De-listing of Political Parties
संदर्भ:
“भारतीय निर्वाचन आयोग ने 345 पंजीकृत अपंजीकृत राजनीतिक दलों (RUPPs) को सूची से हटाने की प्रक्रिया शुरू की है, जो न तो चुनाव लड़ रहे थे और न ही वैध कार्यालय पता उपलब्ध करा पाए। यह कदम कर दुरुपयोग पर रोक लगाने और राजनीतिक जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में उठाया गया एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।”
राजनीतिक दलों का पंजीकरण: संवैधानिक और कानूनी आधार–
- संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(c) नागरिकों को संघ बनाने का अधिकार देता है, जिसमें राजनीतिक दलों का गठन भी शामिल है।
- कानूनी आधार: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के अंतर्गत भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को राजनीतिक दलों के पंजीकरण की शक्ति प्रदान की गई है।
पंजीकरण की प्रक्रिया: कोई भी राजनीतिक दल पंजीकरण हेतु निम्न शर्तें पूरी करता है:
- दल का गठन होने के 30 दिनों के भीतर अपनी संविधान/स्मृति-पत्र (constitution/memorandum) ECI को प्रस्तुत करना।
- भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा और समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, संप्रभुता, एकता और अखंडता के सिद्धांतों को स्वीकार करना।
- आंतरिक लोकतंत्र सुनिश्चित करना, जिसमें पदाधिकारियों के नियमित चुनाव शामिल हैं।
पंजीकरण के बाद स्थिति:
- ऐसे दलों को प्रारंभ में Registered Unrecognised Political Parties (RUPPs) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- यदि वे राष्ट्रीय या राज्य दल की मान्यता की शर्तें पूरी करते हैं, तो उन्हें ECI द्वारा मान्यता प्राप्त दल घोषित किया जाता है।
345 RUPPs के डीलिस्टिंग के पीछे के कारण:
- चुनाव आयोग (ECI) ने 345 पंजीकृत अप्रमाणित राजनीतिक दलों (RUPPs) को डीलिस्ट करने की प्रक्रिया शुरू की है। इसके प्रमुख कारण हैं:
- पिछले 6 वर्षों में एक भी चुनाव नहीं लड़ा।
- पंजीकृत पते पर कोई भौतिक कार्यालय मौजूद नहीं।
- वित्तीय विवरण जैसी वैधानिक जानकारी प्रस्तुत करने में विफल।
- यह कार्रवाई 2022 से शुरू हुए व्यापक सफाई अभियान का हिस्सा है, जिसके अंतर्गत ECI “गैर–कार्यात्मक” दलों की पहचान कर रहा है।
अब तक की कार्रवाई:
- 284 RUPPs पहले ही डीलिस्ट किए जा चुके हैं।
- 253 दलों को निष्क्रिय (Inactive) घोषित किया गया है।
- नवीनतम 345 दलों की डीलिस्टिंग इस मुहिम को चुनावों से पहले और भी गंभीर बना रही है।
प्रक्रिया:
- संबंधित राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEOs) को इन दलों को शोकॉज नोटिस जारी करने का निर्देश दिया गया है।
- अंतिम निर्णय CEO की सिफारिशों पर लिया जाएगा।
RUPPs से जुड़ी मुख्य चिंताएं:
- अनुपालन से संबंधित चिंताएं: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29C के तहत अनिवार्य योगदान रिपोर्ट जमा न करना। इससे पार्टी की वित्तीय पारदर्शिता और कानूनी जवाबदेही पर सवाल उठते हैं।
- वित्तीय अनियमितताएं और कर दुरुपयोग:
- आयकर छूट का दुरुपयोग: वित्त वर्ष 2019–20 में 219 RUPPs ने कुल ₹608 करोड़ की आयकर छूट का दावा किया।
- गंभीर वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप: फर्जी दान रसीदें, शेल कंपनियों का उपयोग, फर्जी लेनदेन और खरीददारी इन गतिविधियों से काले धन को सफेद करने की आशंका बढ़ती है।
- चुनावी भागीदारी का अभाव: लोकसभा चुनाव 2019 में लगभग 70% RUPPs ने कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया, जबकि वे पंजीकृत थीं।
- इससे इन दलों की वास्तविक राजनीतिक भूमिका और प्रासंगिकता पर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है।
सुधार के लिए सिफारिशें:
कानून आयोग की 255वीं रिपोर्ट (2015): 10 वर्षों तक लगातार कोई चुनाव न लड़ने वाली राजनीतिक पार्टियों का स्वतः पंजीयन रद्द करने की सिफारिश की गई।
- इसका उद्देश्य गैर-कार्यात्मक और कागजी दलों को हटाकर राजनीतिक व्यवस्था में पारदर्शिता लाना था।
निर्वाचन आयोग का ज्ञापन (2016): जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन की सिफारिश की गई ताकि ECI को राजनीतिक दलों को डीलिस्ट/डीरजिस्टर करने का स्पष्ट अधिकार मिले।
इससे आयोग फर्जी या निष्क्रिय पार्टियों के खिलाफ कानूनी रूप से कार्रवाई कर सकेगा।