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संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट 2025 (UNEP Emissions Gap Report 2025) | UPSC

UNEP Emissions Gap Report 2025

UNEP Emissions Gap Report 2025

संदर्भ:

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने नवंबर 2025 में Emissions Gap Report 2025 का 16वां संस्करण जारी किया। यह रिपोर्ट वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जलवायु प्रतिबद्धताओं, और वैश्विक तापमान में वृद्धि की दिशा पर एक गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रों द्वारा Nationally Determined Contributions (NDCs) के तहत किए गए वादों के बावजूद, दुनिया अभी भी खतरनाक तापमान वृद्धि की दिशा में बढ़ रही है।

उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट (Emissions Gap Report) क्या हैं?

  • प्रकाशक (Published By): संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा UNEP Copenhagen Climate Centre और अन्य तकनीकी साझेदार संस्थानों के सहयोग से प्रकाशित।
  • प्रारंभ (Origin): यह वार्षिक रिपोर्ट 2010 से प्रकाशित की जा रही है।
  • उद्देश्य: वर्तमान राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के तहत संभावित उत्सर्जन और Paris Agreement के तापमान लक्ष्यों के अनुरूप आवश्यक उत्सर्जन स्तर के बीच के “अंतर” (Gap) का आकलन करना।
  • महत्त्व: यह रिपोर्ट यह बताती है कि वैश्विक स्तर पर किए जा रहे प्रयास 1.5°C या 2°C लक्ष्य को प्राप्त करने से कितने दूर हैं। इससे नीति-निर्माताओं को यह स्पष्ट दृष्टिकोण मिलता है कि मौजूदा नीतियों को कितना सुदृढ़ किया जाना आवश्यक है।

2025 रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • वैश्विक तापमान वृद्धि (Global Temperature Projections): यदि सभी देशों के NDCs पूरी तरह लागू किए जाते हैं, तब भी शताब्दी के अंत तक तापमान में 2.3°C से 2.5°C तक की वृद्धि की संभावना है। वर्तमान नीतिगत प्रवृत्तियों पर, यह वृद्धि 2.8°C तक पहुँच सकती है — जो Paris Agreement के लक्ष्य से काफी ऊपर है।
  • उत्सर्जन कमी अंतर (Emissions Reduction Gap): वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C के नीचे रखने के लिए 2035 तक उत्सर्जन में 35% की कटौती, और 1.5°C तक सीमित रखने के लिए 55% की कटौती आवश्यक है (2019 के स्तर की तुलना में)।
  • जलवायु जोखिम और ओवरशूट (Climate Risk and Overshoot): रिपोर्ट के अनुसार, 1.5°C सीमा लगभग 2035 तक पार हो जाएगी, जिससे एक “overshoot scenario” बनेगा। तापमान को वापस नीचे लाने के लिए carbon capture, afforestation, और direct air removal जैसी नकारात्मक उत्सर्जन तकनीकों की आवश्यकता होगी।
  • वैश्विक प्रगति और प्रवृत्ति (Global Progress and Trends): 2015 में तापमान वृद्धि की आशंका 3–3.5°C थी, जो 2025 में घटकर लगभग 2.4°C तक आई है। आज वैश्विक उत्सर्जन का 90% राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं (NDCs) के तहत आता है, जो 2015 में केवल 65% था। अक्षय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों, और बैटरी स्टोरेज में तेजी से वृद्धि ने हरित संक्रमण की औद्योगिक तैयारी को मजबूत किया है।
  • महत्वाकांक्षा में ठहराव (Stagnant Ambition): अधिकांश देशों ने अपने NDCs अपडेट किए हैं, परंतु सामूहिक महत्वाकांक्षा स्थिर बनी हुई है। उत्सर्जन मापन की नई पद्धतियों और पूर्व राजनीतिक अस्थिरता (जैसे अमेरिका का पूर्व में Paris Agreement से बाहर निकलना) ने प्रगति की गति को कम किया है।
  • क्षेत्रीय उत्सर्जन (Sectoral Emissions): ऊर्जा, उद्योग, परिवहन, और कृषि क्षेत्र प्रमुख उत्सर्जन स्रोत हैं। Coal, oil, और natural gas से ऊर्जा की निर्भरता अब भी वैश्विक CO₂ उत्सर्जन का 75% से अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार जब तक जीवाश्म ईंधनों का क्रमिक phase-out नहीं किया जाता, तब तक उत्सर्जन में सार्थक कमी संभव नहीं।
  • जलवायु वित्त (Climate Finance): 1.5°C pathway के अनुरूप प्रगति के लिए 2030 तक जलवायु वित्त प्रवाह को तीन गुना बढ़ाना आवश्यक है। वर्तमान वित्तीय प्रवाह आवश्यक स्तर के केवल एक-तिहाई पर हैं। विकासशील देशों पर वित्तीय दबाव अधिक है क्योंकि वे अक्षय ऊर्जा और अनुकूलन परियोजनाओं के लिए बाहरी फंडिंग पर निर्भर हैं।
  • भूराजनीतिक अस्थिरता (Geopolitical Instability): 2023 में वैश्विक जीवाश्म ईंधन सब्सिडी $1.3 ट्रिलियन से अधिक हो गई, जिसने डिकार्बोनाइजेशन की दिशा में हुई प्रगति को उलट दिया। संघर्ष, ऋण संकट, और महामारी के बाद आर्थिक पुनर्बहाली के प्रयासों ने कई देशों को अल्पकालिक ऊर्जा सुरक्षा के लिए फिर से जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर बना दिया है।
  • अप्रमाणित तकनीक पर निर्भरता (Overreliance on Unproven Technologies): UNEP ने चेताया है कि Carbon Dioxide Removal (CDR) या Direct Air Capture (DAC) पर अत्यधिक निर्भरता जोखिमपूर्ण है। केवल 9 G20 देश ही अपने घोषित NDC लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में हैं।
  • मुख्य सिफारिशें (Recommendations):
    • कोयला और तेल का चरणबद्ध phase-out
    • जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को स्वच्छ ऊर्जा निवेश में परिवर्तित करना।
    • Loss and Damage Fund को शीघ्र सक्रिय करना।
    • अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सुधार और ऋण स्वैप जैसी पहलें।
    • पारदर्शी उत्सर्जन और वित्तीय मॉनिटरिंग ढांचा स्थापित करना।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का परिचय

  • स्थापना: जून 1972 में Stockholm Conference on the Human Environment के बाद की गई।
  • मुख्यालय: नैरोबी (केन्या) — यह एकमात्र प्रमुख संयुक्त राष्ट्र निकाय है जिसका मुख्यालय अफ्रीका में स्थित है।
  • भूमिका: वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने, सतत विकास को बढ़ावा देने और हरित अर्थव्यवस्था की दिशा में देशों का मार्गदर्शन करने में UNEP अग्रणी है।
  • मुख्य प्रकाशन: Emissions Gap Report, Adaptation Gap Report, Global Environment Outlook (GEO)
  • मुख्य पहलें:
    • Paris Agreement, Convention on Biological Diversity (CBD) और Montreal Protocol को लागू करने में सहयोग।
    • Climate and Clean Air Coalition (CCAC) के माध्यम से methane और black carbon जैसे अल्प-आयु वाले प्रदूषकों को कम करने के प्रयास।
    • Montreal Protocol (1987) की सफलता में निर्णायक भूमिका, जिसने ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया।

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