रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) प्रौद्योगिकी से लैस स्वदेश में विकसित अग्नि-5 मिसाइल (Agni-V missile) का प्रथम सफल उड़ान परीक्षण किया। ‘मिशन दिव्यास्त्र ‘नामक यह उड़ान परीक्षण ओडिशा के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया। विभिन्न टेलीमेट्री और रडार स्टेशनों ने अनेक री-एंट्री व्हीकल्स को ट्रैक और मॉनिटर किया। इस मिशन ने निर्दिष्ट मानकों को सफलतापूर्वक पूरा किया।
अग्नि मिसाइल:
- अग्नि मिसाइल वर्ग भारत की परमाणु लॉन्च क्षमता की रीढ़ है, जैसे कि पृथ्वी, कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल, पनडुब्बी से लॉन्च की जाने वाली बैलिस्टिक मिसाइल और लड़ाकू विमान हैं।
- अग्नि-1 से 5 मिसाइलें रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) द्वारा डिज़ाइन और विकसित की गई हैं।
अन्य अग्नि मिसाइलें:
- अग्नि I: 700-800 किमी. की सीमा।
- अग्नि II: रेंज 2000 किमी. से अधिक।
- अग्नि III: 2,500 किमी. से अधिक की सीमा
- अग्नि IV: इसकी रेंज 3,500 किमी. से अधिक है और यह एक रोड मोबाइल लॉन्चर से फायर की जा सकती है।
- अग्नि-V: अग्नि शृंखला की सबसे लंबी, एक अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (Inter-Continental Ballistic Missile- ICBM) है जिसकी रेंज 5,000 किमी. से अधिक है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)
- DRDO रक्षा मंत्रालय का रक्षा अनुसंधान एवं विकास (Research and Development) विंग है, जिसका लक्ष्य भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों से सशक्त बनाना है।
- आत्मनिर्भरता और सफल स्वदेशी विकास एवं सामरिक प्रणालियों तथा प्लेटफार्मों जैसे- अग्नि और पृथ्वी शृंखला मिसाइलों के उत्पादन की इसकी खोज जैसे- हल्का लड़ाकू विमान, तेजस: बहु बैरल रॉकेट लॉन्चर, पिनाका: वायु रक्षा प्रणाली, आकाश: रडार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला आदि, ने भारत की सैन्य शक्ति को प्रभावशाली निरोध पैदा करने और महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करने में प्रमुख योगदान दिया है।
गठन:
- DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation- DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment- TDEs) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।
- DRDO वर्तमान में 50 प्रयोगशालाओं का एक समूह है जो रक्षा प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों जैसे- वैमानिकी, शस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, लड़ाकू वाहन, इंजीनियरिंग प्रणालियाँ, इंस्ट्रूमेंटेशन, मिसाइलें, उन्नत कंप्यूटिंग और सिमुलेशन, विशेष सामग्री, नौसेना प्रणाली, लाईफ साइंस, प्रशिक्षण, सूचना प्रणाली तथा कृषि के क्षेत्र में कार्य कर रहा है।
मिशन:
- हमारी रक्षा सेवाओं के लिये अत्याधुनिक सेंसरों, हथियार प्रणालियों, प्लेटफार्मों और संबद्ध उपकरणों के उत्पादन हेतु डिज़ाइन, विकास और नेतृत्व।
- युद्ध की प्रभावशीलता को अनुकूलित करने और सैनिकों की सुरक्षा को बढ़ावा देने हेतु सेवाओं को तकनीकी समाधान प्रदान करना।
- बुनियादी ढांचे और प्रतिबद्ध गुणवत्ता जनशक्ति का विकास करना तथा एक मज़बूत स्वदेशी प्रौद्योगिकी आधार का निर्माण करना।
एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP)
IGMDP के तहत विकसित मिसाइलें हैं:
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Agni-V मिसाइल की विशेषताएँ –
- तीन चरणीय मिसाइल।
- ठोस ईंधन पर आधारित।
- देश की सबसे अधिक दूरी तक मार करने में सक्षम मिसाइल 5000 किमी।
- लंबाई 5 मीटर, चौडाई- 2 मीटर, वज़न 50 टन।
- गतिः ध्वनी की गति से 24 गुना तेज़।
- अग्नि मिसाइल से एक बार में कईं परमाणु अस्त्रों को दागा जा सकता है। यह डेढ़ टन वज़न ढ़ोने में सक्षम है।
- यह मिसाइल एमआईआरवी (multiple independently targetable reentry vehicle – MIRV) तकनीक से लैस है।
