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क्या आरक्षण 50% सीमा से अधिक होना चाहिए (Reservations Exceed the 50% Cap) | UPSC

Reservations Exceed the 50% Cap

Reservations Exceed the 50% Cap

संदर्भ:

बिहार में विपक्षी नेता ने सत्ता में आने पर आरक्षण की सीमा 85% तक बढ़ाने का वादा किया है। इसी बीच, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर एससी और एसटी के लिए ‘क्रीमी लेयर’ प्रणाली लागू करने की मांग वाली याचिका पर जवाब मांगा है।

संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions):

  • अनुच्छेद 15(4) और 15(5): राज्य को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (Backward Classes), अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) की उन्नति हेतु विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार है, विशेषकर शैक्षणिक संस्थानों में।
  • अनुच्छेद 16(4): राज्य को यह शक्ति है कि वह सार्वजनिक रोजगार (Public Employment) में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण प्रदान करे, यदि वे सेवाओं में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं।
  • अनुच्छेद 16(4A) और 16(4B):
    • 16(4A) – एससी और एसटी के लिए पदोन्नति (Promotion) में आरक्षण की अनुमति देता है।
    • 16(4B) – खाली रह गए आरक्षित पदों को आगे के वर्षों में ले जाने (Carry Forward) की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद 46: राज्य को कमजोर वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की शैक्षणिक और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने का निर्देश देता है।
  • वर्तमान आरक्षण स्थिति (केंद्र स्तर पर):
    • अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs): 27%
    • अनुसूचित जाति (SCs): 15%
    • अनुसूचित जनजाति (STs): 7.5%
    • आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS): 10%
    • कुल आरक्षण: 59.5%

न्यायिक फैसले: आरक्षण और समानता:

  • Balaji vs State of Mysore (1962): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरक्षण “उचित सीमा (reasonable limits)” के भीतर होना चाहिए और इसे 50% की सीमा में रखा गया। यह निर्णय औपचारिक समानता (Formal Equality) की अवधारणा को मजबूत करता है।
  • State of Kerala vs N.M. Thomas (1975): कोर्ट ने माना कि आरक्षण अवसर की समानता (Equality of Opportunity) को आगे बढ़ाने का साधन है और इसे व्यावहारिक समानता (Substantive Equality) के रूप में देखा। हालांकि, इसमें 50% सीमा पर कोई स्पष्ट टिप्पणी नहीं की गई।

Indra Sawhney Case (1992): मंडल आयोग केस:

  • 27% OBC आरक्षण को बरकरार रखा।
  • 50% की सीमा को दोहराया।
  • Creamy Layer सिद्धांत लागू किया गया, जिसके तहत आर्थिक और सामाजिक रूप से उन्नत OBCs को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।

Janhit Abhiyan vs Union of India (2022):

  • 10% EWS आरक्षण को वैध ठहराया।
  • कहा कि 50% सीमा केवल पिछड़े वर्गों पर लागू होती है, EWS पर नहीं।

State of Punjab vs Davinder Singh (2024): कोर्ट ने सुझाव दिया कि SCs और STs के लिए भी Creamy Layer बहिष्करण (Exclusion) पर विचार किया जा सकता है।

50% आरक्षण सीमा के सामने चुनौतियाँ:

  • जनसंख्या का तर्क: पिछड़े वर्गों की जनसंख्या मौजूदा आरक्षण अनुपात से कहीं अधिक है। सटीक आंकड़े जानने के लिए जाति जनगणना की माँग लगातार बढ़ रही है।
  • रिक्त पदों की समस्या: केंद्र स्तर पर OBC/SC/ST वर्गों के लिए आरक्षित 40–50% पद खाली रह जाते हैं, जिससे आरक्षण का पूरा लाभ समाज तक नहीं पहुँच पाता।
  • उपजातियों में असमानता: रोहिणी आयोग की रिपोर्ट में सामने आया कि OBC आरक्षण का लाभ कुछ ही जातियों तक सीमित है, जबकि लगभग 1,000 समुदायों को इसका कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया।

आरक्षण लाभों के केंद्रीकरण की समस्या:

  • OBC वर्ग में असमानता: अन्य पिछड़ा वर्ग के भीतर लगभग 25% उप-जातियाँ ही करीब 97% आरक्षण लाभ हासिल कर रही हैं।
  • SC/ST में भी असंतुलन: क्रीमी लेयर की व्यवस्था न होने के कारण अपेक्षाकृत सम्पन्न उप-जातियाँ ही अवसरों का बड़ा हिस्सा ले जाती हैं, जबकि वंचित तबके पीछे रह जाते हैं।
  • नीति शून्यता: न्यायपालिका की बार-बार की टिप्पणियों के बावजूद, केंद्र सरकार ने अगस्त 2024 में यह दोहराया कि अनुसूचित जाति और जनजाति वर्गों पर क्रीमी लेयर लागू नहीं होगी।

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