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RBI लाभांश (Dividend) 2025

सामान्य अध्ययन पेपर III: बैंकिंग क्षेत्र और एनबीएफसी, वृद्धि एवं विकास

 

(RBI लाभांश (Dividend) 2025) चर्चा में क्यों? 

भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए केंद्र सरकार को 2.69 लाख करोड़ रुपये का लाभांश देने का निर्णय लिया है। यह लाभांश सरकार की राजकोषीय स्थिति को मज़बूती देगा। 

  • यह फैसला RBI गवर्नर की अध्यक्षता में आयोजित केंद्रीय निदेशक मंडल की 616वीं बैठक के बाद लिया गया। 
  • पिछली बार 2.1 लाख करोड़ रुपये के लाभांश प्राप्त हुआ था, जो कि FY23 के मुकाबले दो गुना से भी अधिक था। 
  • इस बैठक में आकस्मिक जोखिम सुरक्षा को संशोधित पूंजी ढांचे के तहत 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 7.5 प्रतिशत किया गया है।

RBI लाभांश/अधिशेष क्या है?

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा केंद्र सरकार को प्रतिवर्ष जो अधिशेष राशि दी जाती है, उसे ‘लाभांश’ या ‘डिविडेंड’ कहा जाता है। 
  • यह लाभांश वित्तीय अनुशासन का परिचायक है होने के साथ साथ देश की अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी है। 
  • भारतीय रिज़र्व बैंक का लाभांश वह अधिशेष राशि होती है जो बैंक, अपने पूरे वित्तीय वर्ष के संचालन में प्राप्त आय और किए गए व्ययों के बाद बची हुई रकम के रूप में केंद्र सरकार को देता है। 
  • यह राशि आरबीआई की आय-सृजन प्रक्रिया का प्रतिफल होती है, जिसमें विदेशी मुद्रा भंडार, सरकारी बॉन्ड पर ब्याज, और ओपन मार्केट ऑपरेशंस शामिल होते हैं।
  • RBI अधिनियम के अनुसार बैंक को अपने समस्त खर्चों और आकस्मिक निधियों में आवंटन के बाद बची राशि सरकार को हस्तांतरित करनी होती है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि अधिशेष का उपयोग सार्वजनिक हित में हो।
  • यह अधिशेष सरकार को बिना उधार लिए प्राप्त होता है, जिससे राजकोषीय घाटे पर दबाव कम होता है। 
  • इस अतिरिक्त निधि के माध्यम से सरकार कल्याणकारी योजनाएं, बुनियादी ढांचे का विकास और सब्सिडी वितरण जैसे क्षेत्रों में व्यय कर सकती है।
  • प्रत्येक वर्ष, रिज़र्व बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल की बैठक में लाभांश राशि को अंतिम रूप दिया जाता है। इसमें यह देखा जाता है कि वर्ष भर में बैंक ने कितनी आय अर्जित की, किस अनुपात में आकस्मिक निधि में जमा किया गया, और उसके बाद शेष बचत कितनी है।

RBI द्वारा केंद्र सरकार को लाभांश देने के कारण 

  • सरकार की आय में वृद्धि: RBI का लाभांश केंद्र सरकार के राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत होता है, जिससे सरकार को अपने व्यय, जैसे सामाजिक योजनाओं और बुनियादी ढांचे के विकास, के लिए अतिरिक्त धन मिलता है।
  • राजकोषीय दबाव कम करना: इस लाभांश से सरकार को उधार लेने की जरूरत कम पड़ती है, जिससे उसका राजकोषीय घाटा घटता है और आर्थिक स्थिरता आती है।
  • वित्तीय संतुलन: आरबीआई और सरकार के बीच वित्तीय संतुलन बनाए रखने के लिए, केंद्रीय बैंक अपने आकस्मिक जोखिम बफर को सुरक्षित करने के बाद जो अधिशेष बचता है, उसे सरकार को हस्तांतरित करता है।
  • कानूनी प्रावधान: भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 47 के अनुसार, RBI को अपने खर्चों के बाद बची राशि सरकार को हस्तांतरित करनी होती है।
  • आर्थिक पूंजी ढांचा (ECF): RBI के आर्थिक पूंजी ढांचे के तहत लाभांश वितरण तय होता है, जो जोखिम प्रबंधन और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करता है।
    • आर्थिक पूंजी ढांचा (Economic Capital Framework – ECF) वह प्रणाली है जिसके माध्यम से आरबीआई यह निर्धारित करता है कि कुल आय का कितना हिस्सा सरकार को ट्रांसफर किया जाएगा।
    • यह ढांचा वर्ष 2019 में पूर्व गवर्नर बिमल जालान समिति की सिफारिशों पर आधारित है। 

लाभांश का स्रोत: RBI कमाई कैसे करता है?

