Uranium Mining Protests in Meghalaya
संदर्भ:
मेघालय की कई संगठनों ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी हालिया कार्यालय ज्ञापन पर चिंता जताई है, जिसमें यूरेनियम खनन को अनिवार्य जन-सलाह प्रक्रिया से छूट दी गई है।
मेघालय में यूरेनियम खनन विरोध का इतिहास:
- खासी समुदाय का विरोध (1980 से): डोमियासियात और वाहकाजी क्षेत्रों में चार दशकों से लगातार प्रतिरोध।
- झारखंड का अनुभव: सिंहभूम की खदानों में विकिरण (radiation) और आजीविका के नुकसान के कारण व्यापक विरोध हुआ, जिससे अविश्वास बढ़ा।
- प्रक्रियात्मक अन्याय: जनसुनवाई अनजानी भाषाओं में हुईं और स्थानीय आपत्तियों की अनदेखी की गई।
नया कार्यालय ज्ञापन (Office Memorandum) क्यों विवादास्पद है?
- जन परामर्श से छूट: सामरिक खनिजों (strategic minerals) के खनन में स्थानीय समुदाय की आवाज़ दबाई गई।
- संसदीय निगरानी का अभाव: बिना संसदीय जांच-पड़ताल के जारी, कार्यपालिका (executive) के अतिरेक का संकेत।
- संवैधानिक सुरक्षा कमजोर: भूमि के संरक्षकों को ऐसे फैसलों में केवल दर्शक बना दिया गया जो उनके अस्तित्व पर असर डालते हैं।
संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा दांव पर:
- षष्ठम अनुसूची (Sixth Schedule): खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद अपनी स्वायत्तता का उपयोग कर सकती है।
- न्यायिक दृष्टांत: नियामगिरि (2013) में आदिवासी सहमति की सर्वोच्चता को मान्यता दी गई।
- पंचम व षष्ठम अनुसूची: विरोध के लिए मजबूत कानूनी आधार प्रदान करती हैं।
- वैश्विक सिद्धांत FPIC (Free, Prior, and Informed Consent): इस निर्णय में पूरी तरह अनदेखा।
यूरेनियम खनन क्यों जोखिमभरा है?
- पर्यावरणीय खतरे: रेडियोधर्मी कचरा और जलस्रोतों का प्रदूषण।
- मानव स्वास्थ्य पर असर: सिंहभूम में विकिरण से जुड़ी बीमारियों के मामले बढ़े।
- सांस्कृतिक विघटन: आदिवासी समुदाय अपनी पैतृक भूमि और सांस्कृतिक धरोहर खोते हैं।
- अल्पकालिक सुरक्षा बनाम दीर्घकालिक स्थिरता: यूरेनियम पर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर, नवीकरणीय ऊर्जा विकल्पों को कमजोर करता है।
यूरेनियम खनन क्या है?
यूरेनियम खनन वह प्रक्रिया है, जिसके तहत भूमिगत चट्टानों से यूरेनियम अयस्क निकाला जाता है। इसमें मुख्य रूप से तीन चरण शामिल होते हैं – अन्वेषण, खुदाई और प्रसंस्करण। प्रसंस्करण के बाद प्राप्त पदार्थ को “येलोकैक“ कहा जाता है, जो एक मध्यवर्ती उत्पाद है और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में ईंधन के रूप में तथा अन्य उपयोगों के लिए काम आता है।
भारत में यूरेनियम कहाँ खनन किया जाता है?
- झारखंड (सिंहभूम जिला): सबसे पुरानी खदानें; यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (UCIL) का प्रमुख केंद्र।
- आंध्र प्रदेश (तुम्मलापल्ले, कडप्पा जिला): अनुमानित ~1.5 लाख टन भंडार, दुनिया के सबसे बड़े यूरेनियम भंडारों में से एक।
- तेलंगाना (नलगोंडा जिला): लांबापुर–पेद्दागट्टू क्षेत्र में भंडार।
- मेघालय (डोमियासियात, वाहकाजी): समृद्ध भंडार, लेकिन आदिवासी विरोध के कारण खनन रुका हुआ।
- राजस्थान (रोहिल, सीकर जिला): खोजी कार्य जारी।
भारत का वैश्विक यूरेनियम परिदृश्य:
वैश्विक यूरेनियम भंडार: मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया, कज़ाकिस्तान, कनाडा और रूस में स्थित।
भारत का हिस्सा:
- विश्व के यूरेनियम भंडार का लगभग 1–2%।
- वैश्विक नेताओं की तुलना में अपेक्षाकृत कम।
आयात पर निर्भरता: घरेलू खनन के बावजूद, भारत कज़ाकिस्तान, रूस, उज्बेकिस्तान और कनाडा से यूरेनियम आयात करता है।
नाभिकीय ऊर्जा का योगदान:
- वर्तमान में भारत की बिजली का लगभग 3%।
- लक्ष्य: 2040 तक 9–10%।