Bangladesh formally joins the United Nations Water Convention
संदर्भ:
- बांग्लादेश ने वर्ष 2025 में संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन (UN Water Convention) से जुड़कर इतिहास रच दिया। वह ऐसा करने वाला दक्षिण एशिया का पहला देश बन गया है। इस कदम का उद्देश्य साझा नदियों के जल संसाधनों का न्यायसंगत और टिकाऊ प्रबंधन सुनिश्चित करना तथा सीमापार जल विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करना है।
UN Water Convention क्या है?
- यह संधि “Convention on the Protection and Use of Transboundary Watercourses and International Lakes” के नाम से जानी जाती है।
- स्थापना: 1992 में हेलसिंकी (Helsinki) में अपनाई गई और 1996 में लागू हुई।
- संस्था: इसे UNECE (United Nations Economic Commission for Europe) ने प्रारंभ किया था।
- 2016 से यह सभी UN सदस्य देशों के लिए खुली है।
मुख्य विशेषताएं (Key Features)
- सहयोगी ढांचा (Cooperative Framework): साझा नदियों वाले देशों को आपसी समझौते और संयुक्त संस्थान बनाने की बाध्यता।
- समान उपयोग सिद्धांत (Equitable Use Principle): जल संसाधनों का न्यायपूर्ण उपयोग और सीमापार हानि से बचाव।
- संघर्ष रोकथाम (Conflict Prevention): शांतिपूर्ण विवाद निपटान के लिए कानूनी तंत्र।
- SDGs से जुड़ाव: यह SDG 6.5 (Integrated Water Management) को सीधे और SDG 2, 7, 13, 16 को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देता है।
बांग्लादेश का कदम क्यों अहम है?
- देश में 60% जनसंख्या बाढ़ जोखिम वाले क्षेत्रों में रहती है और हर साल 20–25% भूमि जलमग्न होती है।
- 81 नदियाँ विलुप्त या विलुप्ति के कगार पर हैं।
- लगभग 93% जलस्रोत सीमापार हैं, जिन पर भारत और चीन जैसे देशों का प्रभाव है।
- 2025 में चीन ने तिब्बत में Motuo Hydropower Project शुरू किया, जिससे नीचे के देशों — भारत और बांग्लादेश — को जल प्रवाह घटने की आशंका है।
भारत और बांग्लादेश: नया जल समीकरण
भारत पारंपरिक रूप से द्विपक्षीय समझौतों पर भरोसा करता आया है — जैसे इंडस वाटर ट्रीटी (1960) – पाकिस्तान के साथ, गंगा जल बंटवारा समझौता (1996) – बांग्लादेश के साथ। अब गंगा संधि 2026 में पुनर्नवीनीकरण किया जाना है, इसमें बांग्लादेश अधिक जल हिस्सेदारी की मांग कर सकता है।
क्षेत्रीय असर और नई संभावनाएं
- बांग्लादेश की यह सदस्यता नेपाल और भूटान जैसे पड़ोसियों को भी प्रोत्साहित कर सकती है।
- साथ ही, बांग्लादेश का चीन और पाकिस्तान के साथ “त्रिपक्षीय सहयोग ढाँचा” बनाना भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती है।
- फिर भी, यह कदम जल सुरक्षा (Water Security) और सतत विकास (Sustainable Development) के लिए एक साहसिक पहल है।

