चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने चुनावी बॉन्ड योजना को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए इसकी वैधता को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में यह भी माना कि इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।
क्या होता है चुनावी बॉन्ड?
2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था। 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। चुनावी बॉन्ड एक वित्तीय साधन है जो राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए पेश किया गया था। ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है। जिसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है।
कौन-कौन पार्टियां ले सकती हैं?
केवल वे पार्टियां जो चुनाव आयोग में पंजीकृत हैं और पिछले चुनाव में कम से कम 1% वोट हासिल किया है, वे ही बॉन्ड ले सकती हैं।
चुनावी बॉन्ड जारी करने का समय
इलेक्टोरल बॉन्ड वर्ष में चार बार जारी किए जाते हैं, प्रत्येक तिमाही में 10 दिनों के लिए।
यह तिथियां हैं:
- जनवरी: 1-10 जनवरी
- अप्रैल: 1-10 अप्रैल
- जुलाई: 1-10 जुलाई
- अक्टूबर: 1-10 अक्टूबर
इसके अलावा, लोकसभा चुनावों के समय, सरकार 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि निर्धारित कर सकती है जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं।
कौन जारी करता है चुनावी बॉन्ड?
चुनावी बॉन्ड भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा जारी किए जाते हैं। ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की कुछ चुनी हुई ब्रांच में ही मिलते है।
कौन ख़रीद सकता है चुनावी बॉन्ड?
भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी इसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है।
कैसे खरीदें?
- इसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की कुछ चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है।
- 1 हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक के बॉन्ड उपलब्ध हैं।
- खरीदने वाले को अपनी KYC डीटेल बैंक को देनी होगी।
- यह जारी होने की तारीख से 15 कैलेंडर दिवसों के लिये वैध होता है।
कैसे भुनाया जाता है?
- दानदाता बॉन्ड को 15 दिनों के अंदर पार्टी के चुनाव आयोग द्वारा सत्यापित बैंक खाते में जमा कर सकता है।
- पार्टी बैंक से बॉन्ड की राशि को कैश कर सकती है।
चुनावी बॉन्ड ख़रीदने के फ़ायदे?
चुनावी बांड खरीदकर किसी पार्टी को देने से ‘बांड खरीदने वाले’ को कोई फायदा नहीं होगा। न ही इस पैसे का कोई रिटर्न है। ये अमाउंट पॉलिटिकल पार्टियों को दिए जाने वाले दान की तरह है। इससे section 80 GG and Section 80 GGB के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है।
चुनावी बॉन्ड खरीदने वाले को पैसा वापस मिलता है?
चुनावी बॉन्ड खरीदने वाले को पैसा वापस नहीं मिलता है।चुनावी बांड एक तरह की रसीद होती है। इसमें चंदा देने वाले का नाम नहीं होता। इस बांड को खरीदकर, आप जिस पार्टी को चंदा देना चाहते हैं, उसका नाम लिखते हैं। इस बांड का पैसा संबंधित राजनीतिक दल को मिल जाता है। इस बांड पर कोई रिटर्न नहीं मिलता है।
कुछ महत्वपूर्ण बातें:
- दानदाता का नाम गुप्त रहता है।
- भारतीय स्टेट बैंक 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के बॉण्ड जारी करता है।
- यह ब्याज मुक्त होता है और धारक द्वारा मांगे जाने पर देय होता है।
- भारतीय नागरिक अथवा भारत में स्थापित संस्थाएँ इसे खरीद सकती हैं।
- इसे व्यक्तिगत रूप से या संयुक्त रूप से खरीदा जा सकता है।
- यह जारी होने की तारीख से 15 कैलेंडर दिवसों के लिये वैध होता है।
यह योजना क्यों शुरू की गई थी?
- सरकार का मानना है कि यह योजना राजनीतिक दलों को पारदर्शी तरीके से धन प्राप्त करने में मदद करेगी।
- यह काले धन के इस्तेमाल को कम करने में भी मदद करेगी।
इस योजना की आलोचना:
- चुनावी बांड (Electoral Bonds) को लेकर कई लोगो को आपत्ति थी।
- मुख्य आपत्ति यह थी कि कौन पैसा जमा कर रहा है, कितना पैसा जमा कर रहा है, और किस पार्टी के लिए जमा कर रहा है, यह सूचना सार्वजनिक नहीं होती थी।
- सूचना का अधिकार (RTI) लगाने पर भी यह जानकारी नागरिकों को नहीं दी जाती थी।
- कई राजनीतिक दल भी इस प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे थे और इसकी पारदर्शिता बढ़ाने की मांग कर रहे थे।
- यह योजना बड़े कंपनियों को राजनीतिक दलों पर अत्यधिक प्रभाव डालने की अनुमति दे सकती है।
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