H-1B visa
संदर्भ:
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक नया कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत सभी एच-1बी वीज़ा आवेदनों पर 1,00,000 डॉलर का शुल्क लगाया जाएगा। यह शुल्क उन कंपनियों को देना होगा जो विदेशी कुशल कामगारों को अमेरिका में रहने और काम करने के लिए नियुक्त करेंगी। यह कदम एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम के भविष्य को पूरी तरह बदल सकता है।
H-1B वीज़ा कार्यक्रम:
- परिचय: H-1B वीज़ा एक non-immigrant, employer-sponsored वर्क वीज़ा है जिसे 1990 के Immigration Act के तहत बनाया गया। यह अमेरिकी नियोक्ताओं को उच्च कौशल वाले विदेशी पेशेवरों को अस्थायी रूप से नियुक्त करने की अनुमति देता है।
- उपयोग: IT, इंजीनियरिंग, वित्त (Finance), और स्वास्थ्य सेवा (Healthcare) जैसे क्षेत्रों में कौशल की कमी पूरी करने में मदद करता है।
मुख्य प्रावधान (Key Provisions):
- पात्रता: विशेष क्षेत्र में स्नातक (Bachelor’s) या उससे उच्च डिग्री, या उसके बराबर कार्य अनुभव आवश्यक।
- वार्षिक सीमा:
- हर साल सीमित संख्या में H-1B वीज़ा जारी किए जाते हैं।
- 65,000 वीज़ा सामान्य सीमा और अतिरिक्त 20,000 वीज़ा अमेरिका से उन्नत डिग्री धारकों के लिए।
- छूट: उच्च शिक्षा संस्थान, non-profits या सरकारी शोध संगठनों में कार्यरत लोगों पर वार्षिक सीमा लागू नहीं।
- वैधता: शुरुआत में 3 साल के लिए, अधिकतम 6 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
- आजीवन सीमा: जीवनभर कई बार H-1B वीज़ा लिया जा सकता है, बशर्ते हर बार मानक प्रक्रिया का पालन हो।
- Dual-Intent Visa: H-1B धारक ग्रीन कार्ड (Green Card) और स्थायी निवास (Permanent Residency) के लिए आवेदन कर सकते हैं।
- सबसे बड़े लाभार्थी: भारतीय सबसे अधिक लाभार्थी हैं—2015 से अब तक 70% से अधिक याचिकाएँ भारत से, इसके बाद चीन।
भारत पर प्रभाव (Implications for India):
- आईटी उद्योग: अमेरिकी कॉन्ट्रैक्ट कम होने से राजस्व घटेगा; लगभग $150 अरब के आईटी निर्यात क्षेत्र पर खतरा।
- कुशल श्रमिक: भारतीय इंजीनियरों और पेशेवरों के लिए अवसर घटेंगे; reverse brain drain (प्रतिभा की वापसी) संभव।
- रेमिटेंस: अमेरिका में कार्यरत भारतीयों से आने वाले धन में गिरावट।
- कूटनीति: भारत व्यापार वार्ताओं में mobility agreements पर जोर देगा; भारत–अमेरिका संबंधों में तनाव की आशंका।
निष्कर्ष:
एच-1बी वीज़ा शुल्क में वृद्धि भारत-अमेरिका संबंधों और वैश्विक प्रतिभा गतिशीलता का एक अहम मोड़ है। यह कदम जहाँ हज़ारों पेशेवरों और परिवारों के लिए कठिनाई खड़ी करता है, वहीं इसके दीर्घकालिक प्रभाव भारत के रणनीतिक हितों को मज़बूत कर सकते हैं।
इस चुनौती से सफलतापूर्वक निपटने के लिए सरकार, उद्योग और नागरिक समाज के बीच समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। यदि भारत इस नीति को प्रतिभा गतिशीलता पर अंकुश की बजाय घरेलू नवाचार के उत्प्रेरक में बदल सके, तो वह इस अनिश्चितता के दौर से और अधिक मज़बूत होकर उभर सकता है।