RBI New Co-Lending Rules 2025
संदर्भ:
आरबीआई के नए को-लेंडिंग नियम, जो 1 जनवरी 2026 से प्रभावी होंगे, के तहत अब ऋण का कम से कम 10% हिस्सा ऋणदाता बैंक को खुद रखना अनिवार्य होगा।
- इसके साथ ही, इस योजना में भागीदारी के दायरे का विस्तार किया गया है, जिसमें अब अधिक संख्या में बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs) और वित्तीय संस्थान शामिल हो सकेंगे।
(RBI New Co-Lending Rules 2025) आरबीआई के नए को–लेंडिंग नियम (2025):
- न्यूनतम ऋण बरकरार रखने की आवश्यकता–
- को–लेंडिंग व्यवस्था (CLA) में प्रत्येक ऋणदाता को कम से कम 10% ऋण अपनी पुस्तकों (Books) में रखना अनिवार्य।
- उद्देश्य – साझा क्रेडिट जोखिम और जिम्मेदारी सुनिश्चित करना।
- ऋण उत्पन्न करने वाले (Loan Originator) को ऋण 15 दिनों के भीतर सह-ऋणदाता (Co-lender) को स्थानांतरित करना होगा।
- देरी होने पर- वह ऋण को–लेंडिंग के अंतर्गत नहीं माना जाएगा।
- को–लेंडिंग का विस्तारित दायरा–
- पहले (नवंबर 2020 नियम): केवल बैंकों व एनबीएफसी के बीच, जहाँ एनबीएफसी प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (Priority Sector Loans) बनाते थे और ≥20% हिस्सा अपने पास रखते थे।
- अब (2025): को-लेंडिंग की अनुमति इनके बीच भी –
- सभीवाणिज्यिक बैंक (Small Finance Banks को छोड़कर)
- वित्तीय संस्थान
- एनबीएफसी(हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों सहित)
- अब सुरक्षित (Secured) और असुरक्षित (Unsecured) दोनों प्रकार के ऋण शामिल।
- डिजिटल लेंडिंग प्रावधान–
- आरबीआई (डिजिटल लेंडिंग) दिशा–निर्देश, 2025 के तहत संचालित।
- मुख्य बिंदु –
- प्रक्रियाओं में पारदर्शिता
- डेटा गोपनीयता की सुरक्षा
- उपभोक्ता संरक्षण के उपाय
को–लेंडिंग (Co-Lending)-
अर्थ:
- यह एक सहयोगात्मक ऋण व्यवस्था है, जिसमें दो ऋणदाता संस्थान (जैसे बैंक और एनबीएफसी) मिलकर एक ही उधारकर्ता को ऋण प्रदान करते हैं।
- इसमें दोनों संस्थानों के वित्तीय संसाधन और विशेषज्ञता मिलकर काम करती है, जिससे ग्राहकों को बेहतर सेवा और अधिक पूंजी उपलब्ध होती है।
पृष्ठभूमि:
- 2018 – आरबीआई ने को–ओरिजिनेशन फ्रेमवर्क (Co-Origination Framework) शुरू किया, जिसके तहत बैंक + एनबीएफसी मिलकर ऋण दे सकते थे।
- 2020 – इस ढाँचे को अपडेट कर को–लेंडिंग मॉडल (CLM) नाम दिया गया।
मुख्य लाभ:
- क्रेडिट जोखिम का साझा वहन।
- ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों मेंविस्तृत पहुँच।
- बैंक के सस्ते फंडऔर एनबीएफसी की लास्ट–माइल पहुंच का संयोजन।
निष्कर्ष:
आरबीआई का संशोधित को-लेंडिंग फ्रेमवर्क सहयोगात्मक ऋण देने को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो साथ ही सतर्क जोखिम-प्रबंधन को भी सुनिश्चित करता है। न्यूनतम 10% ऋण राशि ऋणदाता बैंक द्वारा बनाए रखने और पात्र भागीदारों के दायरे का विस्तार करने से यह पहल ऋण प्रणाली की स्थिरता को मजबूत करने और विभिन्न क्षेत्रों में क्रेडिट प्रवाह को बेहतर बनाने में सहायक होगी।