Consultative Regulation-making
Consultative Regulation-making –
संदर्भ:
भारत के प्रमुख वित्तीय नियामक — भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने पहली बार नियमों के निर्माण और अद्यतन की प्रक्रिया के लिए स्पष्ट चरण–दर–चरण प्रणाली तैयार की है।
RBI और SEBI के नियमन निर्माण में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के प्रयास:
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने हाल ही में नियम जारी करने की प्रक्रिया को स्पष्ट करने वाले नियम प्रकाशित किए हैं।
- इसी तरह, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भी नियमन बनाने में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए सुधार शुरू किए हैं।
- ये दोनों संस्थाएँ विधिक नियामक हैं और इनके पास अर्ध-विधायिका शक्तियाँ हैं।
- ये सुधार वैश्विक श्रेष्ठ प्रथाओं के अनुरूप हैं और विधि के शासन को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।
RBI और SEBI द्वारा नियमन निर्माण में हाल ही में किए गए प्रक्रियात्मक सुधार:
- अनिवार्य सार्वजनिक परामर्श: RBI और SEBI दोनों अब नए नियमों को अंतिम रूप देने से पहले 21 दिनों का सार्वजनिक प्रतिक्रिया अवधि निर्धारित करते हैं।
- प्रभाव विश्लेषण और नियामक उद्देश्य का परिचय:
- RBI को नए नियमों के प्रभाव का विश्लेषण करना आवश्यक है।
- SEBI को किसी भी प्रस्तावित नियम के पीछे नियामक उद्देश्य और मंशा स्पष्ट करनी होती है।
- मौजूदा नियमों की आवधिक समीक्षा: दोनों नियामकों को नियमित रूप से पुराने नियमों की समीक्षा करनी होती है ताकि उनकी प्रासंगिकता और प्रभावशीलता सुनिश्चित की जा सके।
महत्व (Significance):
- लोकतांत्रिक वैधता को मजबूत करता है: यह सुनिश्चित करता है कि अप्रत्यक्ष रूप से चुनी गई संस्थाएं (जैसे RBI और SEBI) अपने नियम निर्माण में लोकतांत्रिक जवाबदेही निभाएं।
- नियामकीय गुणवत्ता में सुधार: हितधारकों (व्यवसाय, विशेषज्ञ, नागरिक समाज) से फीडबैक लेकर अधिक प्रभावी और व्यावहारिक नियम बनाए जा सकते हैं।
- जनता का विश्वास बढ़ाता है: पारदर्शी नियम निर्माण प्रक्रिया से नियामकीय व्यवस्था में विश्वास बढ़ता है।
- अनुपालन और कार्यान्वयन को सरल बनाता है: विचार-विमर्श से बने नियम अधिक व्यावहारिक होते हैं, जिससे पालन करना आसान होता है।
- नियमों की समीक्षा और सुधार को बढ़ावा: सार्वजनिक सुझावों और समीक्षा तंत्र से पुराने या अप्रभावी नियमों की पहचान और संशोधन संभव होता है।
- वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप: अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसे देशों में यह परामर्श आधारित व्यवस्था पहले से लागू है।
चुनौतियाँ (Challenges)
- नियम निर्माण की प्रक्रिया धीमी होती है: परामर्श और प्रभाव आकलन से नियम बनाने में अधिक समय लगता है।
- नियामकीय प्रभाव में पक्षपात का खतरा: शक्तिशाली लॉबी या उद्योग समूह परामर्श प्रक्रिया पर हावी हो सकते हैं।
- संसाधनों और क्षमता की सीमाएं: RBI और SEBI जैसे नियामकों के पास प्रशासनिक और तकनीकी क्षमता सीमित है।
- हर नियम के लिए विस्तृत प्रभाव मूल्यांकन, सार्वजनिक परामर्श और लागत-लाभ विश्लेषण करना कर्मचारियों पर अतिरिक्त बोझ डालता है और निगरानी या प्रवर्तन से संसाधन हटा सकता है।
- गोपनीयता और संवेदनशीलता के मुद्दे: कुछ नियामकीय विषय (जैसे मौद्रिक नीति, साइबर सुरक्षा, प्रणालीगत जोखिम) अत्यधिक गोपनीय होते हैं।
ऐसे मामलों में सार्वजनिक परामर्श से अटकलें, बाजार में अस्थिरता या जानकारी के लीक होने का खतरा बढ़ सकता है।