India China Special Representatives Dialogue
संदर्भ:
भारत और चीन के बीच हाल ही में विशेष प्रतिनिधि वार्ता का 24वां दौर आयोजित किया गया। यह वार्ता द्विपक्षीय संबंधों में स्थिरता, सीमा मुद्दों के समाधान और आपसी विश्वास को मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है। दोनों देशों के बीच यह संवाद ऐसे समय में हुआ है जब सीमा पर शांति और स्थिरता कायम रखना, साथ ही राजनीतिक व आर्थिक सहयोग को आगे बढ़ाना, साझा प्राथमिकताओं में शामिल है।
संवाद के मुख्य परिणाम–
- व्यापार और संपर्क:
- भारत और चीन के बीचसीधी उड़ानें फिर से शुरू होंगी।
- पर्यटकों, व्यवसायियों, मीडिया और अन्य वर्गोंके लिए वीज़ा सुविधा दी जाएगी।
- सीमा व्यापार फिर से शुरू होगा –
- लिपुलेख दर्रा, शिपकी ला दर्रा, नाथु ला दर्रा
- व्यापार और निवेश प्रवाह को बढ़ावा मिलेगा। चीन ने भारत की प्रमुख चिंताओं पर ध्यान दिया जैसे–
- उर्वरक, दुर्लभ खनिज, टनल बोरिंग मशीनें
- जन संपर्क को बढ़ावा:
- कैलाश मानसरोवर यात्राफिर से शुरू होगी।
- सांस्कृतिक आदान–प्रदानपर सहमति बनी।
- वर्ष2026 में भारत में तीसरी उच्च स्तरीय तंत्र बैठक (High-Level Mechanism) आयोजित होगी।
- अंतर–सीमा नदियों पर सहयोग:
- चीन ने आपातकालीन स्थिति मेंहाइड्रोलॉजिकल डाटा साझा करने पर सहमति जताई।
- भारत ने चीन कीयारलुंग सांगपो (ब्रहमपुत्र) पर मेगा बांध निर्माण को लेकर चिंता जताई।
यात्रा का महत्व
- 75वीं वर्षगांठ:वर्ष 2025 भारत–चीन के राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ है। दोनों देशों ने इस अवसर को नए सहयोग के साथ मनाने का संकल्प लिया।
- भारत–चीन रीसेट:यह मेल-मिलाप 2020 की झड़पों के बाद सैन्य और कूटनीतिक गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
- कज़ान बैठक 2024:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कज़ान बैठक को संबंध सुधारने वाला निर्णायक मोड़ माना गया।
- भूराजनीतिक पृष्ठभूमि:यह मेल-मिलाप ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका द्वारा हाल ही में लगाए गए टैरिफ के चलते भारत–अमेरिका व्यापारिक संबंध कमजोर हो रहे हैं।
- मल्टीपोलैरिटी (बहुध्रुवीयता) पर ज़ोर:भारत और चीन दोनों ने बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दोनों देश एकतरफ़ावाद और पश्चिमी वर्चस्व का विरोध करना चाहते हैं।
संबंधों में चुनौतियाँ
- सीमा विवाद: विभिन्न समझौतों और वार्ताओं के बावजूद वास्तविक सीमा विवाद अब तक सुलझ नहीं पाया है।
- विश्वास की कमी: गालवान की घटना और 2013 से लगातार सीमा उल्लंघन (Depsang, Doklam, Pangong Tso) ने भारतीय नीति-निर्माताओं में अविश्वास की भावना को बनाए रखा है।
- ब्रह्मपुत्र पर चीन की गतिविधियाँ: चीन के मेगा-डैम प्रोजेक्ट भारत के लिए पर्यावरणीय और सुरक्षा दृष्टि से चिंता का विषय बने हुए हैं।
- वैश्विक समीकरण: अमेरिका, रूस और चीन के बीच भारत की रणनीतिक संतुलन नीति बेहद नाजुक बनी हुई है।
- चीन–पाकिस्तान कारक: चीन और पाकिस्तान की नज़दीकी, विशेषकरचीन–पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC)परियोजना, भारत के लिए गहरी चिंता का विषय है।
आगे की राह:
- बहुपक्षीय सहयोग– SCO, BRICS, G20 जैसे मंचों पर साझेदारी मज़बूत करें।
- नदी पारदर्शिता– आँकड़े साझा कर सीमा-पार जल परियोजनाओं में विश्वास बढ़ाएँ।
- सीमा संवाद– LAC पर तनाव घटाकर शांति सुनिश्चित करें।
- आर्थिक संतुलन– व्यापार व निवेश आपसी लाभकारी हों, अति-निर्भरता से बचें।