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भारत में संसदीय निगरानी (Parliamentary Oversight in India)

Parliamentary Oversight in India

संदर्भ:

भारत ने कार्यपालिका की दैनिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए संसदीय प्रणाली को अपनाया है, लेकिन हाल के वर्षों में संसद की निगरानी भूमिका कमजोर होती दिखाई दे रही है।

  • लगातार होने वाले व्यवधान, संसदीय समितियों का समुचित उपयोग न होना, और विधेयकों की बाद में समीक्षा (Post-Legislative Review) का अभाव—इन सभी ने संसद की जनता के हितों की संरक्षक की भूमिका को धीरे-धीरे कमज़ोर कर दिया है।

संसदीय निगरानी की प्रमुख व्यवस्थाएँ (Key Mechanisms of Parliamentary Oversight):

  1. संसदीय निगरानी से जुड़े संवैधानिक प्रावधान:
  • अनुच्छेद 107 – विधायी प्रक्रिया की परिभाषा, जैसे विधेयकों का प्रस्ताव और पारित होना।
  • अनुच्छेद 108 – दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की व्यवस्था, जब विधायी गतिरोध उत्पन्न हो।
  • अनुच्छेद 111 – राष्ट्रपति को विधेयकों को स्वीकृति देने या पुनर्विचार हेतु लौटाने का अधिकार।
  1. प्रश्नकाल और शून्यकाल:
  • प्रश्नकाल – सांसदों को मंत्रियों से सीधे सवाल पूछने का अवसर मिलता है।
  • शून्यकाल – बिना पूर्व सूचना के महत्वपूर्ण और तात्कालिक मुद्दे उठाए जाते हैं।
  1. विधायी समीक्षा के लिए समिति प्रणाली:
  • स्थायी समितियाँ (Standing Committees) – विधेयकों की गहन समीक्षा करती हैं।
  • लोक लेखा समिति (PAC) – सरकारी खर्च और कैग रिपोर्ट की जांच करती है।
  • अनुमान समिति (Estimates Committee) – बजट आवंटन और योजनाओं की दक्षता की समीक्षा करती है।
  1. बजटीय निगरानी:
  • अनुच्छेद 112 – वार्षिक वित्तीय विवरण (Union Budget) प्रस्तुत करने की अनिवार्यता।
  • अनुच्छेद 113 – सरकारी व्यय के लिए संसद की स्वीकृति आवश्यक।
  • अनुच्छेद 117 – मनी बिल केवल लोकसभा में और राष्ट्रपति की सिफारिश पर प्रस्तुत किया जा सकता है।

संसदीय निगरानी को कमजोर करने वाली चुनौतियाँ:

  • प्रश्नकाल का व्यवधान: 17वीं लोकसभा (2019–24) में केवल 60% प्रश्नकाल चला; राज्यसभा में यह आंकड़ा 52% रहा।
    बार-बार स्थगन और विरोध के कारण मंत्री जवाबदेह नहीं बन पाते।
  • समितियों का अपर्याप्त उपयोग: स्थायी समितियाँ विस्तृत रिपोर्ट बनाती हैं, लेकिन इन्हें सदन में शायद ही कभी चर्चा के लिए लाया जाता है।

हर वर्ष समिति सदस्यों का बदलाव विशेषज्ञता की निरंतरता को प्रभावित करता है।

  • विधेयकों की पश्चकार्यवाही समीक्षा की कमी:
    कानून पारित होने के बाद उसके कार्यान्वयन या प्रभाव की समीक्षा की कोई स्पष्ट प्रक्रिया नहीं है।

सुधार की दिशा में प्रस्ताव:

  • पश्चकार्यवाही समीक्षा को संस्थागत बनाना:
    • यूके मॉडल: सरकारें किसी कानून के लागू होने के 3–5 वर्षों के भीतर उसकी समीक्षा प्रस्तुत करती हैं।
    • भारत में उपयोग: हर DRSC (विभागीय स्थायी समिति) के तहत उप-समिति बनाई जा सकती है जो IBC, राष्ट्रीय शिक्षा नीति जैसे कानूनों की समय-समय पर समीक्षा करे।
  • समिति कार्य को मजबूत करना:
    • रिपोर्टों को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवादित करें, इन्फोग्राफिक्स और लघु वीडियो के ज़रिए प्रसार बढ़ाएं।
    • चयनित रिपोर्टों पर संसद के पटल पर चर्चा अनिवार्य बनाएं।
    • समितियों को समर्पित तकनीकी स्टाफ और डेटा विश्लेषकों की सहायता दी जाए।
  • प्रौद्योगिकी और AI का उपयोग:
    • बजट आवंटन, योजना क्रियान्वयन और लेखा परीक्षण में विसंगतियों को पहचानने के लिए एआई का इस्तेमाल किया जाए।

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