Inflation and Unemployment
Inflation and Unemployment –
संदर्भ:
मई माह में खुदरा मुद्रास्फीति की दर घटकर 2.8% पर आ गई, जो सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य के भीतर है। इसे भारतीय रिज़र्व बैंक की प्रभावी मौद्रिक नीति का परिणाम मानते हुए मीडिया में इसकी सराहना की जा रही है। किंतु इस उपलब्धि के साथ एक गंभीर सामाजिक-आर्थिक संकेत की अनदेखी हुई है—बेरोजगारी दर में वृद्धि। नवीनतम आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के अनुसार, अप्रैल में 5.1% रही बेरोजगारी दर मई में बढ़कर 5.8% हो गई।
हालिया महंगाई में गिरावट का कारण क्या है जबकि बेरोजगारी बढ़ रही है?
- कृषि क्षेत्र की तेज़ वृद्धि ने मांग–आपूर्ति अंतर को घटाया: वित्त वर्ष 2024-25 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर गैर-कृषि क्षेत्रों से अधिक रही। इससे खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति बढ़ी और बाजार में संतुलन बना।
- खाद्य मुद्रास्फीति में तेज़ गिरावट: अक्टूबर 2024 में लगभग 11% पर थी खाद्य महंगाई, जो मई 2025 तक घटकर 1% से भी कम रह गई। यह गिरावट समग्र महंगाई दर को नीचे लाने में अहम रही।
मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के बीच संबंध: फ़िलिप्स वक्र (Phillips Curve):
अर्थशास्त्र में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत – फ़िलिप्स वक्र – के अनुसार, अल्पकालिक अवधि में मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के बीच एक व्युत्क्रम (inverse) संबंध होता है। इसका तात्पर्य यह है कि:
कम बेरोजगारी ➤ अधिक मुद्रास्फीति
- जब अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में होती है और बेरोजगारी कम होती है, तो लोगों की आय और खर्च करने की क्षमता बढ़ जाती है।
- इससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ती है, और कंपनियाँ कीमतें बढ़ा देती हैं।
- नतीजा: मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।
अधिक बेरोजगारी ➤ कम मुद्रास्फीति
- जब अर्थव्यवस्था संकट में होती है और बेरोजगारी अधिक होती है, तो लोगों की आय और खर्च घट जाते हैं।
- इससे बाजार में मांग घटती है, कंपनियों को कीमतें घटानी पड़ती हैं या छूट देनी पड़ती है।
- नतीजा: मुद्रास्फीति कम हो जाती है या कभी-कभी डिफ्लेशन (मूल्य में गिरावट) भी हो सकता है।
आरबीआई की मुद्रास्फीति नियंत्रण रणनीति–
वर्तमान आर्थिक हालात में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मुद्रास्फीति नियंत्रण नीति को लेकर कुछ महत्वपूर्ण आलोचनाएँ सामने आ रही हैं:
- ब्याज दर और मुद्रास्फीति के रुझानों में असंतुलन
- आरबीआई का मुख्य उपकरण, रेपो रेट में वृद्धि, हालिया महंगाई गिरावट (विशेष रूप से खाद्य मुद्रास्फीति) से मेल नहीं खाता।
- इससे यह सवाल उठता है कि क्या मौद्रिक नीति वास्तव में महंगाई को प्रभावित कर रही है।
- मुद्रास्फीति की अपेक्षाएँ स्थिर, लेकिन ऊँची बनी हुई हैं
- भले ही वास्तविक मुद्रास्फीति घट गई हो, लेकिन घरेलू उपभोक्ताओं की महंगाई को लेकर अपेक्षाएँ अभी भी ऊँचाई पर बनी हुई हैं।
- यह आरबीआई के उस सिद्धांत को कमजोर करता है जिसके अनुसार वह जनता की अपेक्षाओं को नियंत्रित कर महंगाई को स्थिर रख सकता है।
- प्रतिक्रियाशील, नहीं कि अग्रसक्रिय नीति दृष्टिकोण
- आरबीआई की नीतियाँ अक्सर महंगाई में बदलाव के बाद आती हैं, न कि उसे पहले से नियंत्रित करने के लिए।
- इससे नीति को प्रतिक्रियाशील (reactive) माना जा रहा है, जबकि अपेक्षा एक प्रोएक्टिव और मार्गदर्शी भूमिका निभाने की थी।
आगे की राह:
वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए, नीति निर्माताओं को केवल मुद्रास्फीति नियंत्रण तक सीमित न रहकर रोज़गार सृजन और समावेशी विकास की दिशा में भी सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है:
- द्वैत उद्देश्य अपनाना आवश्यक–
- भारतीय रिज़र्व बैंक जैसे नीति-निर्माताओं को केवल मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारणपर ही नहीं, बल्कि बेरोजगारी की स्थिति को भी ध्यान में रखकर मौद्रिक नीति बनानी चाहिए।
- इससे नीतियाँ अधिक संतुलित, समावेशी और वास्तविक अर्थव्यवस्था के अनुकूल बन सकेंगी।
- समावेशी विकास के लिए क्षेत्रवार निवेश को बढ़ावा देना
- श्रम–प्रधान क्षेत्रों जैसे विनिर्माण (manufacturing), सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME), और सेवाक्षेत्र में निवेश को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- इसके साथ-साथ कृषि क्षेत्र में समर्थन बनाए रखना आवश्यक है, ताकि खाद्य आपूर्ति स्थिर रहे और मूल्य स्थिरता बनी