GSAT-7R Mission
संदर्भ:
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 2 नवम्बर 2025 को भारतीय नौसेना के लिए उन्नत GSAT-7R संचार उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया। 4,410 किलोग्राम वजनी यह उपग्रह भारतीय धरती से प्रक्षेपित किया गया अब तक का सबसे भारी संचार उपग्रह है। यह मिशन भारतीय नौसेना की संचार क्षमता, समुद्री निगरानी और नेटवर्क-केंद्रित संचालन को और अधिक सशक्त बनाएगा।
GSAT-7R मिशन: भारत की समुद्री और अंतरिक्ष क्षमताओं को नई ऊंचाई:
मिशन और प्रक्षेपण विवरण:
- आधिकारिक नाम: उपग्रह को CMS-03 के नाम से भी जाना जाता है।
- लॉन्च वाहन: इसे LVM3-M5 रॉकेट (ISRO का सबसे शक्तिशाली परिचालन प्रक्षेपण यान) द्वारा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में स्थापित किया गया।
- रिकॉर्ड प्रक्षेपण: सामान्यतः LVM3 की GTO क्षमता 4,000 किलोग्राम है, लेकिन इस मिशन के लिए ISRO ने इसकी प्रदर्शन क्षमता में 10% वृद्धि की, जिससे यह अधिक वजन वाले GSAT-7R उपग्रह को प्रक्षेपित कर सका।
उद्देश्य और लाभ: GSAT-7R एक उन्नत, स्वदेशी रूप से विकसित, मल्टी-बैंड कम्युनिकेशन सैटेलाइट है जो सुरक्षित और उच्च क्षमता वाले संचार बैंडविड्थ प्रदान करता है।
भारतीय नौसेना के लिए:
- बेहतर संचार: यह नौसेना के जहाजों, पनडुब्बियों, विमान और समुद्री संचालन केंद्रों के बीच निर्बाध वॉयस, डेटा और वीडियो कनेक्टिविटी सुनिश्चित करेगा।
- रणनीतिक कवरेज: यह उपग्रह पूरे हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में मजबूत दूरसंचार कवरेज प्रदान करेगा।
- सिचुएशनल अवेयरनेस में सुधार: यह नौसेना की Maritime Domain Awareness को बढ़ाकर रियल-टाइम समन्वित संचालन की क्षमता को सुदृढ़ करेगा।
भारत की रक्षा और अंतरिक्ष क्षमताओं के लिए:
- पूर्ववर्ती उपग्रह का प्रतिस्थापन: GSAT-7R ने 2013 में प्रक्षेपित GSAT-7 (रुक्मिणी) की जगह ली है, जो अपने परिचालन जीवन के अंत तक पहुंच चुका था।
- स्वदेशीकरण की दिशा में कदम: यह मिशन भारत की अंतरिक्ष रक्षा प्रणाली में आत्मनिर्भरता को बढ़ाता है और भारी उपग्रहों के लिए विदेशी प्रक्षेपण वाहनों पर निर्भरता घटाता है।
- LVM3 की क्षमता में मजबूती: यह प्रक्षेपण LVM3 रॉकेट की हैवी-लिफ्ट क्षमता को और प्रमाणित करता है, जो भविष्य के गगनयान मानव अंतरिक्ष मिशन जैसे अभियानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
लॉन्च व्हीकल मार्क–3 (LVM-3):
परिचय: LVM-3 (GSLV Mk-3 कहा जाता था) इसरो का सबसे शक्तिशाली परिचालन प्रक्षेपण यान है।
- यह ठोस, द्रव और क्रायोजेनिक ईंधन आधारित इंजनों का उपयोग करता है।
- यह रॉकेट निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit – LEO) में 8,000 किलोग्राम और जियोसिंक्रोनस कक्षा (GTO) में 4,000 किलोग्राम तक का पेलोड प्रक्षेपित करने में सक्षम है।
मुख्य उपलब्धियाँ:
- चंद्रयान–2 और चंद्रयान–3 जैसे भारत के ऐतिहासिक चंद्र मिशनों का सफल प्रक्षेपण किया।
- गगनयान कार्यक्रम (2014) के तहत भारत का पहला क्रू मॉड्यूल पुन: प्रवेश परीक्षण के लिए प्रक्षेपित किया।
- 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक लॉन्च विकल्पों की कमी के बीच OneWeb के 72 उपग्रहों को LEO में प्रक्षेपित किया।
- इन सफलताओं के बाद इसरो ने इसे “GSLV Mk-3” से “LVM-3” के रूप में पुनः ब्रांड किया, जिससे इसकी बहुउद्देशीय क्षमता और अनुकूलनशीलता प्रदर्शित हुई।
उन्नयन और भविष्य की योजनाएँ:
- इसरो भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और आगामी चंद्र अभियानों के लिए LVM-3 को और उन्नत कर रहा है।
- भविष्य में तरल चरण को सेमी-क्रायोजेनिक इंजन से बदलने की योजना है, जो शुद्ध केरोसिन और तरल ऑक्सीजन पर आधारित होगा।
- इन सुधारों से LVM-3 की पेलोड क्षमता LEO में 10,000 किलोग्राम तक बढ़ने की संभावना है।
- इसरो समानांतर रूप से लूनर मॉड्यूल लॉन्च व्हीकल (LMLV) भी विकसित कर रहा है, जो 80,000 किलोग्राम तक का भार वहन कर सकेगा।
- इन सभी प्रगतियों के साथ, LVM-3 भारत की डीप-स्पेस और मानव अंतरिक्ष उड़ान महत्वाकांक्षाओं का आधारस्तंभ बनकर उभरा है।

