Study On Online Child Sexual Abuse In Karnataka
संदर्भ:
कर्नाटक में बच्चों के साथ ऑनलाइन यौन शोषण और दुर्व्यवहार पर किए गए एक पायलट अध्ययन में सिफारिश की गई है कि डिजिटल साक्षरता और ऑनलाइन सुरक्षा को प्राथमिक स्तर से ही स्कूल पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाए। यह सुझाव बच्चों को इंटरनेट की दुनिया में सुरक्षित रखने और उन्हें जागरूक बनाने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
(Study On Online Child Sexual Abuse In Karnataka) –
ऑनलाइन बाल सुरक्षा पर अध्ययन और उससे जुड़े प्रमुख तथ्य:
- अध्ययन से जुड़ी जानकारी (About the Study)
- संस्था द्वारा अध्ययन: यह अध्ययनChildFund India और कर्नाटक राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (KSCPCR) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
- सर्वेक्षण का दायरा:
- 8 से 18 वर्ष की आयु के903 बच्चों पर यह सर्वे किया गया।
- रिपोर्ट में पाया गया किCOVID-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन खतरों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- प्रमुख निष्कर्ष: अध्ययन में यह स्पष्ट किया गया कि बच्चों को ऑनलाइन खतरों से सुरक्षित रखने मेंअभिभावकों, शिक्षकों, नीति निर्माताओं और समुदाय की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- ऑनलाइन बाल यौन शोषण और शोषण की परिभाषा:
- ऑनलाइन बाल यौन शोषण (Online Child Sexual Abuse):
- यह तकनीक (Technology) का उपयोग कर बच्चों को यौन रूप से नुकसान पहुँचाने की प्रक्रिया है।
- इसमें अक्सरजबरदस्ती (force), दबाव (coercion), या मानसिक चालबाज़ी (manipulation) का उपयोग किया जाता है।
- बाल यौन शोषण (Child Sexual Abuse):
- ऐसी शारीरिक या मानसिक इंटरैक्शन जिसमें बच्चे को उसकी इच्छा के विरुद्धयौन उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- बाल यौन शोषण के साथ शोषण (Child Sexual Exploitation):
- जब यौन शोषण के साथखाद्य, आश्रय, धन या अन्य लाभ के बदले बच्चे का उपयोग किया जाता है।
- इसमें बच्चों को लालच देकर या मजबूरी में फँसाकर यौन कार्य करवाना शामिल होता है।
अध्ययन की प्रमुख सिफारिशें:
- डिजिटल साक्षरता और पाठ्यक्रम में सुधार
प्राथमिक स्तर से अनिवार्य डिजिटल शिक्षा:
- स्कूलों मेंडिजिटल साक्षरता और ऑनलाइन सुरक्षा की शिक्षा अनिवार्य की जाए।
- यह शिक्षा बच्चों को साइबर खतरों से सतर्क और सुरक्षित बनाएगी।
उम्रानुसार टूलकिट का विकास: विभिन्न आयु वर्गों के बच्चों के लिए उपयुक्त शिक्षण सामग्री तैयार की जाए, जिससे उन्हें ऑनलाइन सुरक्षा का व्यावहारिक ज्ञान मिले।
- शिक्षक और अभिभावक की भागीदारी
- शिक्षकों को प्रशिक्षण: शिक्षकों को ऑनलाइन शोषण कोपहचानने और प्रतिक्रिया देने का प्रशिक्षण दिया जाए।
- ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावकों के लिए कार्यशालाएँ: सहपाठी-नेतृत्व कार्यशालाएँ आयोजित की जाएँ, जिससे अभिभावकों को इंटरनेट सुरक्षा की जानकारी दी जा सके।
- खुला संवाद बढ़ाना: अभिभावकों और बच्चों के बीचऑनलाइन व्यवहार को लेकर खुला संवाद बढ़ाया जाए।
- सामुदायिक हस्तक्षेप:
- जागरूकता कार्यक्रम: समुदायों में Online Sexual Exploitation and Abuse of Children और अन्य ऑनलाइन खतरों परजागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएँ।
- “डिजिटल सेफ्टी चैम्पियन” की नियुक्ति: हर समुदाय मेंप्रशिक्षित डिजिटल सेफ्टी चैम्पियन तैयार किए जाएँ, जो बच्चों के लिए पहली प्रतिक्रिया देने वाले (first responders) बनें।
- बच्चों की भागीदारी: बच्चों को भीसुरक्षित डिजिटल स्थानों के निर्माण में सक्रिय भागीदार बनाया जाए।
- संस्थागत उपाय:
- कर्नाटक OSEAC टास्क फोर्स का गठन: रोकथाम, सहायता और पुनर्वासके लिए एक राज्य स्तरीय समन्वित टास्क फोर्स स्थापित की जाए।
- स्कूल, अभिभावक, NGO और कानून प्रवर्तन एजेंसियोंके बीच समन्वय को मजबूत किया जाए।
- मजबूत सहायता और प्रवर्तन:
- पीड़ितों के लिए सहायता सेवाएँ: पीड़ित बच्चों के लिएमानसिक स्वास्थ्य देखभाल सहित बेहतर सहायता प्रणाली विकसित की जाए।
- कड़े कानून और निगरानी तंत्र: ऑनलाइन बाल शोषण को रोकने के लिएकड़े कानूनों का प्रवर्तन और निगरानी तंत्र को सुदृढ़ किया जाए।