    • सरकारी प्रतिभूतियों से ब्याज आय: RBI की आय का सबसे बड़ा हिस्सा सरकार के बॉन्ड्स और ट्रेजरी बिल्स पर मिलने वाले ब्याज से आता है। रिज़र्व बैंक के पास इन सरकारी प्रतिभूतियों का विशाल संग्रह होता है। ये प्रतिभूतियाँ सुरक्षित निवेश मानी जाती हैं, जिनसे ब्याज के रूप में नियमित आय प्राप्त होती है। यह आय RBI के स्थिर वित्तीय संचालन का आधार है।
    • विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन: RBI के पास विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, यूरो, सोना और अन्य मुद्राएं शामिल होती हैं। ये भंडार सुरक्षित विदेशी परिसंपत्तियों में निवेशित रहते हैं, जिनसे ब्याज और पूंजीगत लाभ होता है। 
      • हाल के महीनों में RBI ने अपने सोने के भंडार को बढ़ाया है, जिससे सोने की बढ़ती कीमतों के कारण आय में भी वृद्धि हुई है। विदेशी मुद्रा प्रबंधन RBI के लिए एक महत्वपूर्ण आय स्रोत है।
    • ओपन मार्केट ऑपरेशन्स (OMO): सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद-फरोख्त के माध्यम से RBI को ट्रेडिंग से आय होती है। खासकर जब ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव होता है, तब यह आय अधिक होती है। ओपन मार्केट ऑपरेशन्स के जरिये RBI बाजार में तरलता को नियंत्रित करता है और इसी दौरान आय भी प्राप्त करता है।
  • तरलता प्रबंधन से लाभ: RBI विभिन्न तरलता प्रबंधन उपकरणों जैसे रिपो ऑपरेशन के माध्यम से बैंकों को धन उधार देता है। इन ऋणों पर प्राप्त ब्याज भी RBI की आमदनी में शामिल होता है। यह आय बैंकिंग प्रणाली में वित्तीय संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है।
  • मुद्रा निर्गम और सीनियॉरिज (Seigniorage): मुद्रा छपाई की लागत और उसके वास्तविक मूल्य के बीच का अंतर RBI की आय का एक खास हिस्सा है। उदाहरण स्वरूप, एक 500 रुपये के नोट को छापने की लागत कुछ रुपये ही होती है, जबकि इसका क्रय मूल्य 500 रुपये होता है। इस अंतर को सीनियॉरिज कहते हैं, जो RBI को आर्थिक लाभ प्रदान करता है।
  • फीस और चार्जेस: RBI सरकार और वाणिज्यिक बैंकों को विभिन्न बैंकिंग सेवाएं प्रदान करता है, जिनके लिए यह सेवा शुल्क और फीस भी वसूल करता है। इसमें ऋण प्रबंधन, क्लियरिंग ऑपरेशन्स और अन्य वित्तीय सेवाएं शामिल हैं, जो RBI की आय में योगदान देती हैं।

RBI के लाभांश वितरण की प्रक्रिया

  • लाभ का निर्धारण
  • RBI की वार्षिक आय विभिन्न स्रोतों से आती है, जिनमें विभिन्न वित्तीय गतिविधियाँ शामिल हैं। इन सभी आयों को जोड़कर कुल लाभ का प्रारूप तैयार किया जाता है। 
  • फिर, बैंक के संचालन और प्रबंधन खर्चों को घटाकर शुद्ध लाभ निकाला जाता है। 
  • इस लाभ को निर्धारित करते समय बैंक की वित्तीय स्थिरता और भविष्य के जोखिमों को भी ध्यान में रखा जाता है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि बैंक के पास पर्याप्त पूंजी और जोखिम प्रबंधन निधि उपलब्ध रहे।
  • आरक्षित निधि:
      • शुद्ध लाभ में से एक महत्वपूर्ण हिस्सा आकस्मिक जोखिम बफर (Contingent Risk Buffer – CRB) या आरक्षित निधि में सुरक्षित रखा जाता है। 
      • यह निधि संभावित वित्तीय संकटों से निपटने के लिए रखी जाती है। 
      • RBI के आर्थिक पूंजी ढांचे (ECF) के तहत, यह निधि बैंक की कुल बैलेंस शीट का एक निश्चित प्रतिशत होती है, जो वर्तमान में 7.5 प्रतिशत तक बढ़ा दी गई है। 
      • इसका उद्देश्य बैंक की स्थिरता बनाए रखना और बाजार के उतार-चढ़ाव से बैंक को सुरक्षित रखना है।
  • शुद्ध अधिशेष:
    • जब आरक्षित निधि में आवश्यक राशि अलग कर दी जाती है, तब बचा हुआ शुद्ध अधिशेष केंद्र सरकार को लाभांश के रूप में हस्तांतरित किया जाता है। 
    • यह राशि RBI के केंद्रीय बोर्ड की बैठक में तय होती है, जिसमें बैंक की वित्तीय स्थिति, आर्थिक हालात, और सरकार की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है। 
    • अधिशेष हस्तांतरण के बाद सरकार के पास अपनी योजनाओं के लिए अतिरिक्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध होते हैं। 