- एमआईआरवी तकनीक उस तकनीक को कहते है जिसमें किसी मिसाइल में एक ही बार में कईं परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता होती है, इन हथियारों से अलग-अलग लक्ष्यों को भेदा जा सकता है।
- इसकी एक अन्य विशेषता यह है कि इसे सड़क के माध्यम से कहीं भी ले जाया जा सकता है, इससे पहले की अग्नि मिसाइलों में यह सुविधा मौजूद नहीं थी।
MIR-V तकनीक क्या है?MIRV तकनीक का इस्तेमाल लंबी दूरी की मिसाइलों में किया जाता है। इस तकनीक के तहत एक मिसाइल में कई अलग-अलग वारहेड ले जाने की क्षमता होती है। हर वारहेड को अलग-अलग टारगेट को निशाना बनाने के लिए प्रोग्राम किया जाता है। इसके अलावा एक ही टारगेट को एक साथ भी कई वारहेड से निशाना बनाया जा सकता है। यह तकनीक तीन चरणों में काम करती है-
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अग्नि मिसाइल का महत्व
अग्नि मिसाइल श्रृंखला ने न केवल तकनीकी, वैज्ञानिक और सुरक्षा क्षेत्रों में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भी भारत की प्रतिष्ठा को ऊंचा किया है।
- परमाणु निरोध बढ़ाएं: अग्नि-श्रेणी की मिसाइलें भारत की भूमि-आधारित परमाणु निरोध की रीढ़ हैं और यह चीन-भारत शक्ति समीकरण के बड़े संदर्भ में देश की निरोध के मूल में है।
- अग्नि-V परियोजना का उद्देश्य चीन के खिलाफ भारत की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना है, जिसके पास डोंगफेंग-41 जैसी मिसाइलें हैं जिनकी मारक क्षमता 12,000-15,000 किमी के बीच है।
- रक्षा शस्त्रागार को बढ़ावा देना: भारत की पहली वास्तविक अंतरमहाद्वीपीय रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) मानी जाने वाली अग्नि-V से भारत के रक्षा शस्त्रागार को महत्वपूर्ण बढ़ावा मिला।
- इंटरकॉन्टिनेंटल रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) क्लब: अग्नि-V को अपने शस्त्रागार में शामिल करने के साथ, भारत अब दुनिया भर के केवल पांच अन्य देशों: संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन के साथ विशिष्ट ICBM क्लब में शामिल हो गया है।
- पहले हमले का परमाणु प्रतिशोध: भारत का परमाणु सिद्धांत “पहले उपयोग न करने” के लिए प्रतिबद्ध है , जिसमें हथियारों का उपयोग केवल भारतीय क्षेत्र पर परमाणु हमले के प्रति प्रतिशोध में किया जाता है।
अंतरमहाद्वीपीय प्राक्षेपिक प्रक्षेपास्त्र (Inter Continental Ballistic Missile- ICBMs):
- यह एक लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल है जो विशाल दूरी और विशेष रूप से अंतरमहाद्वीपीय दूरी तक यात्रा करने की क्षमता रखती है।
- वे देश के त्रीपक्षीय परमाणु क्षमता में अहम भूमिका निभाते हैं, जिसमें सतह आधारित मिसाइलें, सबमरीन लॉन्च्ड बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) तथा सामरिक बमवर्षक शामिल हैं।
- ICBM की विशेषता उनकी असाधारण लंबी दूरी है, जो आमतौर पर 5,500 किलोमीटर (लगभग 3,400 मील) से अधिक होती है तथा अमूमन 10,000 किलोमीटर (6,200 मील से अधिक) से अधिक की दूरी तक पहुँचती है।
- ICBM एक बैलिस्टिक प्रक्षेपवक्र का अनुसरण करते हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें अपने लक्ष्य पर आक्रमण करने के लिये पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश करने से पहले अंतरिक्ष में लॉन्च किया जाता है।
भारत की अग्नि मिसाइल |
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मिसाइल |
विशेषताएँ |
अग्नि- I |
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अग्नि- II |
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अग्नि- III |
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अग्नि- IV |
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अग्नि-V |
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अग्नि-P |
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