Stablecoins

संदर्भ:
हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्टेबलकॉइन (Stablecoin) के नियमन में संतुलित दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि उचित निगरानी से मौद्रिक स्थिरता की सुरक्षा, वित्तीय नवाचार को प्रोत्साहन, और डिजिटल अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाया जा सकता है।
स्टेबलकॉइन्स (Stablecoins): डिजिटल वित्तीय स्थिरता की नई दिशा–
परिचय:
- स्टेबलकॉइन्स एक प्रकार की क्रिप्टोकरेंसी होती हैं जिनका मूल्य किसी स्थिर परिसंपत्ति (asset) — जैसे फिएट मुद्रा (जैसे डॉलर या रुपया) या सोना — से जुड़ा होता है ताकि कीमतों में उतार-चढ़ाव सीमित रहे।
- इनका उद्देश्य बिटकॉइन जैसी अस्थिर क्रिप्टोकरेंसी की तुलना में एक स्थिर और विश्वसनीय विकल्प प्रदान करना है।
- आमतौर पर इनका उपयोग लेन-देन के बजाय निवेशकों द्वारा लाभ सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है, ताकि वे क्रिप्टो मुनाफा निकालते समय उसे वास्तविक मुद्रा में बदले बिना सुरक्षित रख सकें।
- स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के अनुसार, 2028 तक स्टेबलकॉइन बाजार का आकार दस गुना बढ़कर लगभग $2 ट्रिलियन तक पहुँच सकता है।

स्टेबलकॉइन्स के प्रकार:
- फिएट–समर्थित स्टेबलकॉइन (Fiat-collateralized):
- ये किसी फिएट मुद्रा (जैसे अमेरिकी डॉलर, यूरो, या रुपया) से जुड़ी होती हैं।
- इनके पीछे की संस्था उतनी ही राशि का भंडार (reserve) रखती है, जिससे डिजिटल टोकन का मूल्य स्थिर रहता है।
- गैर–समर्थित या एल्गोरिदमिक स्टेबलकॉइन: ये किसी भौतिक परिसंपत्ति से नहीं जुड़ी होतीं।
- इनकी कीमत नियंत्रण एक सॉफ्टवेयर एल्गोरिद्म द्वारा किया जाता है जो मांग और आपूर्ति के अनुसार टोकन की संख्या बढ़ाता या घटाता है।
- क्रिप्टो–समर्थित स्टेबलकॉइन (Crypto-backed):
- इनका मूल्य अन्य क्रिप्टोकरेंसी से समर्थित होता है।
- ये अत्यधिक विकेंद्रीकृत होती हैं, लेकिन उच्च अस्थिरता से बचाव हेतु अधिक कोलेटरल की आवश्यकता होती है।
भारत के लिए स्टेबलकॉइन्स का महत्व:
- वित्तीय समावेशन: स्मार्टफोन और डिजिटल वॉलेट के माध्यम से स्टेबलकॉइन बैंकिंग सेवाओं से वंचित लोगों को वित्तीय प्रणाली से जोड़ सकते हैं।
- सस्ते रेमिटेंस: भारत ने 2024 में लगभग $130 बिलियन का रेमिटेंस प्राप्त किया। स्टेबलकॉइन के माध्यम से लेन-देन शुल्क 6% से घटकर 2% तक हो सकता है, जिससे भारतीय परिवारों को लगभग $5 बिलियन की बचत होगी।
- रुपये की स्थिरता:रुपये से जुड़े स्टेबलकॉइनभारत की डॉलर पर निर्भरता घटा सकते हैं और घरेलू डिजिटल मुद्रा प्रणाली में विश्वास बढ़ा सकते हैं।
- तकनीकी विकास: विश्व के 11% ब्लॉकचेन डेवलपर्स भारत में हैं। स्टेबलकॉइन नवाचार से Web 3.0 और फिनटेक निवेश में तेजी लाई जा सकती है।
- CBDC (e-Rupee) के साथ सामंजस्य: स्टेबलकॉइन्स और RBI के डिजिटल रुपये (e-Rupee) के बीच एकीकरण से इंटरऑपरेबिलिटी, लेन-देन की गति, और डिजिटल वित्तीय ढांचे की मजबूती में सुधार होगा।
स्टेबलकॉइन से जुड़े जोखिम:
- नियामक कमी:भारत में क्रिप्टो को वर्चुअल डिजिटल एसेट माना जाता है, लेकिन स्टेबलकॉइन जारी करने या उनकी सुरक्षा के लिए अलग कानून नहीं हैं।
- नीतिगत चिंता:निजी स्टेबलकॉइन से RBI की मौद्रिक नीतियों पर नियंत्रण कमजोर हो सकता है।
- CBDC प्रतिस्पर्धा:निजी स्टेबलकॉइन ई-रुपये के उपयोग को कम कर सकते हैं और लोगों की सार्वभौमिक डिजिटल मुद्रा में विश्वास घटा सकते हैं।
- संचालन जोखिम:एल्गोरिदमिक कॉइन बाजार झटकों के प्रति संवेदनशील होते हैं, जबकि केंद्रीकृत जारीकर्ता अपने वास्तविक भंडार को गलत तरीके से प्रस्तुत कर सकते हैं।
- बाज़ार जोखिम:2022 में TerraUSD के पतन ने दिखाया कि स्टेबलकॉइन की असफलता से निवेशकों की बचत मिट सकती है और पूरा क्रिप्टो बाजार प्रभावित हो सकता है।