सरकार के लिए RBI लाभांश का महत्व

    • राजकोषीय घाटे को कम करने में भूमिका: आरबीआई से मिलने वाला लाभांश सरकार के राजस्व में वृद्धि करता है, जिससे उसे बाहरी उधार पर निर्भरता कम करनी पड़ती है। इस अतिरिक्त राशि के कारण सरकार का राजकोषीय घाटा घटता है, जो आर्थिक स्थिरता के लिए आवश्यक होता है। घाटा कम होने से आर्थिक नीतियों को बेहतर तरीके से लागू किया जा सकता है और वित्तीय अनुशासन बना रहता है।
    • सामाजिक कल्याण योजनाओं की वित्तीय सहायता: लाभांश से प्राप्त अतिरिक्त धनराशि का उपयोग सरकार सामाजिक कल्याण योजनाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और रोजगार सृजन में किया जाता है। इस वित्तीय सहायता के कारण गरीब और पिछड़े वर्गों तक सुविधाएं पहुंचती हैं और समग्र समाज में समृद्धि आती है। सरकार के लिए यह लाभांश विकास परियोजनाओं के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक आधार प्रदान करता है।
  • बजटीय संतुलन में योगदान: सरकार के वार्षिक बजट में यह लाभांश एक स्थिर आय स्रोत के रूप में काम करता है, जिससे बजटीय संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है। इससे सरकारी खर्च और राजस्व के बीच संतुलन बना रहता है, जो आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है। लाभांश से प्राप्त राशि सरकार को अपनी योजनाओं और कार्यक्रमों को सुचारू रूप से चलाने में सहायक होती है।

बिमल जालान समिति

  • भारतीय रिजर्व बैंक के आर्थिक पूंजी ढांचे (ECF) को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से 26 दिसंबर 2018 को छह सदस्यों वाली समिति का गठन किया गया था। इस समिति की अध्यक्षता पूर्व गवर्नर डॉ. बिमल जालान ने की थी। 
  • समिति का गठन वित्त मंत्रालय और RBI के बीच अधिशेष राशि के हस्तांतरण को लेकर उठे विवाद के समाधान हेतु किया गया था।
  • इसका मुख्य उद्देश्य रिजर्व बैंक के अधिशेष राशि (लाभांश) के उचित स्तर का निर्धारण करना और सरकार को हस्तांतरण की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना था। 
  • समिति ने यह स्पष्ट किया कि RBI की बैलेंस शीट में आकस्मिक जोखिम बफर का स्तर 5.5 प्रतिशत से 6.5 प्रतिशत के बीच होना चाहिए। 
    • इस बफर का लक्ष्य बाजार जोखिम, ऋण जोखिम तथा परिचालन जोखिमों को समुचित सुरक्षा प्रदान करना है। 
    • इस स्तर को बनाए रखने से RBI की वित्तीय मजबूती बनी रहेगी।
  • समिति ने सुझाव दिया कि यदि RBI की वास्तविक इक्विटी या CRB आवश्यक स्तर से ऊपर है, तो बैंक अपनी शुद्ध आय का समस्त भाग सरकार को लाभांश के रूप में हस्तांतरित कर सकता है। 
  • समिति ने यह भी प्रस्तावित किया कि RBI के आर्थिक पूंजी ढांचे की समीक्षा हर पाँच वर्ष में की जानी चाहिए। 
  • बिमल जालान समिति ने RBI की आर्थिक पूंजी को दो प्रमुख भागों में बांटने का सुझाव दिया। 
    • वास्तविक इक्विटी (Realised Equity), जो कि जोखिमों को कवर करने के लिए आरक्षित होती है।
    • पुनर्मूल्यांकन अधिशेष (Revaluation Balances), जिसमें विदेशी मुद्रा, सोना, सरकारी प्रतिभूतियाँ और अप्राप्त लाभ-हानि शामिल होते हैं। 

 

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