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रक्षा मंत्री ने भारतीय सशस्त्र बलों को अपरंपरागत खतरों के लिए तैयार रहने का आह्वान किया (Defence Minister Exhorts Indian Armed Forces to be Ready For Unconventional Threats) | UPSC

Defence Minister Exhorts Indian Armed Forces to be Ready For Unconventional Threats

Defence Minister Exhorts Indian Armed Forces to be Ready For Unconventional Threats

संदर्भ:

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने देश की सशस्त्र सेनाओं से आह्वान किया है कि वे युद्ध की पारंपरिक अवधारणाओं से आगे बढ़कर असामान्य खतरों से निपटने के लिए तैयार रहें।

  • उन्होंने चेतावनी दी कि जैविक, पारिस्थितिक और सूचना युद्ध के साथ-साथ वैचारिक ब्रेनवॉश जैसे अदृश्य खतरे ऐसे चुनौतियाँ हैं जिनसे निपटने के लिए निरंतर सतर्कता आवश्यक है। इसी कारण भविष्य के युद्ध जीतने के लिए पारंपरिक ढाँचों से आगे बढ़ना अनिवार्य है।

दीर्घकालिक युद्ध की तैयारी क्यों आवश्यक है?

  1. युद्ध की बदलती प्रकृति: आधुनिक युद्ध अब केवल ज़मीन, हवा और समुद्र तक सीमित नहीं हैं। अब इनमें हाइब्रिड वॉरफेयर शामिल है – साइबर हमले, अंतरिक्ष-आधारित खतरे, सूचना युद्ध, ड्रोन और एआई-सक्षम हथियार। इन नई चुनौतियों से निपटने के लिए निरंतर आधुनिकीकरण ज़रूरी है।
  2. क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियाँ: भारत के सामने दोहरी चुनौती है:
    • चीन की तेज़ी से बढ़ती सैन्य ताकत और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आक्रामकता।
    • पाकिस्तान के प्रॉक्सी युद्ध, सीमा-पार आतंकवाद और अस्थिरता।
      इनसे निपटने के लिए भारत को अपने सैन्य बलों का आधुनिकीकरण करना आवश्यक है।
  3. प्रौद्योगिकी अंतर: आधुनिक रक्षा उपकरणों के लिए अत्यधिक आयात पर निर्भरता भारत की कमजोरी है। आधुनिकीकरण से तकनीकी अंतर कम होगा, स्वदेशी क्षमता मज़बूत होगी और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सकेगी।
  4. संचालनिक तैयारी: भविष्य के युद्ध कम समय के, तीव्र और उच्च-स्तरीय हो सकते हैं। ऐसे हालात में भारत को आधुनिक, फुर्तीले और सुसज्जित बलों की आवश्यकता है। आधुनिकीकरण से विश्वसनीय निवारक क्षमता (Deterrence) और त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित होती है।

आधुनिकीकरण प्राप्त करने में चुनौतियाँ

  1. बहुक्षेत्रीय संघर्ष के लिए पुनः उन्मुखीकरण
    भविष्य के युद्ध मल्टी-डोमेन हाई-टेक ऑपरेशन्स पर आधारित होंगे। इसके लिए सैनिकों में मल्टी-स्किलिंग और मल्टी-कम्पिटेंसी विकसित करनी होगी। युद्ध की कला साथ-साथ विज्ञान को भी ऊँचे स्तर पर ले जाना आवश्यक है।
  2. मानव संसाधन और प्रोफेशनल मिलिट्री एजुकेशन:
    अधिकारियों को रणनीतिक सोच (Strategic Thinking), नई तकनीक अपनाने (Technology Adaptation) और संयुक्त अभियानों (Joint Operations) की ट्रेनिंग देनी होगी। वर्तमान व्यवस्था अभी भी पारंपरिक, पद-आधारित पदोन्नति प्रणाली की ओर झुकी हुई है।
  3. प्रौद्योगिकीगत कमी: भारतीय सेना अभी भी AI, Robotics, Drones, Cyber और Electronic Warfare में पीछे है। आधुनिक प्रणालियों को शामिल करने के साथ-साथ सिद्धांत, प्रशिक्षण और संरचना में सुधार भी ज़रूरी है, जो अभी धीमा है।
  4. नागरिकसैन्य समन्वय की समस्या: रक्षा मंत्रालय, सशस्त्र बलों और उद्योग के बीच समुचित तालमेल की कमी है। एक सशक्त प्रोक्योरमेंट अथॉरिटी के अभाव में रक्षा खरीद के निर्णयों में देरी होती है।
  5. भूराजनीतिक दबाव: चीन और पाकिस्तान की दो-तरफ़ा चुनौती भारत के लिए त्वरित आधुनिकीकरण आवश्यक बनाती है, लेकिन प्रगति की रफ्तार अभी धीमी है। इसके अलावा, यदि प्रतिबंध या सप्लाई चेन में बाधा आती है, तो स्वदेशी क्षमताओं का अभाव गंभीर खतरा बन सकता है।

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