Maternal Mortality Rate
संदर्भ:
भारत में मातृ मृत्यु दर (MMR) में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त कार्यालय द्वारा जारी ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, 2019-21 में यह अनुपात घटकर 93 प्रति एक लाख जीवित जन्म रह गया है, जो 2018-20 में 97 और 2017-19 में 103 था।
मातृ मृत्यु दर (MMR): प्रमुख जानकारी–
- परिभाषा:
- मातृ मृत्यु दर (MMR): 100,000 जीवित जन्मों पर होने वाली मातृ मृत्यु की संख्या।
- मातृ मृत्यु: गर्भावस्था के दौरान या गर्भावस्था समाप्त होने के 42 दिनों के भीतर, किसी कारण से महिला की मृत्यु, जो गर्भावस्था या इसके प्रबंधन से संबंधित हो।
- WHO द्वारा परिभाषित: महिला की मृत्यु जो गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित या बढ़ी हुई समस्या के कारण हो।
- सतत विकास लक्ष्य (SDGs):
- लक्ष्य: 2030 तक वैश्विक MMR को 100,000 जीवित जन्मों पर 70 से कम करना।
- भारत का ट्रेंड: भारत का घटता हुआ MMR इस लक्ष्य की ओर एक सकारात्मक कदम है।
मुख्य तथ्य:
- सबसे अधिक मातृ मृत्यु 20-29 वर्ष की आयु वर्ग में दर्ज की गई।
- इसके बाद 30-34 वर्ष की आयु वर्ग में मातृ मृत्यु के मामले अधिक हैं।
- ये आंकड़े महिलाओं के प्रजनन आयु में स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को दर्शाते हैं।
मातृ मृत्यु के कारण:
वैश्विक परिदृश्य
- WHO के अनुसार:
- हर दिन 700 से अधिक महिलाओं की मृत्यु गर्भावस्था और प्रसव से संबंधित रोकथाम योग्य कारणों से।
- 2023 में: हर दो मिनट में एक मातृ मृत्यु।
- मुख्य योगदानकर्ता:
- गर्भावस्था और प्रसव के दौरान जटिलताएं।
- असुरक्षित गर्भपात।
- समय पर चिकित्सा सहायता न मिलना।
- कुशल स्वास्थ्यकर्मियों की कमी।
- वैश्विक आंकड़ा:
- निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देश (भारत सहित) कुल मातृ मृत्यु का 90% से अधिक योगदान करते हैं।
भारत में MMR में कमी: प्रमुख योजनाएं और पहल
- जननी सुरक्षा योजना (JSY): संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना ताकि सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित हो।
- पोषण अभियान: गर्भवती महिलाओं और बच्चों के पोषण परिणामों में सुधार पर केंद्रित।
- प्रधान मंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA): हर माह एक निश्चित दिन पर गर्भवती महिलाओं को गुणवत्तापूर्ण प्रसवपूर्व देखभाल प्रदान करना।
- आयुष्मान भारत – स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र: मातृ और शिशु स्वास्थ्य सेवाओं सहित समग्र प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करना।
प्रमुख प्रभाव
- संस्थागत प्रसव में वृद्धि।
- कुशल जन्म सहायक की पहुंच में सुधार।
- प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल की गुणवत्ता में सुधार।
- मातृ मृत्यु दर (MMR) में कमी लाने में महत्वपूर्ण योगदान।