India set to be Among Top Five Shipbuilding Nations by 2047
संदर्भ:
भारत सरकार, पोर्ट्स, शिपिंग और वाटरवेज मंत्रालय तथा महानिदेशालय शिपिंग के माध्यम से भारत को शिपबिल्डिंग का वैश्विक केंद्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। देश का स्पष्ट लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक शीर्ष 10 समुद्री देशों में और 2047 तक शीर्ष 5 में शामिल हो सके।
शिपबिल्डिंग : एक परिचय:
- परिभाषा: शिपबिल्डिंग का मतलब जहाज़ों का निर्माण, मरम्मत और रखरखाव है। इनका इस्तेमाल परिवहन, रक्षा और व्यापार में किया जाता है।
- सुविधाएँ: यह कार्य विशेष स्थानों पर किया जाता है जिन्हें शिपयार्ड (Shipyards) कहते हैं। यहाँ बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट और जटिल असेंबली प्रक्रियाएँ पूरी की जाती हैं।
वैश्विक बाज़ार (2023)
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र (Asia-Pacific): सबसे बड़ा हिस्सा, कुल बाज़ार का 49% यानी 118.12 अरब डॉलर।
- इसके बाद पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अन्य क्षेत्र आते हैं।
भारत की स्थिति
- भारत की हिस्सेदारी केवल 0.06% है।
- इसके विपरीत चीन, दक्षिण कोरिया और जापान मिलकर 85% वैश्विक शिपबिल्डिंग उद्योग पर नियंत्रण रखते हैं।
भारत का समुद्री क्षेत्र–
- अर्थव्यवस्था में योगदान: भारत का समुद्री क्षेत्र वर्तमान में GDP का 4% योगदान करता है और वैश्विक टन भार (Global Tonnage) में इसकी हिस्सेदारी केवल 1% है। लक्ष्य है कि इसे बढ़ाकर 12% तक पहुँचाया जाए।
- वैश्विक रैंकिंग का लक्ष्य: भारत वर्तमान में 16वें स्थान पर है, लेकिन लक्ष्य है कि 2030 तक शीर्ष 10 और 2047 तक शीर्ष 5 समुद्री देशों में शामिल हो।
- भारतीय नाविकों की भूमिका: वर्तमान में भारतीय नाविक (Seafarers) वैश्विक कार्यबल का 12% हिस्सा हैं। लक्ष्य है कि इसे बढ़ाकर लगभग 25% किया जाए। इसके लिए शिपबिल्डिंग और मरम्मत को इस परिवर्तन का केंद्र बनाया जा रहा है।
- व्यापार में अहम योगदान: भारत का समुद्री क्षेत्र कुल व्यापार का 95% वॉल्यूम संभालता है, जो अर्थव्यवस्था में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
- कार्गो प्रबंधन: भारतीय बंदरगाहों पर कार्गो प्रबंधन FY24 में 4.45% बढ़कर 819.22 मिलियन टन तक पहुँच गया।
भारत में शिपबिल्डिंग इंडस्ट्री के विकास को अनुकूल बनाने वाले कारक:
- रणनीतिक स्थिति: भारत का लंबा समुद्री तट और प्रमुख शिपिंग रूट्स के नज़दीक होना शिपयार्ड्स के लिए स्वाभाविक लाभ है। इससे परिवहन लागत और जहाज़ों के turnaround time कम होते हैं।
- प्रतिस्पर्धी मज़दूरी: अन्य देशों की तुलना में भारत में मज़दूरी लागत कम है, जो अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के लिए इसे आकर्षक बनाता है।
- विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान: भारतीय शिपयार्ड्स ऑफ़शोर सपोर्ट वेसल्स (offshore support vessels), ड्रेजर्स (dredgers), और फ़ेरी (ferries) जैसे विशेष जहाज़ों के निर्माण पर ध्यान दे रहे हैं।
- सरकारी समर्थन: सरकार ने Scheme for Financial Assistance to Shipyards in India (SFAS) जैसी योजनाएँ शुरू की हैं और स्वदेशी क्षमता बढ़ाने पर ज़ोर दिया है।
चुनौतियाँ:
- इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी: कई बंदरगाहों पर आधुनिक सुविधाओं की कमी है, जिससे क्षमता और कार्यकुशलता (efficiency) प्रभावित होती है।
- भीड़भाड़: बड़े बंदरगाहों पर अत्यधिक ट्रैफिक होने से देरी, turnaround time बढ़ना और उत्पादकता में कमी आती है।
- पर्यावरणीय चिंताएँ: जहाज़ों और बंदरगाह संचालन से प्रदूषण और स्थिरता (sustainability) की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- लॉजिस्टिक्स की चुनौतियाँ: बंदरगाहों, सड़कों और रेलवे के बीच कनेक्टिविटी की कमी से कार्गो मूवमेंट प्रभावित होता है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा: चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे वैश्विक समुद्री केंद्रों से कड़ी प्रतिस्पर्धा है, जिसके चलते लगातार निवेश और आधुनिकीकरण आवश्यक है।