UN Convention against Cybercrime

संदर्भ:
हनोई में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में 72 देशों ने साइबर अपराध के खिलाफ कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं। यह साइबर अपराध से निपटने के लिए समर्पित पहला वैश्विक समझौता है, जिसका उद्देश्य डिजिटल दुनिया में सुरक्षा, जवाबदेही और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना है।
मुख्य प्रावधान (Key Provisions):
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग:
- यह संधि सीमापार जांच और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के आदान-प्रदान के लिए एक ढांचा तैयार करती है।
- एक 24×7 नेटवर्क स्थापित किया जाएगा, जिससे देश एक-दूसरे से तुरंत सहायता मांग सकें।
- इसमें आपसी कानूनी सहायता और साइबर अपराधियों के प्रत्यर्पण के लिए मानक तय किए गए हैं।
- अपराधों का विस्तार:
- इस संधि में अंतरराष्ट्रीय साइबर अपराधों की परिभाषा का दायरा बढ़ाया गया है, जिसमें ऑनलाइन धोखाधड़ी, साइबर-निर्भर अपराध और बिना सहमति के निजी तस्वीरों को साझा करना शामिल है।
- यह ऑनलाइन बाल यौन शोषण और उत्पीड़न जैसे अपराधों को भी विशेष रूप से संबोधित करती है।
- मानवाधिकारों का सम्मान: प्रावधानों में यह अनिवार्य किया गया है कि सदस्य देश इस संधि को लागू करते समय अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के अनुरूप कार्य करें।
- हालांकि, इन सुरक्षा उपायों की मजबूती को लेकर आलोचना भी की गई है।
- क्षमता निर्माण: यह संधि उन देशों के लिए तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण पर जोर देती है जिनके पास साइबर अपराध से निपटने की पर्याप्त संरचना नहीं है, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए।
इतिहास और पृष्ठभूमि (History and Context)
- यह नई संयुक्त राष्ट्र (यूएन) संधि, बुडापेस्ट कन्वेंशन ऑन साइबरक्राइम की जगह मुख्य अंतरराष्ट्रीय समझौते के रूप में लाई गई है।
- इस प्रक्रिया की शुरुआत 2019 में हुई थी, जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रूस समर्थित प्रस्ताव पारित कर नई साइबर अपराध संधि तैयार करने का निर्णय लिया।
- इस पहल का समर्थन चीन, ईरान और वेनेजुएला जैसे देशों ने किया, जिन्होंने कहा कि बुडापेस्ट संधि पश्चिमी देशों के प्रभुत्व में बनाई गई थी।
- अंतिम मसौदा अगस्त 2024 में एक विशेष समिति द्वारा अपनाया गया और दिसंबर 2024 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे औपचारिक रूप से मंजूरी दी।
- अमेरिका ने प्रारंभ में इस नई संधि का विरोध किया था, लेकिन अंततः इस पर हस्ताक्षर किए ताकि वह इसके क्रियान्वयन में अपनी भूमिका बनाए रख सके।
विवाद और आलोचना (Controversy and Criticism)
- मानवाधिकारों पर खतरा: मानवाधिकार संगठनों, जैसे ह्यूमन राइट्स वॉच, का कहना है कि संधि की परिभाषाएँ बहुत व्यापक हैं और मानवाधिकार सुरक्षा बहुत अस्पष्ट है।
- इससे तानाशाही सरकारें निगरानी बढ़ाने और पत्रकारों, असहमति रखने वालों व अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए इसका दुरुपयोग कर सकती हैं।
- उद्योग जगत की चिंताएँ: माइक्रोसॉफ्ट, सिस्को जैसी बड़ी टेक कंपनियों और इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन जैसी संस्थाओं ने कहा है कि इस संधि में साइबर सुरक्षा अनुसंधान की रक्षा के प्रावधान नहीं हैं। इससे वैध गतिविधियाँ, जैसे पेनिट्रेशन टेस्टिंग, अपराध मानी जा सकती हैं और कंपनियों पर सुरक्षा प्रणालियों को कमजोर करने का दबाव पड़ सकता है।
- राष्ट्रीय कानूनों पर निर्भरता: आलोचकों के अनुसार, संधि में मानवाधिकारों का सामान्य उल्लेख तो है, लेकिन सुरक्षा उपायों के क्रियान्वयन का निर्णय हर देश पर छोड़ दिया गया है, जिससे दमनकारी शासन इसका दुरुपयोग कर सकते हैं।
