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राज्यों का बढ़ता सार्वजनिक ऋण (Rising Public Debt of States) | UPSC

Rising Public Debt of States

Rising Public Debt of States

संदर्भ:

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की एक पहली बार जारी की गई रिपोर्ट (Rising Public Debt of States) में राज्यों की वित्तीय स्थिति का दशकभर का विश्लेषण सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार, देश के सभी 28 राज्यों का सार्वजनिक ऋण पिछले 10 वर्षों में तीन गुना हो गया है — वर्ष 2013-14 में जहाँ यह ₹17.57 लाख करोड़ था, वहीं 2022-23 में बढ़कर ₹59.60 लाख करोड़ तक पहुँच गया।

सार्वजनिक ऋण (Rising Public Debt of States) क्या है?

सार्वजनिक ऋण वह उधारी है, जो सरकार अपने खर्च राजस्व से अधिक होने पर लेती है। इसमें (Rising Public Debt of States) केंद्र या राज्य के समेकित कोष से उठाई गई सभी देनदारियाँ शामिल होती हैं। सार्वजनिक ऋण (Rising Public Debt of States) दो प्रकार का होता है: आंतरिक (बाज़ार योग्य जैसे जी-सेक, टी-बिल्स और गैर-बाज़ार योग्य जैसे एनएसएसएफ के लिए विशेष प्रतिभूतियाँ) और बाहरी (विदेशी स्रोतों से लिया गया ऋण)।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

  1. कर्ज़ की वृद्धि (Debt Growth) – Rising Public Debt of States
  • राज्यों का संयुक्त सार्वजनिक कर्ज़ 2013-14 में ₹17.57 लाख करोड़ से बढ़कर 2022-23 में ₹59.60 लाख करोड़ हो गया।
  • GSDP (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) के अनुपात में कर्ज़ 2013-14 में 16.66% से बढ़कर 2022-23 में 22.96% तक पहुँच गया।
  • 2022-23 में राज्यों का कुल कर्ज़ (Rising Public Debt of States) भारत के GDP का 22.17% रहा।
  1. राज्यवार कर्ज़सेGSDP अनुपात:
  • सबसे अधिक: पंजाब (40.35%), नागालैंड (37.15%), पश्चिम बंगाल (33.70%)।
  • सबसे कम: ओडिशा (8.45%), महाराष्ट्र (14.64%), गुजरात (16.37%)।
  • 8 राज्यों का कर्ज़ 30% से अधिक, जबकि 6 राज्यों का कर्ज़ 20% से कम रहा।
  1. कर्ज़ और राजस्व रसीदें (Debt and Revenue Receipts in Rising Public Debt of States):
  • पिछले एक दशक में राज्यों का कर्ज़ राजस्व रसीदों का 128%–191% तक रहा।
  • औसतन, राज्यों का कर्ज़ उनकी 150% राजस्व रसीदों / गैरकर्ज़ रसीदों के बराबर है।

उच्च कर्ज़ (Rising Public Debt of States) के कारण:

  1. जनतामुखी राजनीति (Populist Politics)
  • बिजली सब्सिडी, कृषि ऋण माफी, नकद हस्तांतरण, पुराने पेंशन स्कीम का पुनः शुरू होना आदि।
  • इन खर्चों के लिए अक्सर उधारी (borrowings) का सहारा लिया जाता है।
  1. प्रतिस्पर्धी जनतामुखी नीतियाँ:
  • पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य महंगे कल्याणकारी योजनाओं को अपनाते हैं।
  • इससे राजकोषीय दबाव बढ़ता है।
  1. COVID-19 का प्रभाव: Rising Public Debt of States कर्ज़-से-GSDP अनुपात 2019-20 में 21% से बढ़कर 2020-21 में 25% हो गया।
  2. GST पर निर्भरता:
  • GST लागू होने के बाद राज्यों को स्वतंत्र कराधान अधिकार (जैसे octroi, entry tax) खो गए।
  • GST मुआवजा जून 2022 में बंद राजस्व अंतर
  1. वर्तमान खर्च (Rising Public Debt of States in Hindi) के लिए उधारी:
  • रिपोर्ट ने ‘गोल्डन रूल’ का उल्लंघन बताया: सरकारें केवल निवेश के लिए कर्ज़ लें, संचालन खर्च के लिए नहीं।
  • CAG ने पाया कि 11 राज्यों में (पंजाब, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश आदि) नेट उधारी का आधा हिस्सा वेतन, पेंशन, सब्सिडी पर खर्च हुआ, इंफ्रास्ट्रक्चर पर नहीं।

चिंताएँ:

  • क्राउडिंग आउट: राज्यों के अधिक SDL उधार लेने से ब्याज दरें बढ़ जाती हैं, जिससे निजी कंपनियों के लिए ऋण महंगा हो जाता है।
  • मुद्रास्फीति का दबाव: अत्यधिक ऋण आधारित खर्च, खासकर उपभोग सब्सिडी पर, महँगाई को और बढ़ा सकता है।
  • ब्याज और ऋण सेवा बोझ: ऊँची ब्याज दरों पर बढ़ते बाजार उधार (SDLs) से पुनर्भुगतान का दबाव बढ़ता है। कई राज्यों में 20-25% राजस्व प्राप्ति केवल ब्याज चुकाने में चली जाती है, जिससे विकास कार्यों के लिए संसाधन सीमित हो जाते हैं।
  • केंद्रराज्य राजकोषीय संतुलन: केंद्र सरकार का ऋण (FY24 में GDP का ~57%) और राज्यों का ऋण (~23% GDP) मिलकर भारत का कुल सरकारी ऋण लगभग GDP का 80% पहुँचाता है, जो FRBM समिति के लक्ष्य (60%) से कहीं अधिक है।

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