्मीर बारहसिंगा, चीतल, नीला सांड और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (c) हिम तेंदुआ, दलदल हिरण, रीसस बंदर और सारस (क्रेन) (d) शेर-पूंछ वाले मकाक, नीला सांड, हनुमान लंगूर और चीतल उत्तर: (a) |
Explore our Books: https://apnipathshala.com/product-category/books/
Explore Our test Series: https://tests.apnipathshala.com/