Trilateral meeting China Pakistan and Bangladesh
संदर्भ:
चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश ने हाल ही में अपनी पहली तीनतरफ़ा विदेश सचिव स्तर की बैठक क़ुन्मिंग में आयोजित की, जिसमें “सहयोग” को बढ़ावा देने के तरीकों पर चर्चा हुई। यह रणनीतिक कदम दक्षिण एशिया में चीन की सक्रिय भागीदारी की पुष्टि करता है। बैठक के दौरान एक कार्य समूह बनाने का निर्णय लिया गया, जिसका उद्देश्य “मित्रवत, समकक्ष और पारस्परिक विश्वास” पर आधारित सहयोग को मजबूत करना है ।
Trilateral meeting China Pakistan and Bangladesh –
उद्देश्य: तीनों देशों ने विश्वास, समझ और साझा दृष्टिकोण के आधार पर क्षेत्रीय शांति, समृद्धि और स्थिरता को लेकर विचार साझा किए।
प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग:
बैठक में निम्नलिखित क्षेत्रों में सहयोग की पहचान की गई:
- बुनियादी ढांचा व संपर्क (Infrastructure & Connectivity)
- व्यापार और निवेश
- स्वास्थ्य और कृषि
- समुद्री सहयोग, सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (ICT), आपदा प्रबंधन व जलवायु परिवर्तन
बैठक के प्रमुख निष्कर्ष:
- एक वर्किंग ग्रुप का गठन किया गया, जो समझौतों के क्रियान्वयन पर कार्य करेगा।
- बैठक ने सच्चे बहुपक्षवाद और खुले क्षेत्रीयवाद (open regionalism) पर बल दिया — किसी तीसरे पक्ष को लक्षित नहीं किया गया।
ये देश पास क्यों आ रहे हैं ?
- चीन के रणनीतिक हित:
- BRI विस्तार: चीन दक्षिण एशिया में Belt and Road Initiative के माध्यम से अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है।
- Indo-Pacific को संतुलित करना: यह प्रयास क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) और इंडो-पैसिफिक रणनीति को संतुलित करने के रूप में देखा जा सकता है।
- पाकिस्तान की रणनीति:
- क्षेत्रीय अलगाव: पाकिस्तान क्षेत्रीय कूटनीतिक अलगाव झेल रहा है, और चीन को स्थायी सहयोगी के रूप में देखता है।
- भारत के प्रभाव को संतुलित करना: बांग्लादेश को जोड़कर पाकिस्तान दक्षिण एशिया में भारत की पकड़ को कम करने की कोशिश कर रहा है।
- बांग्लादेश की संतुलन रणनीति:
- भारत और चीन के बीच संतुलन: परंपरागत रूप से भारत के निकट होते हुए भी बांग्लादेश चीनी निवेश व अवसंरचना को आकर्षित करना चाहता है।
- आर्थिक हित: चीन बांग्लादेश का शीर्ष व्यापारिक साझेदार और FDI का प्रमुख स्रोत है।
भू-राजनीतिक प्रभाव:
- ‘महाद्वीपीय ब्लॉक‘ का प्रयास: यह त्रिपक्षीय साझेदारी एक चीन-प्रभावित दक्षिण एशियाई ब्लॉक में परिवर्तित हो सकती है, जो भारत-प्रेरित BIMSTEC, BBIN जैसी पहलों को चुनौती दे सकती है।
- चीनी समुद्री विस्तार: यदि सहयोग बंगाल की खाड़ी तक बढ़ता है, तो यह भारत के समुद्री प्रभाव क्षेत्र में चीनी प्रवेश को दर्शाएगा।
- SAARC की अप्रासंगिकता: भारत-पाक तनाव के कारण निष्क्रिय SAARC के स्थान पर चीन-केन्द्रित क्षेत्रीय प्रारूप उभर सकता है।
- रणनीतिक बंदरगाहों पर नियंत्रण: चटगांव (बांग्लादेश) और ग्वादर (पाकिस्तान) जैसे बंदरगाहों में चीनी निवेश दोहरे उपयोग (सैन्य + नागरिक) की आशंका को जन्म देता है।
आगे की राह: भारत के लिए रणनीतिक विकल्प:
- क्षेत्रीय बहुपक्षवाद को सशक्त करना: भारत को BIMSTEC, BBIN, IORA जैसे समूहों को सक्रिय और व्यावहारिक बनाना चाहिए।
- पड़ोस नीति का पुनःसंरेखण:
- दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाना
- विश्वसनीय आर्थिक सहायता
- सुरक्षा सहयोग तंत्र
- छोटे देशों की संप्रभुता का सम्मान
- समुद्री कूटनीति का विस्तार:
- QUAD की नौसैनिक कवायदें मजबूत करें
- सागरमाला और प्रोजेक्ट ‘मौसम’ को गति दें
- हिंद महासागर क्षेत्रीय देशों (सेशेल्स, मॉरीशस, इंडोनेशिया) से रणनीतिक साझेदारी गहराएं