Provincial Citizenship
संदर्भ:
हाल ही में हुए एक अध्ययन में “प्रांतीय नागरिकता” की अवधारणा प्रस्तुत की गई है, जिसके जरिए समझाया गया है कि झारखंड जैसे राज्यों में निवास-आधारित पहचान की राजनीति भारत की एकीकृत राष्ट्रीय नागरिकता की संवैधानिक आदर्श को कैसे चुनौती देती है।
प्रांतीय नागरिकता (Provincial Citizenship):
- परिभाषा और विचारधारा
- यह स्थानीयतावादी (nativist) भावना पर आधारित है।
- इस प्रकार की नागरिकता क्षेत्रीय राजनीति में जोर पकड़ती है, जिससे आंतरिक प्रवासी अक्सर हाशिए पर चले जाते हैं।
- लोकतांत्रिक निर्णय (democratic adjudication) को भी यह जटिल बना देती है।
- भारत में प्रचलन
- यह भारत में एक बढ़ता राजनीतिक fenómenoम बन गया है।
- प्रत्येक राज्य में डोमिसाइल (domicile) स्थिति राजनीतिक पहचान और जन mobilization का महत्वपूर्ण कारक बन गई है।
- यह विचार को चुनौती देती है कि भारत में एकल राष्ट्रीय नागरिकता (one national citizenship) हो।
- राजनीतिक वास्तविकता
- प्रवास, पहचान और नागरिकता अधिकारों पर बातचीत और विवाद उत्पन्न करता है।
- भारत के संघीय ढांचे में यह महत्वपूर्ण राजनीतिक वास्तविकता बन चुका है।
हालिया अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:
- राज्यों का उदाहरण
- झारखंड, जम्मू–कश्मीर और असम में डोमिसाइल नीतियों का राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल।
- यह नीतियाँ अक्सर स्थानीयतावादी और बहुसंख्यक (majoritarian) भावनाओं पर आधारित होती हैं।
- झारखंड का मामला
- डोमिसाइल राजनीति का उपयोग क्षेत्रीय पहचान और शिकायतों को उजागर करने के लिए किया जाता है।
- इससे संविधान में निहित आदर्श “एक राष्ट्र, एक नागरिकता” कमजोर पड़ता है।